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तरुण विजययह है “उदारवादी” इस्लाम का चेहराफिर से जन्मे 1857 की भावना और गलत को गलत कहने की हिम्मतइस्लाम के बारे में जब कहा जाता है कि वह उदारवादी, भाईचारे वाला, मैत्रीपूर्ण और शांति का संदेश देने वाला मजहब है तो यह सुनने में भला किसे आपत्ति हो सकती है! इन दिनों भारत के सेकुलर विद्वानों में यह सिद्ध करने की होड़ है कि इस्लाम का अर्थ है शांति, अमन और चैन। उनके अनुसार इस्लाम आतंकवाद पसंद नहीं करता, आतंकवाद की प्रेरणा नहीं देता, और जो आतंकवादी इस्लाम के नाम पर खून-खराबा करते हैं वे पश्चिम के षड्यंत्र के अन्तर्गत काम कर रहे हैं, जिनके काम को इस्लाम स्वीकृति नहीं देता। वे यह भी कहते हैं कि जब इन मुस्लिम नौजवानों में गतिविधियों को देखा जाए तो ध्यान में रखना चाहिए कि अमरीका मुसलमानों के विरुद्ध दुनिया भर में क्या-क्या कर रहा है। इस कारण से मुस्लिम नौजवानों की गुस्सा तो पैदा होता ही है। भले ही ऐसे लोग आज नगण्य, अल्पसंख्या में हों और अक्सर लंदन, न्यूयार्क, वाशिंगटन के सत्ता गलियारों या दिल्ली के आईआईसी में साफ-सुथरी सफाइयां पेश करने वाला चेहरा दिखाते नजर आएं, पर खबरें तो कुछ और ही कहती हैं।हमारा अपना सरबजीत सिंह, जिसे नशे की हालत में सीमा पार कर जाने पर पाकिस्तानी रेंजरों ने पकड़ा और उससे जबरदस्ती कागजों पर दस्तखत करवा कर 15 साल जेल में रखा। उसे जेल में इतना मारा पीटा गया, इतनी यातनाएं दी गईं कि क्षयरोग (टी.बी.) हो गया। ऐसी हालत में जब उसे ताजी हवा की जरूरत थी तो इस्लाम के पहरेदारों ने शर्त रखी कि जब तक तुम इस्लाम कबूल नहीं करते तब तक तुम्हें जेल के अंदर ताजी हवा नहीं लेने दी जाएगी। अंग्रेजी दैनिक “द ट्रिब्यून” में छपी खबर के अनुसार उसे जबरदस्ती मुसलमान बनाया गया, उसके बाद ही उसे ताजी हवा में आने की इजाजत मिली। अब भारत के सेकुलर और इस्लाम के रक्षक बताएं कि जेल में बंद एक असहाय, मजबूर और कुछ भी करने में असमर्थ आदमी को इसी तरह से जबरदस्ती मुसलमान बनाकर क्या इस्लाम की इज्जत बढ़ी? या इस तरह इस्लामवादियों ने मुसलमान बनाने के अपने पुराने तरीके ही जारी रखे हैं?सरबजीत की रिहाई के लिए देश भर में प्रार्थनाएं,भारत का बेटा लौटना ही चाहिए।एक और घटना इसी हफ्ते मलेशिया में घटी है। मलेशिया यानी आधुनिक, भविष्योन्मुख तथा सांस्कृतिक धरातल पर खुले दिल और दिमाग वाला मुस्लिमबहुल देश। आखिर ऐसी ही छवि तो है दुनिया भर में मलेशिया की। उसके पर्यटन विज्ञापनों में कहा भी जाता है कि “मलेशिया यानी सच्चा एशिया।” भारत से हर साल हजारों यात्री वहां घूमने के लिए जाते हैं। उस मलेशिया में कुछ साल पहले एक नये सम्प्रदाय ने जन्म लिया, जिसका नाम रखा गया गगन-राज (स्काई किंगडम)। इसके प्रवत्र्तक हैं अया पिन। उनका कहना है कि दुनिया में सब मजहब भगवान तक जाते हैं। आप किसी भी रास्ते से चलें, विश्वास के साथ चलें तो ईश्वर की प्राप्ति संभव है। आपस में प्रेम और भाईचारे के साथ रहना चाहिए। आप किसी भी मजहब को मानें, कोई दिक्कत नहीं है। वे मंदिर भी जाते हैं, विभूति लगाते हैं। वे शिव की पूजा भी करते हैं। ईसा मसीह को भी अच्छा बताते हैं। मोहम्मद साहब को भी महापुरुष मानते हैं। मलेशियाई मुल्लाओं को यह सब पसंद नहीं आया। उन्होंने इसके खिलाफ बगावत कर दी और मलेशिया सरकार ने अपनी पुलिस भेजकर गगन-राज के मुख्य केन्द्र को बुलडोजर द्वारा पूरी तरह से नष्ट कर दिया। उसके समर्थक गिरफ्तार कर लिए गए और अया पिन वहां से पलायन करने पर मजबूर कर दिए गए। अया पिन कहां हैं यह किसी को मालूम नहीं है लेकिन उनके समर्थकों ने वहां की अदालत में एक याचिका दायर की है जिसमें उन्होंने स्पष्ट रूप से कहा है कि उन्होंने इस्लाम पंथ छोड़ दिया है। मलेशिया के सेकुलर संविधान के अन्तर्गत वे ऐसा करने के लिए स्वतंत्र हैं। अब वे गगन-राज पंथ के अनुयायी हैं इसलिए उनके विरुद्ध कार्रवाई नहीं की जा सकती। लेकिन मलेशिया की सरकार उनकी कोई बात नहीं सुन रही है। सरकार का कहना है कि उन लोगों ने इस्लाम की शिक्षा के विरुद्ध काम किया है इसलिए उनके विरुद्ध कार्रवाई की जाएगी।यह है “उदारवादी” इस्लामी समाज का असली चेहरा। जब तक मुसलमान अल्पसंख्या में रहते हैं तब तक वे अपने लिए विशेष सुविधाएं एवं विशेषाधिकार मांगते रहते हैं। जब वे बहुसंख्यक हो जाते हैं तो अल्पसंख्यकों की प्रत्येक स्वतंत्रता को खत्म कर देते हैं। जब तक मुसलमान अल्पसंख्यक होते हैं तब तक वे दूसरों का मतान्तरण कर उनको मुसलमान बनाना अपना हक मानते हैं। लेकिन जब वे स्वयं बहुसंख्यक हो जाते हैं तो वे अन्य मत-पंथों में मतान्तरण की स्वतंत्रता खत्म कर देते हैं। मलेशिया का उदाहरण भी यही बताता है और पाकिस्तान का भी। पाकिस्तान में तो संविधान के अन्तर्गत गैरमुस्लिमों को दूसरे दर्जे का नागरिक बनाया गया है। मलेशिया में अगर कोई दूसरा पंथ भाईचारे का संदेश देता है तो उसकी भी इजाजत नहीं दी जाती। जब तक भारत में मुस्लिम अल्पसंख्या में हैं, वे हर दिन अपने लिए विशेषाधिकार, आरक्षण और सुविधाएं मांगते रहेंगे। लेकिन जैसे ही किसी प्रांत में बहुसंख्यक हो जाएंगे, जैसे कश्मीर में, तो वहां से वे हिन्दू अल्पसंख्यकों को निकालना शुरू कर देंगे। यह है इस्लाम का उदारवादी चेहरा?यह समय है जब पुन: 1857 की क्रांतिकारी भावना और एकजुटता प्रदर्शित करते हुए जो गलत है उसे गलत कहने का मुसलमान साहस दिखाएं। जिन पर भी वे भरोसा करते हों उनके साथ मिलकर नफरत, आतंकवाद और मजहबी विद्वेष के खिलाफ प्रथम स्वतंत्रता संग्राम की मूल एकात्मता को फिर से जीवंत करें। यही भारत की महानता के प्रति हम सबका एक ऋणोन्मूलन प्रणाम होगा।NEWS
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