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पाठकीय

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Mar 7, 2005, 12:00 am IST
in Archive
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दिंनाक: 07 Mar 2005 00:00:00

सुब्बु श्रीनिवासघोष के अनूठे साधकगत 18 जनवरी को बंगलौर में राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के अखिल भारतीय घोष प्रमुख श्री सुब्बु श्रीनिवास का अवसान हो गया। वे 65 वर्ष के थे।मैसूर निवासी श्री सुब्बु अपनी पढ़ाई पूरी करने के बाद 1962 में संघ के प्रचारक बने। घोष के वे अनूठे साधक थे। उन्होंने घोष में नई-नई रचनाएं की थीं। सारे देश में सैकड़ों घोष पथकों का निर्माण, उनके प्रशिक्षण की व्यवस्था, निरन्तर प्रवास और सम्पर्क के द्वारा घोष वादन में एकरूपता लाने में सुब्बुजी सफल रहे थे।19 जनवरी को उनके अन्तिम संस्कार में रा.स्व.संघ के अखिल भारतीय सह बौद्धिक प्रमुख श्री मधुभाई कुलकर्णी, दक्षिण मध्य क्षेत्रीय प्रचारक श्री जयदेव, कर्नाटक उत्तर प्रांत प्रचारक श्री मंगेश भेंडे, संस्कार भारती के सह संगठन मंत्री श्री प.रा. कृष्णमूर्ति, अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद् के अखिल भारतीय मंत्री श्री रघुनन्दन सहित बड़ी संख्या में कार्यकर्ता उपस्थित थे। पाञ्चजन्य परिवार दिवंगत आत्मा के प्रति अपनी श्रद्धांजलि अर्पित करता है।वह मोहक मुस्कान-कुप्.सी. सुदर्शनसरसंघचालक, रा.स्व.संघश्री सुब्बु श्रीनिवास नहीं रहे। जीवनपर्यन्त अपनी मुस्कान से सबके चेहरों पर मुस्कान लाने वाले श्री सुब्बु जी की मुस्कान भी अनन्त में विलीन हो गई। इसी मुस्कान के बलबूते पर ही तो वे घोष सरीखे कठिन विषय को भी अत्यंत सरस बनाते हुए सीखने वाले के चेहरे पर भी मुस्कान खींच लाते थे। अपने विषय के इस अत्यन्त निष्णात प्रचारक ने अखिल भारतीय घोष प्रमुख का दायित्व पूरी निष्ठा से निभाया। ऐसे कर्तव्यनिष्ठ कार्यकर्ता के प्रति मेरी हार्दिक श्रद्धाञ्जलि। हम भी बन जाएं उन जैसे ही-राष्ट्र मन्दिर की नींव के पत्थर।उनकी कमी खलेगी-मोहनराव भागवत, सरकार्यवाह, रा.स्व.संघश्री सुब्बुजी के शरीर के शांत होने की बात मन में एक विचित्र रिक्तता छोड़कर गई है। पिछले दिनों जिस प्रकार उनके शरीर की अवस्था चल रही थी, उन समाचारों को सुनकर तो वे उत्तरायण की ओर बढ़ रहे हैं, इसका आभास सभी को मिला था। फिर भी कभी ऐसे भी दिन आएंगे जब बिना सुब्बुजी के हमको संघ विश्व की कल्पना करनी पड़ेगी, इस बात को मन नहीं मानता था, अभी भी नहीं मान रहा है। संघ भक्ति से उनका जीवन सदैव ओत-प्रोत रहा। संघ द्वारा दिए दायित्व के साथ जीवन की पूर्ण तन्मयता के अतिरिक्त न कुछ जानते थे न जानना चाहते थे। उन्होंने जिस किसी वाद्य को छेड़ा, उसमें से संघ के घोष विभाग की रचनाओं के ही स्वर निकले, दूसरा संगीत उन्होंने कभी चाहा ही नहीं। ऐसी एकांतिक भक्ति व सतत् कठोर परिश्रम उनके जीवन का एकमात्र आलंबन बन गया था। उसका अनुसरण करने में अपने शरीर को असमर्थ पाते ही उन्होंने अपनी इहलीला को संवरित कर निरुपयोगी पार्थिव का भी निर्ममता से बहिष्कार किया। “सुब्बु” नाम सदा इस भक्ति से, उस परिश्रम से ह्मदय की सरलता व अकृत्रिम आत्मीयता को लेकर जुड़ा था, जुड़ा रहेगा। कार्य में, विशेषत: घोष विभाग में उनकी कमी सदा खलेगी। परन्तु उनकी अनुपस्थिति भी उनके स्मरण का व उसमें निहित प्रेरणा का सदा कारण बनेगी। उनकी स्मृति को वियोग-वेदनापूर्ण ह्मदय से, किन्तु उनकी भक्ति के सम्मान से ओतप्रोत मानस से हम सभी अपने अनुकरण से जीवित रखने का संकल्प लें, यही उनके लिए उचित विदाई व श्रद्धाञ्जलि होगी।अपनी भक्ति से वे सूर्यमंडलभेदी योगयुक्तों की गति के अधिकारी बने हैं। उनकी अनुपस्थिति में देशभर के लक्ष-लक्ष स्वयंसेवकों को तथा उनके लौकिक परिवारजनों को उनके जीवनादर्श को नित्य चरितार्थ करने का धैर्य प्रभु प्रदान करें।वर्ष 59, अंक 5 आषाढ़ कृष्ण 12, 2062 वि. (युगाब्द 5107) 3 जुलाई, 2005देश के नेता कौन?सामान्य नागरिक प्रेरणा और नेतृत्व के लिए किनकी ओर देखता है-राजनेताओं की ओर या समाज नेताओं की ओर? बता रहे हैं- विनोद मेहता, हरि जयसिंह, चित्रा मुद्गल, वेद प्रताप वैदिक तथा देश के अनेक स्थानों से पाञ्चजन्य प्रतिनिधियों द्वारा लिए गए जनमत संग्रह और साक्षात्कारस्वामी विवेकानंद महात्मा गांधी भगिनी निवेदिताराजनेताओं से भरोसा हटासमाज से मिलती है प्रेरणाकेरलअब और नीचे नहीं गिर सकते नेताअसली नेता समाजनेता, राजनेता नहींअच्छे नेता की तलाशराजनीति में आदर्श नहींराजनीति के प्रति अश्रद्धा समाजनीति के प्रति सम्मानदो पहियों के सरताजकहां है नेतृत्व?कहां गया पानी?अब तो करो चिंता पानी की!कहां गए तालाब?सूखती धरती पंजाब कीपानी का घमासानराजा का धर्ममांग रहे थे पानी, पर मिली मौतभारत की जल संचय शक्ति”कोक-पेप्सी भारत छोड़ो”…और यूं गुमनाम रहे नेताजी”सप्त सिन्धु” लोकार्पित जय बाबा अमरनाथ!कैलास मानसरोवर यात्रा-2 जहां शहीद हुए थे जनरल जोरावर प्रो. इन्द्रसेन शर्मा”कैलास मानसरोवर दर्शन” लोकार्पित प्रतिनिधिक्या गलत कहा? मा.गो. वैद्यवाजपेयी और मनमोहन सिंह में चिट्ठियों की अदला-बदलीश्रीमद्भगवद् गीता राष्ट्रीय ग्रन्थ घोषित हो रामप्रताप मिश्रअरुणाचल प्रदेश निज संस्कृति और धर्म की गूंज दीपक बरठाकुरदादा साहब आपटे की स्मृति में संगोष्ठी पत्रकारिता के मर्मज्ञ और हिन्दू संगठन के पुरोधाअयोध्या में जामा मस्जिद!शिक्षा बोर्ड के बंटवारे की मांग मेघालय में खासी-गारो तनाव शिलांग से विशेष संवाददातारायपुर में संस्कृत प्रशिक्षण शिविर गांव-गांव पहुंचेगी संस्कृतगोमुख इस पुण्यदायिनी यात्रा के संस्मरण अगले अंक से पढ़ें।पाठकीय पतन और कितना?सम्पादकीय मुख्तारन माई और इमरानादिशादर्शन हमारे नेतृत्व का आदर्श शिवाजीस्त्रीमाकपाई आतंक से जूझती विनीतामेरी सास, मेरी मां, मेरी बहू, मेरी बेटीबनी – ठनीमंगलम्, शुभ मंगलम् विस्तार…महावीर केसरी-7इस सप्ताह आपका भविष्यहिन्दू-भूमि जैन दर्शन का सार सुरेश सोनीगवाक्ष …. ज्योति के हस्ताक्षर शिव ओम अम्बरपाचजन्य पचास वर्ष पहले “जांच कराओ वरना गद्दी छोड़ दो”श्रद्धाजलि एक कुशल संगठकगहरे पानी पैठ 36 का आंकड़ामंथन छोटा विभाजन समाप्त बड़ा विभाजन शुरूNEWSअंक-सन्दर्भ, 5 जून, 2005पतन और कितना?पञ्चांगसंवत् 2062 वि. वार ई. सन् 2005 आषाढ़ कृष्ण 12 रवि 3 जुलाई (प्रदोष व्रत) ,, ,, 13 सोम 4 “” ,, ,, 14 मंगल 5 ,, आषाढ़ अमावस्या बुध 6 ,, ,, शुक्ल 1 गुरु 7 “” ,, ,, 2 शुक्र 8 “” (श्री जगदीश-रथ यात्रा) ,, ,, 3 शनि 9 “” आवरण कथा “गोवा, झारखंड और अब बिहार, संतों की सरकार” के अन्तर्गत प्रस्तुत विद्वानों के विचार कांग्रेस की हीन भावना का खुलासा करते हैं। कांग्रेस जो कुछ भी कर रही है, वह नया नहीं है। यदि नया है तो केवल इतना कि आज कांग्रेसनीत सरकार का एक ऐसा नेता प्रधानमंत्री है, जो अपनी विद्वता, ईमानदारी और सहजता के लिए तो विख्यात है परन्तु दु:ख की बात यह है कि जिन बैसाखियों पर कांग्रेसनीत सरकार सवार है वह निश्चित रूप से उसे ले डूबेगी।-रमेश चन्द्र गुप्तानेहरू नगर, गाजियाबाद (उ.प्र.)देश के गृहमंत्री जैसे प्रतिष्ठित पद पर रह चुके सरदार बूटा सिंह इन दिनों बिहार के राज्यपाल के रूप में नहीं, केन्द्र सरकार की कठपुतली के रूप में कार्य कर रहे हैं। उन्हें जब लगा कि इस बार बिहार में राजद की सरकार नहीं बन पाएगी और राजग सरकार बनाने जा रहा है तो विधानसभा ही भंग करने की सिफारिश कर दी।-विशाल कुमार जैन, 184, कटरा मशरू,दरीबा कलां, चांदनी चौक (दिल्ली)लगता है कांग्रेस की हालत सांप-छछूंदर वाली हो गई है। उसे राजद को न निगलते बन रहा है, न उगलते। इसलिए उसके हर दबाव को झेलकर गैर संवैधिानक व गलत निर्णय लिए जा रहे हैं, चाहे उससे सरकार की कितनी ही बदनामी हो रही हो। कांग्रेस ने लालू के दबाव में सीवान के जिलाधिकारी एवं उनके विरुद्ध चल रहे आय से अधिक सम्पत्ति के मुकदमे को देख रहे न्यायाधीश का तबादला कराया। सप्तऋषि के पत्र से झूठे-आरोपों को झेला और जब बिहार के विधायकों के सब्रा का बांध टूट गया व उन्होंने राजद के विरोध में नीतिश कुमार के नेतृत्व में सरकार बनाने का प्रयत्न किया, तो कांग्रेस ने विधानसभा भंग करा दी, वह भी आधी रात में। कांग्रेस भूल गई है कि राजद के दबाव में गलत फैसले लेकर थोड़े समय के लिए सत्ता सुख तो मिल जाएगा, पर धीरे-धीरे उसकी रही-सही जमीन भी जाती रहेगी।-मधु पोद्दारपटेल नगर,गाजियाबाद (उ.प्र.)यू.पी. की ललकारपानी के कारण मचा, चहुंदिश हाहाकारदिल्ली को देंगे नहीं, यू.पी. की ललकार।यू.पी. की ललकार, बाप का माल समझकरमियां मुलायम बोल रहे हैं ताल ठोंककर।यदि “प्रशांत” यह हाल रहा तो सारे सुन लोप्रांत-प्रांत में झगड़े होंगे साफ समझ लो।।-प्रशांतसूक्ष्मिकाशोषकदुधमुंहों की-रक्षा मेंबिल्लीबेहाल,ताक रहाकोने सेहिंसक बिडाल।-डा. गोविन्द “अमृत”, स्टेशन रोड,पो.-पेन्ड्रारोड (छत्तीसगढ़)मुख्यधारा से जुड़ेंशाहीद रहीम ने अपने आलेख “फिर ठगे गए मुसलमान” में संयुक्त प्रगतिशील गठबंधन सरकार पर यह आरोप लगाया है कि गठबंधन सरकार ने मुसलमानों के लिए कुछ नहीं किया। इसलिए आगामी विधानसभा चुनावों में मुसलमानों को सतर्क हो जाना चाहिए। मैं लेखक से जानना चाहता हूं कि क्या यह सही नहीं है कि मुसलमानों ने संप्रग सरकार के घटक दलों को केवल इसी कारण से वोट दिया था, ताकि ये लोग उनके मजहबी एजेंडे को पूरा करने में सहयोगी हो सकें? ज्यादातर मुस्लिम आज भी 7वीं सदी की मानसिकता में जी रहे हैं। वे राष्ट्र जीवन की प्रत्येक समस्या का निदान इस्लाम के भीतर ही खोजते हैं। किन्तु मुसलमानों को यदि विकास करना है तो उन्हें राष्ट्र की मुख्यधारा से जुड़ना ही होगा।-मोहित कुमार मंगलम्, ग्राम-कुशी (स्टेशन टोला)पोस्ट-कांटी, जिला-मुजफ्फरपुर (बिहार)जरूरत विस्तार कीजिस प्रकार एक रेखा को बिना काटे उसके समानान्तर दूसरी रेखा खींचकर पहली रेखा छोटी की जा सकती है, उसी प्रकार मतान्तरण में लगीं संस्थाओं के विरुद्ध वनवासी कल्याण आश्रम को इतना विस्तार दिया जाए कि वे सारी संस्थाएं खुद बौनी हो जाएं। वनवासी कल्याण आश्रम को विस्तार देने के लिए धन की कोई कमी नहीं होगी, क्योंकि लाखों लोग ऐसे हैं, जो मदद करना चाहते हैं। बस, उन्हें एक अवसर प्रदान करें, फिर देखिए क्या कमाल होता है।साथ ही, पाञ्चजन्य की प्रसार संख्या इतनी बढ़े कि कम से कम देश की जनसंख्या के 2 प्रतिशत लोगों तक यह पहुंचे।-संजय साकुनियागांधी चौक, ब्राजराज नगर (उड़ीसा)आज अधिकांश पत्र-पत्रिकाएं व्यावसायिक हो गई हैं। उनमें राष्ट्रीय व सामाजिक हितों से सम्बंधित समाचारों का प्राय: अभाव दिखाई देता है। ऐसे समय में पाञ्चजन्य हिन्दुत्व के उत्कर्ष हेतु प्रयासरत है। किन्तु पाञ्चजन्य के ग्राहकों की संख्या में वृद्धि होनी चाहिए। बस अड्डों व रेलवे स्टेशनों में बेशुमार पत्रिकाएं मिलती हैं पर पाञ्चजन्य नहीं। यह अत्यन्त दु:खद स्थिति है। हो सके तो इस स्थिति को सुधारें।-शंकर गिरि गोस्वामीमु.व पो.-शहपुराजिला-डिन्डोरी (मध्य प्रदेश)मैं पिछले कुछ समय से पाञ्चजन्य पढ़ रहा हूं। मेरा अनुमान है कि यह पत्र जनता के सामने शासन-प्रशासन, हिन्दू संस्कृति व विचारधारा और छद्म पंथनिरपेक्षता को बड़ी साफगोई और संतुलित रूप में प्रस्तुत करने और प्रकारांतर से आदर्श पत्रकारिता की सूरत दिखाने में सफल रहा है। इसका खूब प्रचार-प्रसार हो, यह हम जैसे पाठकों की इच्छा है, ताकि लोगों के विचारों में परिपक्वता आए और वे सच्चाई को बेलाग स्वीकार कर सकें।-गजानन पाण्डेय, म.सं.2-4-936,निम्बोली अड्डाकाचीगुडा, हैदराबाद (आन्ध्र प्रदेश)पुरस्कृत पत्रबालीवुड का तालिबानीकरण?सियासती दांवपेंच के समानांतर मुम्बई के सिने उद्योग पर भी तालिबानी प्रभुत्व स्थापित करने का प्रयास जारी है। वहां राष्ट्रवादी शक्तियों का मखौल उड़ रहा है और हिन्दू नायकों के विरुद्ध एक खतरनाक दुरभिसंधि आकार लेती नजर आती है।पिछले दिनों प्रदर्शित महेश भट्ट की फिल्म “नजर” को लेकर पाकिस्तान में इस बात का बवाल मचा कि एक हिन्दू नायक मुस्लिम नायिका के साथ अंतरंग प्रेम के दृश्य कैसे कर सकता है। जबकि हिन्दी रजतपट पर मुस्लिम अभिनेता हिन्दू नायिकाओं के साथ प्रणय दृश्य अभिनीत करें तो भी कोई विवाद खड़ा नहीं होता। अपनी फिल्मों में लगातार पिता नानूभाई भट्ट की जिंदगी पर आक्षेप करने वाले “होनहार” महेश भट्ट भारत में प्रगतिशीलता का डंका बजाते रहते हैं, मगर “नजर” विवाद पर वह पाकिस्तानी कट्टरपंथियों के समक्ष गिड़गिड़ाते नजर आए। वाटर, फायर जैसी संस्कृति-विरोधी फिल्मों के प्रदर्शन पर सारे तथाकथित प्रगतिशील स्वर मुखरित हो जाते हैं।हिन्दू दर्शकों के बल पर सफलता की बुलन्दियां छूने वाले मुस्लिम कलाकारों की मानसिकता का पता तब चलता है जब कारगिल युद्ध की पृष्ठभूमि में युसूफ खान (दिलीप कुमार) पाकिस्तान के राजकीय सम्मान निशान-ए-इम्तियाज को भारत रत्न से ऊपर रखकर इस्लामाबाद जाने को उतावले नजर आते हैं या फिर आमिर खान द्वारा भारत के बजाय एक पाकिस्तानी स्वास्थ्य केन्द्र को लाखों रुपए की सहायता राशि प्रदान करने की इच्छा दर्शायी जाती है। शाहरुख खान की भी निष्ठा एकतरफा दिखी है। बालीवुड में आज चर्चा इस बात की है कि उन्होंने ऋतिक रोशन जैसे अभिनेता के शानदार अभ्युदय को रोकने के लिए तमाम छिछले हथकंडे अपना डाले।सभी जानते हैं कि फिल्म उद्योग पर इन दिनों माफिया जगत की गहरी छाया है और ज्यादातर माफिया खाड़ी के मुस्लिम संगठनों की गिरफ्त में हैं। चर्चा है कि माफिया फिल्म निर्माताओं पर अपनी फिल्म में मुस्लिम नायकों को तरजीह देने पर दबाव देते हैं। अस्सी के दशक में एक ऐसे ही दबाव के तहत निर्माता मनमोहन देसाई ने तस्कर हाजी मस्तान को महिमामंडित करने वाली फिल्म “कुली” का निर्माण किया था।दूसरी ओर हिन्दू नायकों और निर्माता-निर्देशकों की उदारता देखिए। राजकपूर और गुरुदत्त जैसे महान फिल्मकारों ने साहिर और अबरार अल्वी जैसे मुस्लिम लेखकों को सिने जगत में पहचान दिलाई। रमेश सिप्पी अपनी फिल्म शोले के जरिए सलीम-जावेद की लेखकीय जोड़ी और अमजद खान जैसे खलनायक को आगे लाने के उत्तरदायी रहे। नब्बे के दशक में यश चोपड़ा ने शाहरुख खान को स्टार बनाने की पहल की। चोपड़ा शिविर की फिल्म “डर” में अभिनय से पहले शाहरुख दिल आशना है, माया मेमसाब, चक्कर जैसी सुपर फ्लाप फिल्मों के “सी ग्रेड” नायक थे।अंग्रेजी प्रेस के एक विशिष्ट तबके ने नब्बे के दशक में उभरे तीन खान नायकों आमिर, सलमान और शाहरुख की तिकड़ी को नवयुवतियों के पुरुष की छवि देकर प्रचारित किया। हो सकता है हिन्दू युवतियों को मुसलमान युवाओं से निकाह करने हेतु प्रेरित करने का यह फिल्मी हथकंडा था। यह सिर्फ इत्तफाक नहीं कि इन तीनों खान नायकों ने या तो हिन्दू लड़कियों से शादी की या उनके साथ अपना नाम प्रचारित किया।-ब्राजमोहन22 बी/ए, सेक्टर -एसैनाथ कालोनी, इंदौर (म.प्र.)हर सप्ताह एक चुटीले, हृदयग्राही पत्र पर 100 रु. का पुरस्कार दिया जाएगा।सं.अंक-सन्दर्भ, 29 मई, 2005गद्दी के लालचीसम्पादकीय “कैलास यात्रा जाएंगे आप? टैक्स दीजिए” अन्तर्मन को छू गया। हज पर 100 करोड़ रुपए से ज्यादा की सब्सिडी देने वाली सरकार शंकराचार्य जी को जेल में डाले, हाजियों के पांव धोये और कैलास यात्रियों पर कर लगाए तो ये बातें बड़ी सलीकेदार और सांस्कृतिक लगती हैं। हां, यही परम्परा रही है। तभी तो गजनी और गोरी आते रहे और हम पैर धोते रहे। कहा जाता है “महाजनो येन गत: पंथा:।” अर्थात् बड़े लोग जिस रास्ते से जाएं उसी रास्ते से जाना चाहिए। उसी रास्ते पर चलकर अभी भी गद्दी के लालची औरंगजेब के जजिया कर की तर्ज पर हिन्दुओं पर कर लगा रहे हैं।-हरेन्द्र प्रसाद साहानया टोला, कटिहार (बिहार)मेलाघाट का दर्द”डायरी सागा-सागा” के लेखक श्री तेजिन्दर एक प्रशासनिक अधिकारी की तर्ज पर अपने हमवतनों का दर्द कागज पर ही नहीं महसूस करते बल्कि पहले प्राणों में सोखते हैं और फिर कलम को सौंप देते हैं। उनकी कृति एक आह्वान है बुद्धिजीवियों का। आम आदमी की पीड़ा को आत्मसात किए बिना कोई साहित्यकार कहलाने का हक कैसे पा सकता है? टिहरी के बहुगुणा के क्रम में वे मेलघाट और छत्तीसगढ़ के वनवासी अंचल को भी अपनी नजर की हद में ले आएं तो समाज उपकृत होगा।-इन्दिरा किसलय, बल्लालेश्वर अपार्टमेंट,रेणुका विहार, रामेश्वरी, नागपुर (महाराष्ट्र)दरोगा जी से बड़े हैं हनुमान जी”हिन्दुस्तान सोशलिस्ट रिपब्लिकन आर्मी” के कमाण्डर-इन-चीफ एवं दल के सबसे बड़े नेता चन्द्रशेखर आजाद अत्यन्त ही निर्भीक, बलवान एवं हाजिरजवाब थे। काकोरी काण्ड के वे एकमात्र ऐसे क्रांतिकारी थे जो अन्त तक पुलिस की पकड़ में नहीं आए। उन्होंने झांसी में डेरा डाला और वहां से पूरे भारत में अपनी गतिविधियां चालू करके दल को पुनर्जीवित कर दिया।उन दिनों वे सतारा-तट पर रहते थे। आजाद एक मित्र के साथ झांसी से लौट रहे थे। पुलिस के दो सिपाहियों ने इन्हें रोककर पूछा, “क्या तू आजाद है?” ये बिना चौंके या सकपकाए दांत निपोरते हुए बोले-“हैं हैं, आजाद जो हैं सो तो हम लोग होते ही हैं। हम तो आजाद ही हैं, हमें क्या बंधन है बाबा? हनुमान जी का भजन करते हैं और आनन्द करते हैं। हैं हैं…।” और भी बहुत सी बातें हुईं। इन्होंने बहुत टाला, हनुमान जी को चोला चढ़ाने में विलम्ब होने की बात कही। हनुमान जी के सम्भावित कोप से कांप कर दिखाया। मगर वे पुलिस वाले न माने और इन्हें थाने चलने के लिए मजबूर करने लगे। कुछ दूर तो आजाद बड़ी नम्रता से उनके साथ गए भी मगर जब देखा कि वे किसी प्रकार मानते ही नहीं हैं तो फिर रूके और दृढ़ता से बोले-“क्या तुम्हारे थाने के दरोगा से हनुमान जी बड़े हैं? मैं तो हनुमान जी का हुक्म मानूंगा, तुम मानो अपने दरोगा का।” इनकी बदली हुई भाव-भंगिमा देखकर वे पुलिस वाले सहम गए। हनुमान जी बड़े हैं या दरोगा इस सम्बंध में उन्हें भले ही शंका रही हो, परन्तु उन्हें पता चल गया कि यह “हनुमान भक्त” उनसे अवश्य तगड़ा है और इससे अधिक उलझना उनके लिए ठीक न होगा। इसके बाद वे दोनों सिपाही इन्हें छोड़कर रफा-दफा हो गए और आजाद “आजाद” हो गए। ऐसे थे चन्द्रशेखर आजाद।-जुगल किशोर उपाध्याय,17/283,फुलट्टी बाजार चौराहा, आगरा (उ.प्र.)NEWS

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