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दान, दक्षता, शास्त्र ज्ञान, शौर्य, लज्जा, कीर्ति, उत्तम बुद्धि, विनय, श्री, धृति, तृष्टि और पुष्टि-ये सभी सद्गुण भगवान श्रीकृष्ण में नित्य विद्यमान हैं।-वेदव्यास (महाभारत, सभापर्व, 38/20)न्यायालय का अपमान उनकी आदत हैकांग्रेसियों और कम्युनिस्टों ने कभी भी न तो न्यायपालिका का सम्मान किया और न ही कानून का। कानून की धज्जियां उड़ाते हुए माक्र्सवादी जहां बंगाल में चुनावी प्रक्रिया पर अपना माफिया शिकंजा कसकर जीतने का खेल खेलते रहते हैं, वहीं कांग्रेस ने अपने वोट बैंक और सत्ता के लिए हर स्तर पर न्यायपालिका का तिरस्कार किया। जहां श्रीमती इंदिरा गांधी ने उच्च न्यायालय के न्यायाधीश जगमोहन लाल सिन्हा के फैसले का अपमान करते हुए आपातकाल घोषित कर दिया था और श्री राजीव गांधी ने शाहबानो मामले में न्यायपालिका के एक फैसले को बदलने के लिए संसद में कानून बना डाला था, वहीं राजनीति के प्रेक्षकों को भूला नहीं होगा कि कांग्रेस ने ही प्रतिबद्ध न्यायपालिका पर बहस शुरू की थी और अपने जी हुजूर न्यायाधीशों को न्यायपालिका में बैठाने की कवायद की थी।कम्युनिस्टों ने तो न्यायपालिका पर आघात करने में सभी सीमाएं तोड़ी हैं। उन्हीं की एक हमदर्द और सहगामिनी अंग्रेजी लेखिका ने सर्वोच्च न्यायालय का अपमान किया और एक दिन की सजा यूं पाई मानो “जनहित में शहीद” हो रही हों। उसकी सभी वामपंथी कलमघिस्सुओं ने ऐसी प्रशंसा की मानो कोई बहुत बड़ी जीत हासिल की हो। जब हाल ही में सर्वोच्च न्यायालय ने बंगलादेशी घुसपैठियों को संरक्षण देने वाले आई.एम.डी.टी. कानून को निरस्त किया तो सबसे पहले आलोचना कम्युनिस्टों ने ही की। देश में इस समय कम्युनिस्ट- मुल्ला गठबंधन खुलकर खेल खेल रहा है। ये लोग फिलिस्तीनी शरणार्थियों के बारे में देश भर में प्रदर्शन करते हैं पर बंगलादेश से भारत में हो रहे जिहाद के निर्यात पर खामोशी ओढ़े रहते हैं। इन्हें बंगलादेश से निरंतर आ रहे घुसपैठियों की कोई चिंता नहीं है, जिनके कारण भारत के विभिन्न नगरों में अपराधों तथा अराजकता में वृद्धि हो रही है।हिन्दू संगठनों को न्यायपालिका का सम्मान करने का उपदेश देने वाले कांग्रेसी और कम्युनिस्ट राष्ट्रहित में न्यायपालिका के निर्णयों की सार्वजनिक आलोचना इस सीमा तक करने लगे हैं कि अंतत: सर्वोच्च न्यायालय को विवश होकर यह कहना पड़ा कि यदि आपको हमारे निर्देशों की परवाह नहीं है तो बंद कर दीजिए न्यायालय और फिर जो मन में आए, करते रहिए। सर्वोच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश न्यायमूर्ति आर.सी. लाहोटी की यह टिप्पणी सत्ता के निरंकुश और बेलगाम नेताओं के व्यवहार पर गहरी वेदना से उपजी है। सत्ता पक्ष के लिए यह एक शर्मनाक बात है। लेकिन शर्म तो उसे आए जिसकी आंखों में पानी हो।NEWS
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