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फिर न्यायपालिका से टकराव

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Apr 9, 2005, 12:00 am IST
in Archive
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दिंनाक: 09 Apr 2005 00:00:00

फिर वही चलाएं सरकार भी-राम कुमार आनंदवरिष्ठ अधिवक्ता, सर्वोच्च न्यायालय एवं राज्यसभा सदस्य (कांग्रेस)संविधान के अंतर्गत तीन अंग हैं- न्यायपालिका, विधायिका और कार्यपालिका। इन तीनों के अपने तय कार्य हैं और उसके अनुसार उन्हें शक्ति प्राप्त है। हमारा इतना ही आग्रह रहता है कि तीनों ही अंगों को अपनी सीमाओं में रहते हुए कार्य करना चाहिए।निजी व्यावसायिक शिक्षण संस्थानों में आरक्षण की बात को लेकर जो बहस शुरू हुई, वह बेवजह थी। अदालत ने तो इतना ही कहा था कि अगर आरक्षण चाहते हैं तो कानून बनाकर कर सकते हैं। सरकार ने इस पर कानून बनाने की बात कह दी। इसमें टकराव की बात ही कहां है? हां, मैं मानता हूं कि सांसदों को किसी न्यायाधीश के लिए किसी तरह की टीका-टिप्पणी नहीं करनी चाहिए। लेकिन यह भी तय है कि न्यायपालिका के सभी फैसले बिल्कुल ठीक भी नहीं होते। साथ ही, न्यायाधीशों को भी इतना संवेदनशील नहीं होना चाहिए कि किसी के कुछ कहने से वे आवेशित हो जाएं।एक उदाहरण देता हूं। आई.एम.डी.टी. कानून के बारे में यह कहना कि यह बंगलादेशियों का भारत में आना सुलभ कर रहा था, गलत है। 1947 में बंगलादेश (तब पूर्वी पाकिस्तान) में हिन्दुओं की आबादी 27 प्रतिशत थी, आज 9 प्रतिशत है। अर्थात् वहां से जो भारत में लोग आए उनमें केवल मुस्लिम ही नहीं, हिन्दू भी थे। अत: आज यह कहना कि वहां से आने वाले लोग जनसांख्यिक आक्रामक थे, गलत है। जो व्यक्ति शरणार्थी बनकर आया है, उसे जनसांख्यिक आक्रामक कैसे कह सकते हैं? मेरा मानना है कि इस मुद्दे का राजनीतिकरण किया गया है।मुझे समझ नहीं आता कि 1971 से 1983 के बीच तेरह साल में विदेशी कानून बहुत प्रभावी कार्य नहीं कर पाया तो आई.एम.डी.टी.कानून को भी थोड़े समय और बनाए रखने में क्या दिक्कत थी? दरअसल बंगलादेशियों के मुद्दे पर सब अपनी राजनीतिक रोटियां सेंक रहे हैं।बहरहाल, जहां तक न्यायपालिका की अतिसक्रियता की बात है तो उसमें दो राय नहीं है। क्या यह न्यायाधीशों का काम है कि गाय-भैंस पकड़ने का निर्देश दें? मैं समझता हूं कि आप एक दिन में सारे हिन्दुस्थान को ठीक नहीं कर सकते। एयरकंडीशंड कमरों में बैठकर देश नहीं चलाया जा सकता। अदालत कहती है कि हमें बंद कर दें तो फिर अदालत से ही कहना चाहिए कि वे ही सरकार चलाएं। आपने सरकार बनाई ही क्यों है?कुछ लोग कहते हैं कि कांग्रेस का जब शासन होता है तब अदालत के विरुद्ध खूब बढ़-चढ़कर संसद में और बाहर बोला जाता है। इसका जवाब इतना ही है कि कांग्रेस के राज में भ्रष्टाचार नहीं होता, जैसा कि राजग के राज में होता था।झारखण्ड के मामले पर सर्वोच्च न्यायालय ने जो किया, उस संदर्भ में मैं लोकसभा अध्यक्ष श्री सोमनाथ चटर्जी के मत से सहमत हूं। श्री चटर्जी ने कहा था कि आप (न्यायालय) यह नहीं कह सकते कि संसद का एजेंडा कैसा होना चाहिए। अदालत को इसका अधिकार नहीं है। मैं पहला व्यक्ति था जिसने कहा था कि झारखण्ड पर अदालत का फैसला गलत है।NEWS

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