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जिहाद का चेहरा- आठ माह की बच्ची का गला काटा!!अडनीजम्मू-कश्मीर के आतंकवादियों की बर्बरता की खबरें आती रहती हैं लेकिन इस संबंध में ताजा खबर महोर क्षेत्र के महसल गांव से आई है जो न केवल दर्दनाक है बल्कि उससे यह बात एक बार फिर स्पष्ट हो जाती है कि ये जिहादी हत्यारे कम से कम इंसान तो नहीं ही हैं। क्या आठ माह की दूध पीती बच्ची की गला रेतकर हत्या कोई इंसान नहीं कर सकता है? आतंकवादियों ने इस बच्ची को केवल इसलिए मौत के घाट उतार दिया कि उसका पिता बशीर अहमद, जो पहले उनका साथी था, अब उस रास्ते से वापस लौट आया पर देवबन्द भी चुप, नदवा भी खामोश। कोई इन मुसलमानों के लिए भी नहीं बोलता, क्योंकि वे अलगाव विरोधी हैं? घर में बशीर अहमद के न मिलने पर आतंकवादियों ने सारा गुस्सा उसकी बच्ची पर उतार दिया।प्राप्त सूचना के अनुसार जब बशीर आतंकवादियों के साथ था तो उन्हें ऐसी जानकारी उपलब्ध कराता था जिससे हमला करने में किसी भी कठिनाई का सामना न करना पड़े। इसके अतिरिक्त वह ऐसे युवकों को भी बहला-फुसलाकर लाता था जिन्हें आतंकवादी बनाया जा सके। बशीर अहमद के कारण आतंकवादियों को महसल गांव के बहुत से लोगों की सहायता प्राप्त होने लगी थी। इस गांव के अनेक नवयुवकों को जिहाद के नाम पर गुमराह किया गया था और कहा गया था वह आजाद नहीं, गुलाम हैं और आजादी पाने के लिए उन्हें बलिदान के लिए तैयार रहना होगा।लेकिन बशीर और दूसरे नवयुवकों को जब इस सच्चाई का अहसास हुआ कि यह सीमापार के लोगों की चाल है तो वह धीरे-धीरे उन लोगों से अलग होने लगे जो उन्हें गुमराह कर रहे थे। आतंकवादियों को यह पसंद नहीं आया और वह उनके दुश्मन बन गए। बशीर की मासूम बच्ची को मारकर उन्होंने एक प्रकार से यह धमकी दी है कि दूसरे लोगों के साथ भी, जो आतंकवाद से अलग हो गए हैं या अलग होना चाहते हैं, ऐसा ही हो सकता है। जम्मू-कश्मीर के कुछ युवकों द्वारा आतंकवाद का रास्ता छोड़ने में सेना की भूमिका महत्वपूर्ण है। सेना के सद्भावना कार्यक्रम से यह बात स्पष्ट होती जा रही है कि विदेशी आतंकवादी, जिनमें तालिबानी और पाकिस्तानी दोनों शामिल हैं, केवल उनका प्रयोग कर रहे हैं और वह उनके मित्र नहीं शत्रु हैं। वे इस बात को भी अच्छी प्रकार महसूस कर रहे हैं कि मासूमों की हत्या का जिहाद या आजादी से क्या मतलब है।NEWS
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