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हर पखवाड़े स्त्रियों का अपना स्तम्भउनकी नजरों में बेटी-बहू बराबरअपनी सास के साथ एक कार्यक्रममें श्रीमती पारुल4 दिसम्बर, 2005 को मेरी शादी के सात साल पूरे हो जाएंगे। यह समय कैसे बीत गया, पता ही नहीं चला। शादी से पहले अपनी सास को लेकर मेरे मन में कई प्रश्न थे। मैं हमेशा उनके बारे में सोचती कि वे कैसी होंगी? क्या वह मुझे अपनी बेटी के रूप में स्वीकार करेंगी? या वह हिन्दी सिनेमा की किसी ठेठ सास की तरह होंगी। किन्तु जैसा मैंने सोचा था वह उसके एकदम विपरीत निकलीं। वह शांत स्वभाव की, मिलनसार, पढ़ी-लिखी एवं सभी को स्नेह देने वाली हैं। शादी के बाद पता ही नहीं चला कि वह और मैं कब एक दोस्त बन गए। उनके दिल में अपनी एक अलग जगह बनाने में मुझे ज्यादा वक्त नहीं लगा और मैं शीघ्र ही जान गई कि वे बहुत ही कोमल हृदय की सहनशील महिला हैं।मेरी सास, मेरी मां, मेरी बहू, मेरी बेटीजब भी सास बहू की चर्चा होती है तो लगता है इन सम्बंधों में सिर्फ 36 का आंकड़ा है। सास द्वारा बहू को सताने, उसे दहेज के लिए जला डालने के प्रसंग एक टीस पैदा करते हैं। लेकिन सास-बहू सम्बंधों का एक यही पहलू नहीं है। हमारे बीच में ही ऐसी सासें भी हैं, जिन्होंने अपनी बहू को मां से भी बढ़कर स्नेह दिया, उसे आगे बढ़ने के लिए प्रोत्साहित किया। और फिर पराये घर से आयी बेटी ने भी उनके लाड़-दुलार को आंचल में समेट सास को अपनी मां से बढ़कर मान दिया। क्या आपकी सास ऐसी ही ममतामयी हैं? क्या आपकी बहू सचमुच आपकी आंख का तारा है? पारिवारिक जीवन मूल्यों के ऐसे अनूठे उदाहरण प्रस्तुत करने वाले प्रसंग हमें 250 शब्दों में लिख भेजिए। अपना नाम और पता स्पष्ट शब्दों में लिखें। साथ में चित्र भी भेजें। प्रकाशनार्थ चुने गए श्रेष्ठ प्रसंग के लिए 200 रुपए का पुरस्कार दिया जाएगा।विवाह के पूर्व अपने घर पर तो मैं ज्यादातर रसोई आदि के कामों से दूर ही रही किन्तु विवाह के बाद रसोई की जिम्मेदारी मुझ पर आ पड़ी और कुछ ही दिन में मुझे दिन में तारे दिखने लगे। तब मम्मी जी (मेरी सास जिन्हें मैं इसी तरह बुलाती हूं) ने मुझे संभाला, मुझे घर चलाने की असली जानकारी तो उन्होंने ही दी।एक बार मेरी एक ननद की मुझसे किसी बात को लेकर अनबन हो गई तब मम्मी ने अपनी बेटी यानी मेरी ननद जी को चुप कराते हुए कहा कि गलत बात पर बहस मत करो। मेरी तरफदारी करते हुए उन्होंने ननद जी को डांटा भी। यद्यपि बाद में उनके समझाने पर मैंने और ननद जी ने परस्पर के मतभेद खत्म कर लिए, लेकिन उनका उस दिन मेरी तरफ से बोलना मेरे मन को छू गया। कभी-कभी जब मैं अस्वस्थ रहती हूं, वे घर का सारा काम संभाल लेती हैं, मेरे कहने के बावजूद उन्होंने मुझे कभी बीमारी हालत में कोई काम करने नहीं दिया। घर के अनेक मामलों में जब कहीं कोई दिक्कत होती, वे मुझसे सलाह लेना कभी नहीं भूलतीं। उनकी इन्हीं खूबियों ने मेरे मन में उनके प्रति एक विशेष स्थान बनाया। हमारा और मम्मी जी का रिश्ता सदा ऐसे ही बना रहे, बस यही प्रभु से कामना है।पारुल107/40, गली नं. 4आजाद नगर (पूर्व), दिल्ली-110051NEWS
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