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विपिन बिहारी पाराशरहमारा प्रयास रहता है कि “संस्कृति सत्य” स्तम्भ के पाठकों को निर्बाध रूप से इस स्तम्भ का आस्वादन प्राप्त होता रहे, परन्तु कभी-कभी हमें सांस्कृतिक और सामाजिक विभूतियों तथा घटनाक्रमों अथवा रोचक विषयों पर अन्य लेखकों के लेख भी प्राप्त होते हैं। स्थानाभाव के कारण जिन्हें कई बार हमें मन-मसोस कर लौटाना पड़ जाता है। ऐसे ही कई लेख हम पाठकों से क्षमा-याचना करते हुए “संस्कृति सत्य” के स्थान पर ही “संस्कार” नामक स्तम्भ के अन्तर्गत देते हैं। सं.कुमारी बिम्बा देवीमणिपुर की मीराबाईभक्तिकाल में सूरदास, सन्त तुलसीदास तथा अन्य भक्तों की एक लम्बी श्रृंखला थी। ठीक उसी समय में मणिपुर राज्य के महाराजा भाग्यचन्द्र के यहां एक पुत्री का जन्म हुआ। उस का नाम रखा गया बिम्बादेवी। महाराजा भाग्यचंद्र गोविंद जी के अनन्य भक्त थे और अपना राज-काज करने से पूर्व वे इम्फाल में गोविन्द जी के दर्शन करने जाते थे। इसका प्रभाव बिम्बादेवी पर भी हुआ।बिम्बा देवी 8 वर्ष की आयु से ही महाराजा के साथ मन्दिर जाती थी। किशोरावस्था में वह अपनी सखियों के साथ गोविंद जी के मंदिर में जाती और उनकी मूर्ति के सामने बैठी रहती। भोजन करने का भी ध्यान नहीं रहता था। केवल प्रसाद और जल ग्रहण करती थी। जब मणिपुर में रासलीला होती तो वह भी देखने जाती तथा रातभर रासलीला देखती। सब सखियों तथा गोपिकाओं के साथ नृत्य भी करती थी। धीरे-धीरे बिम्बादेवी विवाह के योग्य हो गई। अब कन्या के विषय में महाराजा भाग्यचंद्र विचार करने लगे कि मेरी पुत्री बिम्बा साधारण प्रतिभा की नहीं है। इसका विवाह इसी की इच्छा से होगा। परन्तु मैं देखता हूं इसका अनुराग, भक्ति तथा दिनचर्या-सब गोविंद जी के प्रति है। राजमहल से गोविंद जी के मंदिर तक जाना-आना कष्टदायक था इसलिए छोटा-सा महल बनवा दिया गया और वह वहीं रहने लगी।अब तो बिम्बा देवी ने प्रसाद खाना भी त्याग दिया। वह गोविंद-गोविंद कहती और भावविह्वल हो जाती। महाराज भाग्यचंद्र भी अपनी पुत्री के कारण चिंतित थे। अन्त में महाराजा ने बिम्बा देवी का जीवन उस पर ही छोड़ दिया। इधर बिम्बा भक्ति में कभी अद्र्ध चैतन्य अवस्था में श्वेत परिधान पहनकर, “मेरे गोविंद मेरे-कृष्ण कहां हो मुझे दर्शन दो नहीं तो मैं आत्महत्या कर लूंगी, प्राण त्याग दूंगी” कहते-कहते पुन: चेतना शून्य हो जाती।बिम्बा देवी की भक्ति की चर्चा और संवाद पूरे मणिपुर में प्रचलित हो गए। जनता बिम्बा के दर्शन के लिए आने लगी। इस प्रकार अनेक वर्ष बीत गए। तन क्षीण हो गया। राजा, रानी, मंत्री सब चिंतित थे परन्तु उनकी भक्ति में बाधा डालने का साहस किसी में नहीं था। अन्त में भगवान गोविंद देव जी ने बिम्बा देवी को साक्षात् दर्शन दिए।बिम्बा देवी के प्रेम से आकृष्ट होकर भगवान केवल दर्शन ही नहीं देते थे, वार्तालाप भी करते थे। इसकी चर्चा जनता में होने लगी और समाज ने बिम्बा देवी के चरित्र पर अनेक प्रश्न खड़े कर दिए। महाराजा को अपनी पुत्री पर सब प्रकार से विश्वास था। परन्तु जनता के आरोपों से इससे मुक्ति पाने के लिए महाराजा भाग्यचंद्र ने सबसे पहले बिम्बा देवी के महल की सैनिकों से घेराबंदी करा दी तथा उनको सूचना दी गई कि रात में कोई सुदर्शन नाम के युवक को प्रवेश करने से पूर्व उसे बन्दी बनाकर हमें सूचना दो। उसी रात एक सैनिक ने महाराजा को सूचना दी कि एक सुदर्शन युवक आया था, हम बन्दी बनाने को दौड़े तो अदृश्य हो गया। अभी वह राजकुमारी बिम्बा देवी के महल में है।महाराजा भाग्यचंद्र अपने प्रमुख मंत्रियों तथा सैनिकों के साथ बिम्बा देवी के महल में गए। महल के द्वार पर रुके। कान लगाकर सुना कि राजकुमारी बिम्बा देवी और युवक हंस-हंसकर वार्तालाप कर रहे हैं। अब महाराज ने आवाज दी, “बिम्बा दरवाजा खोलो।” तुरन्त ही उनकी पुत्री ने दरवाजा खोला। सैनिक, मंत्री तथा स्वयं महाराज ने महल की तलाशी ली। महल में कोई व्यक्ति या गुप्त द्वार भी नहीं मिला। अन्त में महाराज ने पूछा, “बिम्बा, यहां पर कौन था जो हंस-हंस कर तुमसे बातें कर रहा था?” बिम्बा भी, हंस पड़ी और कहा, “यहां कोई भी नहीं है।” अब महाराज को महल में भीनीसी सुगन्ध आई। बोले, “यह सुगंध क्यों” फिर देखा, शयन कक्ष में पलंग पर बांसुरी और मयूर पंख पड़ा है।यह देखकर महाराजा समझ गए कि भगवान गोविन्द जी आए थे। फिर महाराजा भावविह्वल होकर कहने लगे, “यह तो हमारे गोविंद जी की भक्तिन मीराबाई हैं।” महाराजा बिम्बा देवी के महल से गोविंद जी के मन्दिर में गए। वहां जाकर देखा कि मूर्ति विराजमान है, परन्तु हाथों में बांसुरी नहीं है। गोविंद जी का मयूर पंख भी नहीं है। अब सैनिक, मंत्री स्वयं महाराजा भाग्यचंद्र, “मीराबाई की जय”, “सिज लायी ओम्बी” कहने लगे। मणिपुर राज्य में “सिज लायी ओम्बी” की कथाएं होने लगीं।NEWS
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