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सहनशील होना अच्छी बात है। परन्तु अन्याय का विरोध करना उससे भी उत्तम है।-जयशंकर प्रसाद (तितली, पृ.150)मुख्तारन माई और इमरानापाकिस्तान में मुख्तारन माई का साहस और कट्टरपंथी मुल्लाओं के सामने खड़े होने की उसकी हिम्मत सारी दुनिया में चर्चा का विषय बनी है। मुख्तारन माई के भाई से स्थानीय नागरिक नाराज थे इस कारण उन्होंने बदला लिया मुख्तारन माई से। पंचायत ने फैसला दिया कि मुख्तारन के साथ सामूहिक बलात्कार किया जाएगा और चार लोगों ने मुख्तारन के साथ जबरदस्ती करने के बाद उसे लगभग अद्र्धनग्न स्थिति में घर भेजा। मुख्तारन ने जो किया वह पाकिस्तान में सामान्यत: मुस्लिम महिलाएं करने की हिम्मत नहीं रखतीं। उसने पुलिस में रपट ही दर्ज नहीं कराई बल्कि जो चार बलात्कारी थे उन्हें पहचानने के लिए भी आगे आई। मुख्तारन की पहचान पर बलात्कारियों को गिरफ्तार तो किया गया, लेकिन आगे कुछ हुआ नहीं। फिर मुख्तारन को ही गांव में एक अछूत जैसी जिंदगी जीने पर मजबूर किया गया। जब यह चर्चा अखबारों के माध्यम से अमरीका तक पहुंची तो वहां से कुछ लोग मुख्तारन की सहायता के लिए आए, जिनके माध्यम से मुख्तारन ने गांव में न सिर्फ खुद पढ़ना शुरू किया बल्कि एक स्कूल भी खोला और एक एम्बूलेंस सेवा शुरु की। वह खुद पढ़ना चाहती है और अपने गांव के बच्चों को भी पढ़ाना चाहती है। इस समय मुख्तारन खुद चौथी कक्षा में पढ़ रही है। जब उसकी कथा से प्रभावित होकर अमरीका की कुछ संस्थाओं ने मुख्तारन को अमरीका बुलाना चाहा तो परवेज मुशर्रफ ने उसकी अमरीका यात्रा पर प्रतिबंध लगा दिया। पत्रकारों ने जब उनसे पूछा तो जनरल साहब ने कहा कि वह अमरीका में पाकिस्तान की बदनामी नहीं चाहते। अमरीकी पत्रकारों ने वहां के लगभग सभी प्रसिद्ध अखबारों में लिखा है कि पहली बार परवेज मुशर्रफ को अपने मुकाबले में एक हिम्मत वाली महिला खड़ी दिखी है जिसने जनरल की सत्ता को डरा दिया है। इस प्रकार की खबरें छपने के बाद मुशर्रफ के दफ्तर के कुछ अधिकारियों ने मुख्तारन से कहा कि अगर तुम अमरीका जाना चाहती हो तो तुम्हें हम ले चलते हैं। मुख्तारन ने फिर साहस दिखाया और कहा, “मैं तुम्हारे साथ नहीं जाऊंगी। अगर जाऊंगी तो पूरी आजादी से अकेले जाऊंगी ताकि जिससे मिलना चाहूं मिल सकूं और जो बात कहना चाहूं कह सकूं।” अभी तक मुख्तारन माई को अमरीका भेजे जाने पर पाकिस्तान सरकार ने कोई फैसला नहीं किया है। लेकिन पाकिस्तान की मुल्लाओं की दहशत में चलने वाली सरकार इस मामले से दुनिया में अपने इस्लामी चेहरे को लेकर शर्मिंदा जरूर हो रही है।दूसरा किस्सा है भारत के मुजफ्फरनगर जिले का। यहां भी मुल्लाओं की अंधी पंचायत ने एक ससुर की हवस का शिकार बनी पुत्रवधू इमराना को आदेश दिया कि अब चूंकि ससुर ने उसके साथ शारीरिक संबंध कायम कर लिया है अत: वह ससुर की बीवी बनकर रहे और अपने पति को पुत्रवत् स्वीकार करे। यह फैसला होने के बाद कहीं किसी मुस्लिम संगठन ने इसके विरोध में कोई आवाज नहीं उठाई और वे तमाम सेकुलर भी, जो हिन्दुओं को उपदेश देते नहीं अघाते, सन्नाटे में खो गए। लेकिन इमराना की बहादुरी का अभिनंदन। उसने मुल्लाओं की पंचायत का फैसला मानने से इनकार कर दिया। उसके फैसले में उसका पति भी उसके साथ आकर खड़ा हुआ। इमराना ने मांग की है कि उसके ससुर को फांसी की सजा दी जाए। वह वापस अपने पति के साथ रहने के लिए लौट आई है।ये दोनों समाचार मुस्लिम समाज में आ रही हिम्मत और मुस्लिम स्त्रियों द्वारा न्यायपूर्ण अधिकारों की आवाज बुलंद किए जाने के प्रेरक उदाहरण हैं। सामाजिक कुरीतियां और रूढ़ियां सभी समाजों में पाई जाती हैं। उनके विरुद्ध सब मिल-जुलकर काम करें और इस प्रकार के मामले को मतांधता तथा साम्प्रदायिक विद्वेष के सेकुलरी तेजाब से बचाकर रहें तो समाज में गलत परंपराओं के निर्मूलन को बढ़ावा मिल सकता है।NEWS
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