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सुनो कहानीऐसे थे गुरुजीअध्यापक श्री सदाशिवराव गोलवलकर बहुत आर्थिक संकट से गुजर रहे थे, क्योंकि उनके पिता श्री बालकृष्ण पंत गोलवलकर की घुड़सवारी करते समय गिर जाने से मृत्यु हो गई थी। इसके परिणामस्वरूप गृहस्थी का दायित्व उन्हीं पर आ गया था। इतना ही नहीं, उन्हें दसवीं कक्षा उत्तीर्ण कर पढ़ाई छोड़नी पड़ी। 15 वर्ष की आयु में 9 वर्षीय रामकर (लक्ष्मीबाई) से विवाह हो गया। अब एक भाई और पत्नी का भी भार बढ़ गया। वे डाक-तार विभाग में लिपिक थे, परन्तु अध्यापक जीवन पसंद था।संवत् 1962 की माघ कृष्ण एकादशी (19 फरवरी, 1906) को उनको घर प्रात:काल एक शिशु ने जन्म लिया। नाम था “मधु”, तत्पश्चात् “माधव”। इसके एक वर्ष बाद ही सदाशिव रायपुर जिले के सरायपाली स्थित एक माध्यमिक स्कूल में अध्यापक नियुक्त हो गए। वहां वे पढ़ाई भी करते रहे। इंटर की परीक्षा पास की, फिर स्नातक भी हो गए। इस बीच उनका स्थानांतरण होता रहा। धनाभाव होते हुए भी वे लालची नहीं थे। गरीब बच्चों को वे घर पर ही नि:शुल्क पढ़ाते थे। पुत्र मधु पर पिता के इस मृदुल व्यवहार का बहुत प्रभाव पड़ा। युवावस्था में मधु, माधव नाम से काशी विश्वविद्यालय में पढ़ते हुए और अपने कमजोर सहपाठियों को भी लगन से पढ़ाते रहे। इस कारण सहपाठी उन्हें “गुरुजी” कहने लगे।यही युवक बड़े होकर माधवराव गोलवलकर, राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के सरसंघचालक बनकर देश में विख्यात हुए। संघ के स्वयंसेवक- कार्यकर्ता उन्हें श्री गुरुजी कहकर सम्बोधित करते थे। पिता श्री सदाशिवराव गोलवलकर को कभी यह शिकायत नहीं रही कि उनका पुत्र “मधु” (माधवराव) अविवाहित है या वकालत की परीक्षा पास करके भी वकालत नहीं कर रहा है। वे कहते थे, “मैंने पुत्र रूप में एक “मधु” (माधवराव) को पाकर हजारों पुत्र पा लिए”। उनकी 9 संतानों में श्री गुरुजी ही जीवित बचे थे। परन्तु वे संतुष्ट थे और कहते थे, कोई नहीं रहा, अपना “मधु” तो है। एक मधु के रहते मैंने सबको पा लिया। बालक प्रेम के लिए ही होते हैं। “संघ” के रूप में मुझे वह प्रेम प्राप्त है जिससे मैं आनन्द का अनुभव कर रहा हूं।” यही गुरुजी, श्री माधवराव गोलवलकर, स्वामी विवेकानन्द के गुरुभाई स्वामी अखंडानन्द से दीक्षित होकर उनके शिष्य रूप में श्री रामकृष्ण परमहंस आश्रम में रहे थे।मानस त्रिपाठीबूझो तो जानेंप्यारे बच्चो! हमें पता है कि तुम होशियार हो, लेकिन कितने? तुम्हारे भरत भैया यह जानना चाहते हैं। तो फिर देरी कैसी?झटपट इस पहेली का उत्तर तो दो। भरत भैया हर सप्ताह ऐसी ही एक रोचक पहेली पूछते रहेंगे। इस सप्ताह की पहेली है-भारत में हैं कुंभ के, चार प्रसिद्ध स्थान, बतला सकता कौन है, उन चारों के नाम।दुनिया भर के हिन्दू वहां जमा होते हैं, बारह वर्षों बाद बड़े मेले लगते हैं।।उत्तर: (हरिद्वार, प्रयाग, नासिक, उज्जैन)NEWS
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