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जम्मू – कश्मीर विचार मंच की बैठक में उठा कश्मीरी पंडितों की घाटी -वापसी का मुद्दा

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May 6, 2005, 12:00 am IST
in Archive
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दिंनाक: 06 May 2005 00:00:00

क्या सपना ही रहेगी घाटी वापसी?-प्रतिनिधिकार्यक्रम में मंचस्थ (बाएं से) सर्वश्री त्रिलोकीनाथ राजदान, द्वारिका नाथ मुंशी,मनमोहन धर, डा. जितेन्द्र बजाज, प्रो. भारत भूषण धर एवं सुनीता (रैना) पंडित”वेकौन सी परिस्थितियां थीं, जिसमें हमें अपनी मातृभूमि से विस्थापित होना पड़ा? क्या आज वैसा खौफ समाप्त हो गया है? जिहादी हिंसा के जिम्मेदार लोग आज भी कश्मीर घाटी में उसी प्रकार जमे हैं, जैसे वे पिछले 16 वर्ष से घाटी में जमे हुए थे। हमें घाटी से बाहर धकेलने वाले लोग कोई पाकिस्तान से नहीं आए थे, ये वही लोग हैं जो आज हमें फिर से घाटी में बसने का निमंत्रण दे रहे हैं। हम घाटी में वापस जाएंगे, किन्तु इतना तय है कि इस बार हम पुन: विस्थापित होने के लिए नहीं बल्कि कश्मीर को भारत की सनातन धारा का अंग बनाने के लिए जाएंगे।” गत 23 मई को नई दिल्ली में जम्मू-कश्मीर विचार मंच की राष्ट्रीय कार्यकारिणी की दो दिवसीय बैठक के उद्घाटन सत्र में वक्ताओं ने कुछ इन्हीं शब्दों में कश्मीरी पंडितों की पीड़ा का वर्णन किया।जम्मू-कश्मीर विचार मंच की इस बैठक में वक्ताओं ने जम्मू-कश्मीर राज्य सरकार द्वारा कश्मीरी पंडितों की घाटी वापसी के प्रयत्नों को षड्यंत्र करार देते हुए कहा कि सरकार को कश्मीरी पंडितों के पुनर्वास की कम और सन् 1947 में पाकिस्तान जा चुके मुसलमानों के पुनर्वास की चिंता ज्यादा है। पूरी योजना ही इस प्रकार से बनाई गयी है ताकि कश्मीरी पंडित घाटी में पुन: बसने को राजी ही न हों और सरकार भारत तथा विश्व समुदाय के समक्ष यह कहते हुए अपने उत्तरदायित्व से पल्ला झाड़ ले कि, “सरकार तो पंडितों को ससम्मान वापस बसाना चाहती है, लेकिन वे ही अब वापस आना नहीं चाहते।” जम्मू-कश्मीर विचार मंच के राष्ट्रीय उपाध्यक्ष और वरिष्ठ पत्रकार डा. आर.एल.भट्ट ने सरकार की इस योजना पर सवालिया निशान लगाते हुए कहा कि सरकार की घोषणाएं कश्मीरी पंडितों के पूर्णतया सफाए की सुनियोजित साजिश का हिस्सा हैं। घाटी से कुल 55,000 परिवार विस्थापित हुए हैं जिसमें से 200 परिवारों को फिर से बसाने के लिए मकान बनाए जा रहे हैं। अभी तक सिर्फ 100 परिवारों के लिए मकान बन पाए हैं। सरकार इन परिवारों को बसाने पर आमादा है लेकिन इनकी सुरक्षा के इंतजाम क्या हैं? मुट्ठी भर परिवारों को घाटी में बसाकर सरकार उन्हें किसके भरोसे जिन्दा रहने की आस बंधा रही है? क्या राज्य में कानून व्यवस्था नाम की कोई चीज शेष बची है? मंच के राष्ट्रीय अध्यक्ष श्री त्रिलोकी नाथ राजदान ने इस अवसर पर कहा कि इन 15 वर्षों में विस्थापन की त्रासदी ने हमें गहरे घाव दिए हैं लेकिन अपनी जन्मभूमि और अपनी संस्कृति की रक्षा के लिए हमारा संघर्ष जारी रहेगा।उद्घाटन सत्र के मुख्य वक्ता डा. जितेन्द्र बजाज ने जम्मू-कश्मीर की जनसांख्यिकी पर प्रकाश डालते हुए कहा कि कश्मीर से हिन्दुओं के सफाए के प्रयास पिछले 300 वर्षों से चल रहे हैं। परन्तु इन प्रयासों को भारत की जनता और अन्य महापुरुषों ने कभी सफल नहीं होने दिया। डा. बजाज ने इस सन्दर्भ में गुरु तेगबहादुर के बलिदान का वर्णन करते हुए कहा कि घाटी के हिन्दुओं पर अत्याचार के विरुद्ध विगत् 20 वर्षों में जो प्रतिक्रिया भारत की जनता द्वारा होनी चाहिए थी, दुर्भाग्य से वह कहीं नहीं हुई। यह एक खतरनाक संकेत है। डा. बजाज ने कहा कि कश्मीर में सम्प्रदाय विशेष के द्वारा जातीय परिमार्जन का षड्यंत्र लगभग पूरा हो चुका है और यही प्रक्रिया अब देश के अन्य कई राज्यों में प्रारम्भ हो चुकी है। उद्घाटन सत्र के अध्यक्ष प्रो. मनमोहन धर ने कश्मीरियत को बचाने पर बल दिया। इस अवसर पर मंच द्वारा प्रकाशित “विचार” मासिक का लोकार्पण भी किया गया।NEWS

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