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मदरसे में मासूमों पर जुल्म-मुजफ्फर हुसैनमुजफ्फर हुसैनवे दिन लद गए जब बच्चों को पाठशाला में शारीरिक दण्ड दिया जाता था। आज तो बच्चों को शारीरिक दण्ड देने वाले अध्यापक तथा उस विद्यालय के विरुद्ध कार्रवाई की जाती है। परन्तु आपको विश्वास हो या न हो, राजस्थान के नगर कोटा में आज भी एक मदरसा ऐसा है जिसमें बच्चों को न केवल छड़ी या लात-घूंसों से पीटा जाता है बल्कि मदरसे के छात्रावास में लोहे की बेड़ियों से जकड़ कर भी रखा जाता है। आज की दुनिया में तो पशुओं के साथ भी ऐसा दुव्र्यवहार नहीं किया जाता है। उनके साथ भी दया और सहानुभूति दिखाई जाती है। यदि कोई पशुओं के साथ क्रूरता का व्यवहार करता है तो जीव प्रेमी संगठन व समाज उसके विरुद्ध आवाज उठाते हैं और न्यायपालिका उसे दंडित करती है। लेकिन कोटा (राजस्थान) के गुमानपुरा थाना क्षेत्र में एक मदरसे के मौलवी द्वारा दो बच्चों को लोहे की बेड़ी से बांधे जाने का मामला चर्चा में है। गुमानपुरा थाना प्रभारी सुरजीत सिंह ने बताया कि छावनी काली मस्जिद के पास एक मदरसा है जिसमें स्थानीय बच्चों के अलावा कोटा संभाग के अन्य क्षेत्रों के बच्चे भी मजहबी शिक्षा लेने के लिए आते हैं। मदरसे के मौलवी हैं मोहम्मद लुकमान। खबर है कि इस मदरसे में पढ़ने वाला 11 वर्षीय मोहम्मद फरहान और 12 वर्षीय मोहम्मद सलीम मौलवी साहब की क्रूरता के शिकार बने। झालावाड़ जिले के खानपुर थानान्तर्गत बागडसी के रहने वाले मोहम्मद जाबिर का पुत्र मोहम्मद फरहान तथा तालाबपाड़ा स्थित बारां के निवासी मोहम्मद सलीम का 12 वर्षीय पुत्र अजहरुद्दीन इस मदरसे की पांचवीं कक्षा में पढ़ते थे।बेड़ियों से जकड़कर लोहे कीबेंच से यूं बांधा था मौलवी नेफरहान कोथाना प्रभारी सुरजीत सिंह ने बताया कि गत 28 मई को प्रात: ये दोनों मासूम हांफते-कांपते थाने पहुंचे। फरहान के पांव में बेड़ी पड़ी हुई थी। मोटी लोहे की सांकल लगभग सात-आठ फीट लम्बी लोहे की बेंच से बंधी हुई थी। फरहान आगे-आगे था और अजहरुद्दीन पीछे-पीछे बेंच उठाकर चल रहा था। यह दृश्य देखकर पुलिसकर्मी भौचक्के रह गए। पुलिसकर्मियों ने तुरंत वरिष्ठ अधिकारियों को सूचित किया। अधिकारियों ने वहां पहुंचते ही आनन-फानन में दोनों बच्चों के परिजनों को सूचना दी। दोनों बालकों के पिता थाने आ गए। अपने बच्चों को जिस स्थिति में उन्होंने देखा, उसकी वे कल्पना भी नहीं कर सकते थे। इन बच्चों ने जब अपनी दर्द भरी आप बीती सुनाई तो वहां उपस्थित सभी लोगों के दिल दहल गए और आंखें भीग गईं।फरहान और अजरुद्दीन ने बताया कि पिछले दस माह से उन पर अत्याचारों के पहाड़ तोड़े जा रहे हैं। मौलवी मोहम्मद लुकमान द्वारा उनके साथ मारपीट साधारण-सी बात थी। कोई दिन ऐसा नहीं जाता था जब उन्हें पीटा न गया हो। पर शुक्रवार (27 मई) की रात तो उन्होंने हद कर दी जब फरहान के पैर में बेड़ी लगाकर सांकल का दूसरा सिरा बेंच से बांधकर उस पर ताला लगा दिया। बच्चों ने पुलिस को बताया- हमने शनिवार सबेरे अंधेरे में मदरसे की 15 फीट ऊंची दीवार के सहारे बेंच सीधी खड़ी कर दी। अजहरुद्दीन ने अपने कंधे पर चढ़ाकर फरहान को बेंच पर चढ़ा दिया। बेंच के सहारे वह दीवार पर चढ़ गया। फिर अजहरुद्दीन भी दीवार पर चढ़ गया। दोनों साथी बेंच सहित दीवार से नीचे कूद गए। ज्योंहि रास्ते पर आए तो उन्हें एक व्यक्ति मिला जिसने उन्हेंं पुलिस थाने जाने को कहा।थाना प्रभारी ने बताया कि परिजनों के समक्ष ताला खुलवाया गया और बेड़ी खोलकर दोनों बच्चों को मुक्त किया गया। दोनों बच्चों की चिकित्सकीय जांच भी की गई। बच्चों के बयान के आधार पर मौलवी के विरुद्ध भारतीय दण्ड विधान की धारा 342, 323, किशोर अधिनियम की धारा 41 व जे.जे. एक्ट की धारा 23 के तहत मुकदमा दर्ज कर लिया गया है। परन्तु पुलिस ने ज्योंहि मौलवी की तलाश शुरू की, वह फरार हो गया।उक्त सनसनीखेज समाचार कोटा से प्रकाशित होने वाले सभी समाचार पत्रों ने अपने मुखपृष्ठ पर छापा। पर काली मस्जिद के मदरसा मोहम्मदिया इस्लामिया की समिति ने इस घटना को बच्चों की नादानी बताया है। उनका कहना है कि फरहान के परिजन ही उसे बेड़ियों से बांधकर लाए थे। समिति के सदस्य खालिक तेवर का कहना था कि फरहान पढ़ाई से जी चुराता था और मदरसे से भाग जाता था, इसलिए उसे बेड़ी से बांध दिया गया। जबकि मदरसे से भागे दोनों बच्चों का कहना है कि उन्हें इससे पहले भी इसी तरह बेड़ियों में जकड़ा गया था। फरहान का कहना था कि उसे इससे पहले एक मई से 15 मई तक बेड़ियों से बांधकर रखा गया था। अजहरुद्दीन ने बताया कि पिछले रविवार उसे बेड़ियों से बांधा गया था। इसके जवाब में समिति के अधिकांश सदस्यों का कहना था, “ये बच्चे शरारती हैं इसलिए मौलवी साहब को इस प्रकार के कदम उठाने पड़े।” मदरसे में पढ़ने वाले कुछ और बच्चों की इसी प्रकार की शिकायत के बाद मौलवी साहब को बचाने के लिए अब अभिभावकों ने अपने बच्चों की शिकायत अपने ऊपर ले ली है। एक तरफ जागरूक नागरिक इसकी निंदा कर रहे हैं लेकिन दूसरी तरफ कट्टरवादी लोग मौलवी को बचाने की कोशिश कर रहे हैं। उनका कहना है, “मदरसों का अपमान अंतत: उनके समाज का अपमान है।”लेकिन यह मामला किसी एक मदरसे का नहीं हैं। फरहान और अजहरुद्दीन जैसे असंख्य बालक होंगे जिन्हें इस प्रकार की यातनाएं भुगतनी पड़ रही होंगी। क्या भारत का शिक्षा विभाग इस प्रकार के मदरसों को चलने देगा? क्या इस प्रकार का अमानवीय व्यवहार भारत के इन भावी नागरिकों के साथ न्यायिक कहा जाएगा? यदि नहीं तो इसका हल क्या है? कोटा का मामला तो सामने आ गया लेकिन इस प्रकार की अन्य संस्थाएं कितनी होगी, इसकी छानबीन तो केवल शिक्षा मंत्रालय और पुलिस ही कर सकती है।मदरसों का यह शिक्षण और मौलवियों का अत्याचार स्वयं मुस्लिम समाज को खोखला कर रहा है। मदरसों की स्थापना इस्लामी शिक्षा देने के लिए की जाती है। इन मदरसों का उद्देश्य सच्ची मजहबी शिक्षा देना होता है, जिससे मानवता को बल मिल सके। लेकिन इस्लाम को बदनाम करने के लिए मुट्ठी भर तत्व इस प्रकार की बेहूदा हरकतें करते हैं। इसलिए जरूरी है कि अच्छे मुसलमान आगे आकर इसकी रोकथाम करें।NEWS
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