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हर पखवाड़े स्त्रियों का अपना स्तम्भतेजस्विनीनीलमकिसी की बेटी, किसी की बहनविजय खुरानाअल्प आयु में उसके माता-पिता का साया सर से उठ गया, लेकिन कुछ ही समय में वह मुहल्ले के प्रत्येक घर की बेटी बन गयी। राजाजी मार्ग, नई दिल्ली स्थित कश्मीर हाउस के एक साधारण परिवार में पैदा हुई थी नीलम। छोटी उम्र में ही माता का निधन हो गया। पिता साधारण श्रेणी के कर्मचारी के रूप में जम्मू-कश्मीर सरकार की सेवा में थे। बचपन के दिन खत्म भी नहीं हुए थे कि पिता का निधन नीलम पर वज्र के समान टूट पड़ा। अपने छोटे भाई के लालन-पालन और घर चलाने की जिम्मेदारी नीलम के नाजुक कन्धों पर आ पड़ी। उसने छोटे बच्चों का ट्यूशन करके जिन्दगी की गुजर-बसर का तरीका निकाला, साथ ही अपने मुहल्ले व पास-पड़ोस के सुख-दु:ख में शामिल होना उसका स्वभाव बन गया है।दृढ़ संकल्पित नीलम ने छोटी-मोटी डाक्टरी का साधारण प्रशिक्षण प्राप्त कर एक अस्पताल में नौकरी करनी शुरू कर दी। फिर क्या था, अपने मुहल्ले के दु:ख-दर्द में उसकी भागीदारी और बढ़ गयी। बीमार लोगों को दवा बताना, इंजेक्शन लगाना, आपात स्थिति में रोगग्रस्त व घायल लोगों को अस्पताल में भर्ती कराना आदि उसकी नियमित दिनचर्या बन गयी है। दिन-भर की ड्यूटी के बाद वह ये सब काम करती है, बिना किसी से एक पैसा लिए। यही नहीं, मुहल्ले की रामलीला कमेटी की वह सदस्य है, भगवती जागरण, योग शिविर अथवा गरीब कन्याओं के विवाह में अपनी सामथ्र्य और शक्ति-बुद्धि के अनुसार जुट जाने में भी वह पीछे नहीं रहती। इसी कारण अपने मुहल्ले के बुजुर्गों की बेटी के रूप में तो लड़के-लड़कियों की बहन के रूप में नीलम ने लोगों के मन में असाधारण स्थान बना लिया है। प्यार का यह नाता कभी उसे अकेलेपन का अहसास नहीं होने देता।विजय खुरानाNEWS
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