|
वाजपेयी और मनमोहन सिंह में चिट्ठियों की अदला-बदलीश्री अटल बिहारी वाजपेयीडा. मनमोहन सिंहप्रधानमंत्रीआल पार्टी हुर्रियत कांफ्रेंस के नेताओं का पाकिस्तान दौरा पुन: चर्चा का विषय बन गया है। पूर्व प्रधानमंत्री श्री अटल बिहारी वाजपेयी ने इस मुद्दे पर प्रधानमंत्री डा. मनमोहन सिंह को लिखे एक पत्र में नाराजगी जताते हुए कहा है कि पाकिस्तान के साथ शांति प्रक्रिया अब कश्मीर-केन्द्रित हो गई है। गत 16 जून को प्रधानमंत्री को लिखे अपने पत्र में श्री वाजपेयी ने सरकार पर आरोप लगाया कि कल तक हुर्रियत के जो उदारवादी नेता थे, आज वे भी पाकिस्तान के सुर में सुर मिला रहे हैं। सरकार हुर्रियत नेताओं को जम्मू-कश्मीर के लोकतांत्रिक ढंग से चुने गए प्रतिनिधियों की तुलना में ज्यादा महत्व दे रही है। श्री वाजपेयी ने 6 जनवरी, 2004 को जारी हुए भारत-पाकिस्तान साझा घोषणा पत्र का जिक्र करते हुए कहा कि काफी प्रयास और सतत कूटनीति के बाद पाकिस्तान को रिश्ते सामान्य बनाने की व्यापक प्रक्रिया के लिए तैयार किया गया था, लेकिन ऐसा लगता है कि संप्रग सरकार ने पाकिस्तान को पूर्व में अपने किए वायदों से मुकरने और कश्मीर पर अलगाववादी राग अलापते रहने की छूट दे दी है। पूर्व प्रधानमंत्री ने यह भी कहा कि कश्मीर मुद्दे के हल के लिए त्रिपक्षीय वार्ता- “अंतरराष्ट्रीय मध्यस्थता” और उसमें कश्मीर की जनता के प्रतिनिधि के रूप में हुर्रियत को जगह देने की बढ़ती मांगों से लगता है कि पिछले कुछ वर्षों का परिश्रम व्यर्थ जाने वाला है। श्री वाजपेयी ने इस बात पर भी अपनी गहरी चिंता से प्रधानमंत्री को अवगत कराया कि बिना पासपोर्ट-वीसा के हुर्रियत नेताओं की पाकिस्तान यात्रा अन्तरराष्ट्रीय परिवहन के स्थापित मानदंडों का खुला उल्लंघन है। श्री वाजपेयी ने कहा कि हुर्रियत नेता न सिर्फ श्रीनगर-मुजफ्फराबाद बस सेवा से पाकिस्तान के कब्जे वाले कश्मीर गए बल्कि इस बीच बस सेवा के समझौते का उल्लंघन करते हुए इस्लामाबाद, लाहौर और कराची भी गए। लगता है कि सरकार पाकिस्तान को 6 जनवरी, 2004 के बयान में किए गए वायदों-“आतंकवाद का खात्मा करेंगे और बातचीत में मध्यस्थ नहीं होगा” आदि से पीछे रहने की छूट दे रही है।इस पत्र का जवाब देते हुए प्रधानमंत्री डा. मनमोहन सिंह ने 20 जून को श्री वाजपेयी को पत्र लिखा। इस पत्र में प्रधानमंत्री डा. मनमोहन सिंह ने श्री वाजपेयी को भरोसा दिलाया कि सरकार की जम्मू-कश्मीर नीति के संदर्भ में वार्ता अथवा क्रिया में किसी स्तर पर कोई संशय नहीं है। प्रधानमंत्री ने हुर्रियत नेताओं के पकिस्तान दौर का बचाव करते हुए कहा कि सरकार महसूस करती है कि इससे कोई नुकसान नहीं हुआ है। हुर्रियत नेता गत पांच वर्षों में भारत दौरे पर आए पाकिस्तान के नेताओं और पाकिस्तान राजनयिकों से मिलते रहे हैं। लेकिन सरकार यह मानती है कि पाकिस्तान ने हुर्रियत नेताओं को इस्लामाबाद और अन्य शहरों के दौरे का निमंत्रण देकर भारत-पकिस्तान के मध्य हुए समझौते का उल्लंघन किया है। हुर्रियत नेता, जिनके पास पासपोर्ट नहीं थे और जिन्होंने सरकार से पासपोर्ट देने का अनुरोध किया था, उन्हें पासपोर्ट दिए गए थे। इसलिए यह कहना सही नहीं होगा कि शासन ने हुर्रियत की इस यात्रा को गंभीरता से नहीं लिया। डा. मनमोहन सिंह ने यह भी लिखा कि जम्मू-कश्मीर में पारदर्शी और निष्पक्ष रुप से निर्वाचित सरकार कायम है। हां, यह जरुर है कि आल पार्टी हुर्रियत कान्फ्रेंस जैसे कुछ समूह ऐसे हैं जो निर्वाचन प्रक्रिया से बाहर हैं। तथापि हमारा मानना है कि अगर वे हिंसा का रास्ता छोड़ दें तो हम इनसे वार्ता करने को तैयार हैं। पिछले बारह महीनों में हमारा कोई भी कदम ऐसा नहीं रहा है जिसमें हमने इन सिद्धांतों से कोई समझौता किया हो। हमने भारत के हितों का पूरा ध्यान रखा है।-प्रतिनिधिNEWS
टिप्पणियाँ