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प्रकाश-गृह के तौर पर ही कुछ लोग राजनीति से अलग रहें तो देश के लिए अच्छा रहेगा। दुनिया में कुछ तो ऐसे मुक्त पुरुष रहने ही चाहिए, जो दुनिया के सामने चिरकालीन मूल्य रखें।-विनोबा (लोकनीति, पृ.213)बाजी तो पलटनी चाहिएहालांकि मीडिया के पंडित और राजनीति के स्वनामधन्य पुरोधा भी यह कहते, लिखते नहीं अघाते कि बिहार में जंगलराज है, अपहरण एक उद्योग बन चुका है, कानून-व्यवस्था नाम को भी नहीं बची है और सबसे बढ़कर जातिवाद का उन्माद सर चढ़कर बोल रहा है। तिस पर कांग्रेस की पूरी शह और समर्थन से बिहार की सरकार आज अराजकता का पर्याय बन चुकी है। कांग्रेस ने न केवल जातिवादी समीकरणों को हवा दी है, बल्कि लालू यादव से कभी दोस्ती और कभी दुश्मनी की ठसक दिखाकर यही कोशिश की है कि भाजपा और उसके सहयोगी दल कैसे भी शासन की बागडोर अपने हाथ न लें।एक दिलचस्प आंकड़ा “बिहार बचाओ कैंपेन” ने जारी किया है। इसके अनुसार गोधरा की तीन महीने में “जांच” का दावा ठोंकने वाले लालू प्रसाद यादव क्यों नहीं बताते कि दस अरब रुपए के चारा घोटाले की जांच दस साल में भी पूरी क्यों नहीं हो पाई? देश में सबसे ज्यादा डकैतियां, अपहरण, दंगे हुए हैं तो सिर्फ बिहार में। खुद को “मुस्लिमों का मसीहा” कहने वाले लालू यादव की सरपरस्ती में ही मुस्लिम देश में अगर सबसे अधिक पिछड़ी हालत में हैं तो बिहार में। बिहार में न बिजली है, न पीने का पानी, न सड़क।बिहार के लोग आज अपने प्रदेश की बदहाल स्थिति और राजनीतिक पतन को लेकर चिंतित हैं तो बिहार के तथाकथित सेकुलर नेता हर तरह की संहिता और नियम-कायदों की धज्जियां उड़ाने में ही आनंद मनाते दिखते हैं। भागलपुर में श्री अटल बिहारी वाजपेयी का आह्वान कि बिहारवासी ऐसी सरकार को उखाड़ फेंकें जो अपहरणों और जबरन धन वसूली से बेखबर परिवारवाद की पैरोकार है, जो बिहार को बिहार नहीं, अपनी गोशाला में बंधी गाय समझती है। यह अत्यंत विषादपूर्ण था कि न्याय की गुहार करने गए स्कूली बच्चों से चुनाव में रमे लालू यादव ने मिलना ठीक नहीं समझा और छुटभैये राजद नेताओं ने बच्चों को हवाईअड्डे से चलता कर दिया। हालांकि बाद में मीडिया और कैमरों को बुलाकर उन बच्चों को ढांढस बंधाने का “इंतजाम” किया गया। पर हासिल क्या हुआ? किसलय कहां है? दीपक कहां है? स्कूली बच्चे हड़ताल कर रहे हैं, भूखे पेट सो रहे हैं, पर 1, अण्णे मार्ग पर जश्न के नगाड़े पीटे जा रहे हैं। जश्न तो मनेगा ही। सामने है कौन जो उन्हें हटाए। बिखरे विपक्ष और झूठा नखरा दिखाने वाली कांग्रेस ने राजद के हौंसले बुलंद किए हुए हैं। अगर ऐसे माहौल को देखकर अंतिम दौर में भी विपक्ष बिखराव लांघकर एकजुटता दिखाए तो फिजा बदल सकती है। क्यों नहीं होना चाहिए ऐसा? आखिर देश और समाज नहीं कहेगा कि क्यों हमेशा चुनाव धनबल और जातिवाद के बूते ही जीते जाते रहे? जो सुशासन की बात करते हैं, भ्रष्टाचार के खिलाफ लड़ने की बात करते हैं, क्या वे बस इसलिए कमजोर माने जाएंगे? दोराहे पर खड़ा बिहार देख रहा है। यदि अब भी दंभ और शानोशौकत के आडंबर छोड़कर विपक्ष के नेता लोकतंत्र बचाने के लिए एकजुट हों, तो बाजी पलट सकती है। यह पलटनी चाहिए भी।NEWS
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