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अब मजहब का जिक्र नहीं-मुजफ्फर हुसैनपाकिस्तान पंथनिरपेक्ष नहीं बल्कि एक कट्टर मुस्लिम देश है। वहां के मजहबी गुट कई सालों से आन्दोलन चला रहे हैं कि पाकिस्तान को सुन्नी मुस्लिम देश घोषित कर उसके संविधान में शामिल कर दिया जाए कि सुन्नी आस्था वाला व्यक्ति ही देश का नागरिक हो सकता है। यदि ऐसा हो गया तो वहां के 20 प्रतिशत शियाओं को कोई अधिकार नहीं मिलेगा। अब तो यह आवाज भी उठने लगी है कि शिया-सुन्नी के आधार पर पाकिस्तान का बंटवारा हो जाना चाहिए। लेकिन वहां की सरकार और वहां के बुद्धिजीवी मानते हैं कि यदि ऐसा हुआ तो आने वाले दिनों में देवबंदी और बरेलवी पाकिस्तान की मांग शुरू हो जाएगी। फिर भला पाकिस्तान के अहमदिया, जिन्हें वहां की सरकार 1974 से गैर-मुस्लिम घोषित कर चुकी है, भी अपनी रक्षा और अस्तित्व के लिए कादियानिस्तान की मांग करने लगेंगे। उल्लेखनीय है कि कादियान भारतीय पंजाब के गुरदासपुर जिले में स्थित है। कादियान से ही अहमदिया पंथ की शुरुआत हुई है।पाकिस्तान में वहां की सरकार और मजहबी गुट आए दिन उन पर किसी न किसी प्रकार से अत्याचार करते रहते हैं। उन्हें कोई मजहबी अधिकार नहीं है। वे पक्के मुसलमान हैं फिर भी उन्हें गैर-मुस्लिम कहा जाता है। जिस दिन से पाकिस्तान का निर्माण हुआ है उन पर किसी न किसी बहाने से जुल्म होते रहे हैं। मजहब के नाम पर उन्हें पाकिस्तान में अलग-थलग कर दिया गया है। इसके लिए जुल्फिकार अली भुट्टो ने खत्मे नबुव्वत कान्फ्रेंस नामक एक पुरातनवादी संगठन के आन्दोलन से प्रेरित होकर उन्हें मुसलमान कहने पर कानूनी पाबंदी लगा दी थी। पाकिस्तान के पंजाब में रबवाह नामक स्थान पर कादियानियों का मुख्यालय है। वहां के सूत्रों का कहना है कि उनकी विचारधारा से प्रभावित होकर सैकड़ों मुसलमान प्रतिवर्ष अहमदिया पंथ स्वीकार कर लेते हैं। उनकी जनसंख्या न बढ़ जाए और चूंकि अहमदिया पंथ एक पढ़ा-लिखा और आधुनिक ज्ञान का पोषक पंथ है, इसलिए पाकिस्तान के सुन्नी भयभीत हैं। पाकिस्तान की सत्ता पर उनका कब्जा न हो जाए इसलिए उनके षडंत्र आए दिन चलते रहते हैं। अहमदिया पंथ के लोगों की कोई राजनीतिक महत्वाकांक्षा नहीं है लेकिन सुन्नी मुसलमान हर समय उनके पीछे हाथ धोकर पड़े रहते हैं। पिछले दिनों पाकिस्तानी “पासपोर्ट” में दी जाने वाली मजहब की जानकारी के “कालम” से किसी ने शरारत की जिसका नुकसान वहां के बेचारे अहमदियों को भुगतना पड़ रहा है। “पासपोर्ट” में जो जानकारी मांगी जाती है उसमें मजहब के “कालम” का भी समावेश होता है। जाने-अनजाने में इस बार जो “पासपोर्ट” प्रपत्र छप कर आए उनमें से मजहब की जानकारी देने वाला “कालम” निकाल दिया गया। कुछ दिनों के बाद जब तूफान उठा तो सरकार को भान हुआ कि उससे बहुत बड़ी गलती हो गई है। इसलिए सरकारी विज्ञप्ति छाप दी गई कि इस गलती को जल्दी सुधार लिया जाएगा। लेकिन यह बात उतनी सरल नहीं है, जितनी समझी जा रही है।पाकिस्तान में एक बड़े वर्ग का कहना है कि पाकिस्तान के प्रशासन में आज भी बड़ी तादाद में अहमदिया हैं। भले ही बाह्र रूप से वे सुन्नियों के अन्य पंथों से अपने आपको जुड़ा हुआ कहते हों लेकिन भीतर से वे आज भी पक्के अहमदिया हैं। इसलिए उनके समर्थक अधिकारियों ने जानबूझकर मजहब के “कालम” को “पासपोर्ट” से निकाल दिया ताकि उन पर गैर-मुस्लिम होने की कोई शंका ही न रहे और वे अन्य मुस्लिमों की तरह हज यात्रा कर सकें। सऊदी अरब और पाकिस्तान दोनों की सरकारें अहमदियों को “काफिर” मानती हैं इसलिए उन्हें हज की आज्ञा नहीं देती। 15 दिसम्बर, 2004 के अंक में साप्ताहिक तकबीर ने लिखा है कि इस गलती का लाभ उठाकर 250 अहमदिया इस बार हज करने के लिए मक्का पहुंच गए। तकबीर का कहना है कि वहां दुनिया के अन्य भागों से आए अहमदिया एकत्रित होंगे। उनका वहां अपना कोई सम्मेलन भी आयोजित किया गया है। तकबीर को उक्त रपट भेजने वाले अहमद खान का कहना है कि मिर्जा मसरूर अहमद ने दो माह पूर्व एक उच्चस्तरीय बैठक में विश्व के 1700 समर्पित एवं अहमदिया पंथ के विस्तार का जो कार्य करते हैं, उन्हें यह आदेश भेजा था कि वे हज यात्रा के समय मक्का में एकत्रित हों। पाकिस्तान से अहमदिया जा सकें इसके लिए यह मार्ग अपनाया गया। हज के पश्चात् इस्लामी जगत में अहमदिया पंथ को क्या भूमिका निभानी है, इस पर विचार किया जाएगा। पाकिस्तान के नेता और तकबीर का कहना है कि अहमदियों का यह विश्व के मुसलमानों के विरुद्ध बड़ा षडंत्र है। लेकिन यह तथ्य किसी की समझ में आने वाला नहीं है कि केवल 250 लोगों को हज पर भेजने के लिए सम्पूर्ण पाकिस्तान के प्रशासन में इस प्रकार घुसपैठ करके अपने उद्देश्य की पूर्ति का लक्ष्य निर्धारित किया गया। क्या इससे यह स्पष्ट नहीं हो जाता कि पाकिस्तान पर आज भी अहमदियों की पकड़ कितनी मजबूत है? जो पाकिस्तान सरकार और वहां के सुन्नी नेता स्वयं को विश्व के सबसे चतुर, साहसी और मजहब के लिए मानव बम के धारक होने का दावा करते हैं, वे केवल उन मुट्ठी भर मुसलमानों से, जिन्हें वे मुसलमान नहीं मानते, इतने भयभीत हैं। यदि वास्तव में “पासपोर्ट” से इस्लाम और मुसलमान का जिक्र इस तरह से निकलवाने में अहमदिया सफल हो गए हैं तो निश्चित ही उनकी इस चतुराई को हर कोई सलाम करेगा।तकबीर ने यह भी लिखा है कि इस मामले में यह भी शंका व्यक्त की जा रही है कि प्रधानमंत्री और गृहमंत्री ने राष्ट्र संघ द्वारा तैयार किए गए अन्य देशों की तरह पाकिस्तान सरकार को भी सलाह दी है कि वे विश्व मानव की भावना बनाने के लिए “पासपोर्ट” से व्यक्ति के मजहब की जानकारी हटा दें। इससे अनेक मजहब और पंथों के बीच टकराव कम होगा। सूत्रों का यह भी कहना है कि सरकार का यह कहना कि भूल से ऐसा हुआ है और साथ ही यह अश्वासन देना कि भविष्य में इसे सुधार लिया जाएगा, दोनों ही बातें गलत हैं। यह सब जानबूझकर एक योजना के तहत हुआ है।शंकाएं और कारण कुछ भी हों लेकिन 13 दिसम्बर को पाकिस्तान के गृहमंत्री आफताब ने यह घोषणा कर दी है कि इलेक्ट्रोनिक “पासपोर्ट” में मजहब का कालम नहीं होगा। उनका कहना था कि सऊदी सरकार ने इस पर कोई आपत्ति नहीं उठाई है। ध्यान रहे उनके स्वयं के “पासपोर्ट” में भी मजहब लिखा हुआ नहीं रहता है। आफताब का कहना था कि इस्लामी देशों के “डिजिटल पासपोर्ट” में भी मजहब के “कालम” का समावेश नहीं होता है। आप इजिप्ट, मलेशिया और सऊदी अरब का “पासपोर्ट” उठाकर देख लीजिए उसमें मजहब बताने की आवश्यकता ही नहीं पड़ती। पाकिस्तान सरकार के इस टके से जवाब के पश्चात् पाकिस्तान में कट्टरवादी नेता सक्रिय हो गए हैं। जेद्दा में नवाज शरीफ ने भी इसके विरुद्ध अपना बयान दिया है। मौलाना कह रहे हैं आज “पासपोर्ट” से इस्लाम हटाया जा रहा है कल पाकिस्तान से मुसलमानों को हटा देने की बारी आ सकती है।NEWS
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