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माटी का मन

by
Jun 2, 2005, 12:00 am IST
in Archive
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दिंनाक: 02 Jun 2005 00:00:00

डा.रवीन्द्र अग्रवालसुनामी का असर 4 साल तकसमुद्र में सुनामी लहरों के कारण आंध्र प्रदेश, तमिलनाडु, केरल व अंदमान और निकोबार द्वीप समूह में भारी तबाही हुई है। इन राज्यों में 5 लाख हेक्टेयर से अधिक क्षेत्र में फसलें भी बर्बाद हो गई हैं। जिन किसानों के खेतों में समुद्री तूफान का पानी घुस गया उनके लिए दुर्भाग्य की बात यह है कि उनकी यह फसल तो बर्बाद हुई ही, अगले 3-4 वर्ष तक उनके खेतों में समुद्री पानी का असर रहने की आशंका है।कृषि वैज्ञानिकों का कहना है कि जिन खेतों में समुद्र का खारा पानी भर गया है उनके लवणीय हो जाने का खतरा है और इस लवणीयता का असर अगले तीन से चार वर्ष तक रह सकता है। मानसून आने में अभी काफी समय है इसलिए लवणीयता का असर अभी नहीं धुल पाएगा। ऐसी स्थिति में लवणीयता का असर रिस कर भूगर्भ में कई फुट गहरे तक जा सकता है। यही नहीं, इस लवणीयता से भूमिगत जल, पेयजल और सिंचाई के काम आने वाला पानी भी प्रभावित होगा।कृषि वैज्ञानिकों का यह भी कहना है कि ऐसी स्थिति में यह आवश्यक है कि इस प्रकार की फसलों को चिन्हित किया जाए जो मिट्टी में बढ़ी हुई लवणीयता को सहन कर सकें। साथ ही ऐसी फसलों को भी चिन्हित किए जाने की आवश्यकता है जो 80 से 100 दिनों में तैयार हो सकें, जिससे किसानों को इस फसल की बरबादी से हुई क्षति की भरपाई कुछ मात्रा में हो सके। मिट्टी में लवणीयता के दीर्घकालिक प्रभाव को देखते हुए इस प्रकार की बागवानी फसलों को भी पहचानने की आवश्यकता है जो लवणीयता के प्रति सहनशील हों। समुद्री तट के किसान अक्सर समुद्री तूफान से प्रभावित होते रहते हैं परन्तु अभी तक देश में ऐसा कोई “डाटा बैंक” नहीं है जो से इन किसानों को समय पर उचित परामर्श दे सके। उक्त सभी बातों को ध्यान में रखते हुए भारतीय कृषि अनुसंधान संस्थान ने तूफान प्रभावित क्षेत्रों में वैज्ञानिकों का एक दल भेजा है। यह दल तमिलनाडु कृषि विश्वविद्यालय के वैज्ञानिकों के सहयोग से आवश्यक जानकारी एकत्र करेगा।NEWS

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