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प्रकृति भारती संस्थान द्वारा धरा और देव-भाव का संगम

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Apr 9, 2005, 12:00 am IST
in Archive
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दिंनाक: 09 Apr 2005 00:00:00

एकवर्षीय डिप्लोमा पाठ्यक्रम शुरू, अगले साल से डिग्री भी देंगे।-विजय कुमारवस्तुत: पश्चिम की प्रगति की सोच एकांगी है। इसके विपरीत भारत का दृष्टिकोण ईशावास्योपनिषद के इस मंत्र पर आधारित है-ईशावास्यमिदं सर्वं यत्कचित्जगत्यां जगत्तेन त्यक्तेन भुंजीथा, मा गृध: कस्यस्विद्धनम्।।”इस सृष्टि में जो कुछ भी है, सबका निर्माता ईश्वर ही है। इसलिए प्रत्येक वस्तु का त्यागपूर्वक उपभोग करो तथा दूसरे की धन सम्पत्ति का लालच न करो।” इसी दर्शन को आधार मानने वाले कुछ समाजसेवी लोगों ने तीन साल पूर्व “प्रकृति भारती” नामक संगठन की नींव रखी। इसके लिए संगठन ने समाज जागरण की एक सतत श्रृंखला प्रारम्भ की है। इसके अन्तर्गत सभा, गोष्ठी, सम्मेलन, प्रकाशन, पुरस्कार आदि प्रयोग प्रारम्भ किए हैं। आज विश्व आयुर्वेद परिषद्, लोक भारती, गोसंरक्षण एवं संवद्र्धन परिषद्, आरोग्य भारती जैसी अनेक संस्थाएं भी प्रकृति भारती के साथ कंधे से कंधा मिलाकर कार्यरत हैं।संस्था के महामंत्री डा. राजेश दुबे बताते हैं कि 6 से 8 सितम्बर, 2002 को आई.आई.टी. दिल्ली में “पंचगव्य एवं गोवंश आधारित अर्थव्यवस्था” पर एक भव्य सम्मेलन हुआ था। इसमें शासन-प्रशासन तथा विज्ञान क्षेत्र के महत्वपूर्ण लोग पधारे थे। भारत की पांचों आई.आई.टी. का प्रतिनिधित्व इसमें था। इसके अतिरिक्त धर्म भावना से गोशाला चलाने वाले, गोबर, गोमूत्र तथा गो-उत्पादों पर शोध करने वाले सैकड़ों कार्यकर्ता भी इसमें आए थे। तीन दिन तक सभी ने एक-दूसरे के अनुभवों से लाभ उठाया। यहां से ही एक संगठन के रूप में “प्रकृति भारती” की नींव पड़ी।इसके बाद 11 से 13 अक्तूबर, 2003 को “कृषि अनुसंधान संस्थान, पूसा, नई दिल्ली” में एक अन्य सम्मेलन “प्रकृति- 2003” किया गया। इस सम्मेलन का केन्द्रीय विषय था “प्रकृति आधारित सतत विकास”। इसमें सात आधारभूत विषयों पर चर्चा की गयी। ये थे 1. पंचगव्य एवं अर्थव्यवस्था 2. जैविक कृषि 3. जल संसाधन प्रबंधन 4. वन संपदा एवं औषधीय पौधों की खेती 5. पर्यावरण एवं ऊर्जा 6. ग्रामीण तकनीक एवं ग्रामोद्योग तथा 7 ग्राम विकास।इन सम्मेलनों के आयोजन से देश के वैज्ञानिक वर्ग में यह विषय चर्चित होने लगे। अगली कड़ी में 26 से 31 अक्तूबर, 2004 को भोपाल के दशहरा मैदान पर तीसरा सम्मेलन “प्रकृति-2004” आयोजित किया गया। इसमें 5 नए विषय लिए गए- 1. मृदा सुधार 2. पशु आहार 3. जैविक सब्जी व फल उत्पादन 4. विपणन, खपत एवं आपूर्ति तथा 5. बैलचालित कृषि यंत्र एंव ऊर्जा। भोपाल सम्मेलन में म.प्र. शासन के कृषि विभाग का भरपूर सहयोग रहा। इसमें 1500 कार्यकर्ताओं की उत्साहजनक सहभागिता रही।इन सम्मेलनों में हुए विचार विमर्श के आधार पर अनेक पुस्तकों, स्मारिकाओं आदि का प्रकाशन किया गया है, जिससे उसका लाभ अन्य वैज्ञानिक, समाजसेवी तथा इस क्षेत्र में अनुसंधान कर रहे लोग उठा सकें। संस्था ने प्रशिक्षण देने के लिए एकवर्षीय डिप्लोमा पाठ्यक्रम प्रारम्भ किया है। आगामी सत्र से दो वर्षीय डिग्री पाठ्यक्रम भी शुरू हो जाएगा। इसे चौधरी चरणसिंह वि.वि., मेरठ, महर्षि दयानंद सरस्वती वि.वि., उदयपुर तथा अजमेर व कोटा वि.वि. ने मान्यता दे दी है। विकास का अर्थ प्रकृति का शोषण नहीं अपितु दोहन एवं संवद्र्धन है। इसी विचार को लेकर प्रकृति भारती फिर से मानव जाति को प्रकृति से जोड़ने के अभियान में सक्रिय हुई है।NEWS

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