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हर पखवाड़े स्त्रियों का अपना स्तम्भहम क्यों भूलते हैं ये हमारी ही बहू-बेटियां हैंबी.एल. सचदेवाबी.एल. सचदेवाभारत में युगों-युगों से महिलाओं का विशेष स्थान रहा है और उन्हें सम्मान की दृष्टि से देखा जाता रहा है। इसके परिणामस्वरूप प्राचीन समय से लेकर अब तक ऐसी हिन्दू महिलाओं के अनगिनत उदाहरण हैं जिन्होंने अपनी प्रतिभा और परिश्रम से दुनिया के समक्ष आदर्श उपस्थित किया है। किन्तु जब बात स्त्री पर होने वाले अत्याचारों की आती है तो भारतीय समाज इस ओर से आंखें मूंद लेता है। आज भी युवतियों को अंतरजातीय विवाह करने की सहज स्वीकृति नहीं है और जो युवतियां अपने परिवार के विरोध में जाकर ऐसा करती हैं, वे परिवार के उत्पीड़न से परेशान होकर आत्महत्या जैसे खतरनाक कदम उठाने को बाध्य होती हैं या फिर अपने स्वजनों द्वारा मार दी जाती हैं। आए दिन अखबारों में विशेषत: हरियाणा, पंजाब, उत्तर प्रदेश में इस प्रकार की घटनाएं पढ़ने को मिल जाती है। यही बात दहेज के सन्दर्भ में भी देखने में आती है। यहां यह उल्लेखनीय है कि अपरिपक्व अवस्था में युवक-युवतियों के मध्य पनपा प्रेम क्षणिक होता है। टी.वी, इलेक्ट्रानिक माध्यमों के चलते इन घटनाओं में बढ़ोत्तरी ही हुई है। समाज को इस विषय में जागरूक किया जाना बहुत जरूरी है। हमें यह कभी नहीं भूलना चाहिए कि हम जिन पर अत्याचार करते हैं, वे हमारी ही बेटियां हैं, हमारे घर की बहू हैं।बी.एल.सचदेवा263, आईएनएस मार्केट,नई दिल्ली-110023NEWS
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