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पुरुषोत्तम तोषनीवालवह दिन दूर नहीं जब गोवंश के आधार पर देश के गांव-गांव में आर्थिक समृद्धि का नया सवेरा उदित होगा। आज गोवंश आधारित आर्थिक विकास की बात हमारे अर्थशास्त्रियों को भले ही काल्पनिक लगे, लेकिन विश्वास करिए कि अब जो होने जा रहा है, नि:सन्देह उससे गाय की उपादेयता को नकारने वाले भी गोवंश पालन को महत्व देने के लिए मजबूर हो जाएंगे। कानपुर गोशाला सोसायटी ने कुछ ऐसा ही कमाल किया है। और यहां हो रहे सफल प्रयोगों के वास्तविक जनक हैं श्री पुरुषोत्तम लाल तोषनीवाल, जिन्हें हाल ही में प्रकृति भारती द्वारा “प्रकृति सम्मान 2005” देने की घोषणा की गई है। सन् 1994 में जब उन्होंने महामंत्री के रूप में सोसायटी की कमान संभाली थी, तब ये गोशालाएं लगभग दम तोड़ चुकी थी। गोवंश थोड़ा ही बचा था और आर्थिक व्यवस्था पूर्णतया जर्जर हालत में थी, लेकिन श्री तोषनीवाल ने गोदुग्ध के साथ गोमूत्र और गोबर की शक्ति पर अपना ध्यान केन्द्रित किया और आज परिणाम सामने है। गत 13 अप्रैल को योगीराज स्वामी रामदेव ने गोशाला में चल रहे इन उपक्रमों को देखा तो उनके आनंद की सीमा न रही। बोले, “गोसेवा स्वयं में प्रशस्त व पुण्य भरा कार्य हैं, इस सेवा की सार्थकता इसी में है कि हम गोवंश को नवयुग के अनुकूल उत्पादक व सृजनात्मक दृष्टि से सम्पन्न करें। नि:संदेह कानपुर गोशाला सोसायटी ने इस सन्दर्भ में अद्भूत कार्य किया है।” कानपुर से 20 कि.मी. दूर सोसायटी द्वारा संचालित भौती गोशाला में शीघ्र ही सीएनजी निर्माण के लिए परियोजना स्थापित की जाने वाली है। अब गोबर गैस प्लांट से प्राप्त होने वाली गैस सिलिंडर में भरी जा सकेगी और वाहन चलाने में, रेफ्रिजरेशन में, भोजन बनाने में, भवन निर्माण के अनेक कार्यों में इस गैस सिलिंडर का सहजता से उपयोग किया जा सकता है।गोशाला में फिलहाल गोबर गैस के दो प्लांट ही संचालित हो रहे हैं। नई परियोजना के अन्तर्गत उत्पादित गैस को पाइप लाइन द्वारा अन्यत्र भेजना सम्भव हो सकेगा। अनेक वैज्ञानिक प्रयोगों के बाद गोशाला ने गोबर से जल एवं अग्निरोधी टाइल्स, एस्बेस्टस शीट के निर्माण में भी सफलता प्राप्त कर ली है। साथ ही गोमूत्र के द्वारा गोशाला में कीटनाशक, फिनायल, पंचगव्य साबून, प्राकृतिक शैम्पू, टूथपेस्ट, आफ्टर शेव लोशन, नील आदि अनेक दैनिक उपयोग की वस्तुएं भी निर्मित की जा रही हैं और ये सभी वस्तुएं आई.आई.टी. और एच.बी.टी. आई., कानपुर जैसे तकनीकी संस्थानों द्वारा अत्यंत गुणवत्ता सम्पन्न वस्तुओं के रूप में प्रमाणित भी की गई हैं। इस मशीनी युग में जहां खेती का हर काम बिना बिजली और डीजल जनरेटर के होना कठिन हो गया है, गोशाला द्वारा बैल चालित पÏम्पग सैट जो 100 फूट की गहराई से पानी निकालने में सक्षम है तथा बैल चालित जनरेटर का निर्माण किया जाना वस्तुत: क्रान्तिकारी प्रयोग ही कहे जाएंगे। वास्तव में इन प्रयोगों ने एक बार पुन: आधुनिक सभ्यता में बेकार माने जा रहे बछड़ों व बैलों को नई जिन्दगी दे दी है। साथ ही गांव-गांव में किसानों- जवानों को स्वावलंबन का नया मंत्र भी दे दिया है।सिद्धार्थ सिंहNEWS
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