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अब तो करो चिंता पानी की!-राजेन्द्र सिंहप्रसिद्ध जल संरक्षण विशेषज्ञ एवं सचिव, तरुण भारत संघपानी के कुप्रबंधन और हमारी जीवन पद्धति में आए बदलावों का परिणाम है जल संकट। जब हमारी जीवन पद्धति में केवल प्रकृति के अंधाधुंध दोहन का भाव बढ़ जाता है, तब पानी जैसे पंच महाभूतों पर भी खतरा मंडराने लगता है। अपनी इसी लूट प्रवृत्ति के कारण हमने पानी निकालते-निकालते धरती का भंडार खाली कर दिया है। पिछले तीन साल में हमने पूरे देश की जल यात्रा की है। इस दौरान हमने पाया कि देश में दो-तिहाई भू-जल भण्डार खाली हैं। इन जल भण्डारों को भरने का उपाय है कि हम विकेन्द्रित जल-प्रबन्धन की व्यवस्था को अपनाएं। इस व्यवस्था से नदी और समाज आपस में जुड़ेंगे। इससे नदियां भी सदा नीरा बन जाएंगी और समाज भी पानीदार हो जाएगा। विकेन्द्रित जल-प्रबंधन का अर्थ है जहां भी वर्षा का जल गिरता है उसे वहीं ठीक से सहेजें और अनुशासित होकर उसका उपयोग करें, क्योंकि पानी को सहेजना और उसका अनुशासित प्रयोग ही समाज और धरती को पानीदार बनाता है। जो समाज अपने तालाबों और बांधों का संरक्षण करता है, उसे पानी की समस्या का सामना नहीं करना पड़ता है। किन्तु इस बात को सरकार गंभीरता से नहीं लेती है, क्योंकि जो लोग चुनाव जीतकर सरकार में पहुंचते हैं, उनके दिमाग से जनता की जरूरतें गायब हो जाती हैं और समाज का दिखावा छा जाता है। समाज को पानी की जरूरत है, यह बात तो सरकार भ्ूल गई है और दिखावा करने के लिए “नदी जोड़ो” जैसी बड़ी-बड़ी परियोजनाओं का नाम लेती रहती है। जबकि इन परियोजनाओं के कारण ही हमारा समाज बेपानी हुआ और आपस में लड़ाइयां भी होने लगी हैं। हर जगह लोग पानी के लिए मर रहे हैं। राजस्थान के टोंक और गंगानगर जिले में हाल ही में कुछ लोग पानी के लिए मरे हैं। कहीं पानी की कमी के कारण लोग बीमार होकर मर रहे हैं, तो कहीं प्यासे मर रहे हैं, तो कहीं कुआं खोदते-खोदते ऋणग्रस्त हो जाने और उसे चुका न पाने के डर से लोग आत्महत्या कर रहे हैं, तो कहीं सरकार पानी मांग रहे लोगों का दमन करती है। यानी इस वक्त पानी को लेकर अलग-अलग तरह के संकट छाए हुए हैं।एक जमाना था जब लोग भूखे मरते थे। अब लोग भूखे तो नहीं मर रहे हैं, किन्तु प्यासे मर रहे हैं। खाद्य सुरक्षा अधिनियम बनाकर सरकार ने लोगों को भूख से बचाया था। उसी तर्ज पर सरकार पानी सुरक्षा अधिनियम बनाकर प्यासे लोगों को क्यों नहीं बचाती? एक कल्याणकारी राज्य होने के नाते सरकार की यह जिम्मेवारी है कि वह किसी को प्यासा न मरने दे। किन्तु यह तभी संभव है जब सरकार पानी का निजीकरण रोके। सरकार पानी का निजीकरण इसी तरह करती रही तो और लोग पानी के कारण मरेंगे।सरकार कई नदियों को निजी कम्पनियों के हाथों सौंप चुकी है। इस कारण पानी अभी दूध के भाव मिल रहा है। यदि हमारी नदियां बहुराष्ट्रीय कम्पनियों के हाथों गईं तो हो सकता है कि 8-10 साल बाद पानी घी के भाव में भी न मिले। इसलिए पानी का मालिकाना हक किसी व्यक्ति या कम्पनी को नहीं दिया जाना चाहिए। पानी का मालिक समाज और सृष्टि होती है। किन्तु सरकार पानी के निजीकरण को बढ़ावा देने में लगी है।सरकार शिवनाथ नदी को निजी हाथों में सौंप चुकी है। दिल्ली स्थित भू-जल बोर्ड का भी निजीकरण किया गया है। मुम्बई और इन्दौर में भी जल प्रबंधन निजी हाथों में दिया गया है। हर राज्य में हमें कोई न कोई ऐसा शहर मिलेगा, जहां जल-व्यवस्था को निजी हाथों में देने की प्रक्रिया शुरू हो गई है। पानी संकट से बचने के लिए सरकार विकेन्द्रीकृत जल-प्रबंधन को बढ़ावा दे और इस तरह के कानून बनाए कि धरती के अन्दर से पानी निकालने वाला जितना पानी निकाले, उतना ही पानी धरती के अन्दर डालने का इन्तजाम भी करे। यदि वह इसका इन्तजाम नहीं कर सकता है तो इसके बदले वह पैसा दे। वह पैसा सरकार नहीं, बल्कि वैसी व्यवस्था या तंत्र को दे, जो पानी के विकेन्द्रीकरण के कार्य में लगा हो। जब तक इस देश में पानी बचाने वाले को प्रोत्साहन और पानी लूटने वाले को दण्ड नहीं मिलेगा, तब तक सबके लिए पानी की व्यवस्था नहीं हो सकती है।हमने विकेन्द्रित जल-प्रबंधन को बढ़ावा देने के लिए “तरुण जल विद्यापीठ” शुरू किया है। यहां हमारे नौजवान जल-प्रबंधन का काम सीखकर पूरे देश में विकेन्द्रित जल-प्रबंधन को बढ़ावा देंगे।NEWS
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