|
संस्कृति सत्यवचनेश त्रिपाठी “साहित्येन्दु”श्री राम जन्मभूमि परगोरों की राजनीतिबाबर सन् 1526 में दिल्ली का शासक बना। उसके दो वर्ष बाद ही मुस्लिम फकीर फजल अब्बास के कहने पर उसने अयोध्या की श्रीराम जन्मभूमि पर बने मन्दिर को ढहाकर वहां मस्जिद बनवा दी। यह काम उसी के एक हाकिम मीर बाकी ने किया। मन्दिर पर हुए इस हमले में एक लाख 74 हजार हिन्दुओं ने कुर्बानी दी। बाबर ने अपने “बाबरनामा” के पृष्ठ 173 पर लिखा है, “हजरत फजल अब्बास मूसा आशिकाना कलन्दर साहब की इजाजत से “जनम-भूम” मन्दिर को गिरवाकर मैंने उसी के मलवे से वहां मस्जिद तामीर करा दी।” अंग्रेज लेखक हेमिल्टन ने बाराबंकी गजेटियर में लिखा कि, “जलालशाह ने हिन्दुओं के खून का गारा बनवाकर लखौरी ईंटों की नींव मस्जिद बनाने के लिए तैयार कराई।” लेकिन यह मस्जिद बनते समय, बाबर के राज्यकाल से लेकर ब्रिटिश दासता काल तक हिन्दुओं ने “श्रीराम जन्मभूमि” उद्धार हेतु 76 युद्ध किए, जिनमें कुछ में वे विजयी भी हुए, पर फिर शाही कुमुक की मदद पुन: आ जाने से उनकी विजय स्थायी न रह सकी। इन युद्धों में एक वीरांगना रानी जयराज कुमारी भी 3 हजार महिलाओं की सेना लेकर लड़ी और बलिदान हुई। इसका साक्षी अकबर के “दरबारे अकबरी” के पृष्ठ 301 पर उल्लिखित है। अकबर ने लिखा कि “सुल्ताने-हिन्द बादशाह हुमायूं के राज में संन्यासी स्वामी महेश्वरानन्द और रानी जयराज कुमारी ने अयोध्या के आस-पास के हिन्दुओं को इकट्ठा करके लगातार 10 युद्ध किए। रानी जयराज कुमारी ने तो 3 हजार औरतों की फौज लेकर मंदिर की जगह बनी मस्जिद पर हमला करके कामयाबी प्राप्त की थी। शाही फौज ने रानी के हाथ से वह जगह फिर वापस ले ली। बड़ी खूंरेज लड़ाई लड़ते हुए रानी जयराज कुमारी वीरगति को प्राप्त हो गई और स्वामी महेश्वरानन्द भी अपने साथियों सहित लड़ते-लड़ते खेत रहे।” “दीवाने अकबरी” में भी वर्णन है, “जनम-भूम को वापस लेने के लिए हिन्दुओं ने 20 हमले किए। अपनी हिन्दू रियाया की दिल शिकनी न हो, इसलिए शहजादे हिन्द जलालुद्दीन अकबर ने राजा बीरबल और टोडरमल की राय से बाबरी मस्जिद के सामने चबूतरा बनाकर छोटा-सा राम मन्दिर तामीर कर लेने की इजाजत दी और हुक्म दिया कि कोई शख्स इनके पूजा-पाठ में किसी तरह की रोक-टोक न डाले।” यह सुविधा जहांगीर और शाहजहां के समय तक किसी तरह बनी रही लेकिन फिर औरंगजेब ने उस स्थान को खुदवा दिया। “आलमगीस्नामा” के पृष्ठ 630 पर औरंगजेब ने लिखा है, “लगातार 4 बरस तक चुप रहने के बाद रमजान की 27वीं तारीख को शाही फौज ने फिर अयोध्या की जनम-भूम पर हमला किया। इस हमले में 10 हजार हिन्दू मारे गए, उनका चबूतरा और मंदिर खोदकर जमींदोज कर दिया गया। इस वक्त तक वह शाही देख-रेख में है।” “लखनऊ-गजेटियर” के पृष्ठ 62 पर दर्ज है, “लगातार हिन्दुओं के हमलों से ऊबकर लखनऊ के नवाब सआदत अली खां ने हिन्दुओं और मुस्लिमों को एक साथ नमाज पढ़ने और पूजा-पाठ करने की इजाजत दे दी-तब यह झगड़ा निपटा। नवाब सआदत अली के लखनऊ की मसनद पर बैठने से लेकर 5 बरस लगातार “बाबरी मस्जिद” पर दखलयाबी के लिए हिन्दुओं के 5 हमले हुए।फिर सन् 1857 क्रांति-काल में बहादुरशाह “जफर” को जब क्रांतिकारियों ने बादशाह घोषित किया तो उस क्रांति (गदर) के एक नेता मीरअली (या अमीर अली) ने अयोध्या व फैजाबाद के मुस्लिमों को इकट्ठा करके उनसे कहा, “हिन्दू भाई हमारे लिए आज अपना खून बहा रहे हैं, इसलिए फर्जे-इलाही हमें हिन्दुओं का साथ देने के लिए आगाह करता है कि हिन्दुओं के खुदा श्रीराम जी के पैदायशी मुकाम पर जो “बाबरी मस्जिद” बनी है वह उन्हीं को सुपुर्द कर दें, क्योंकि हिन्दू-मुस्लिम नाइत्तफाकी की सबसे बड़ी जड़ यही है। ऐसा करके हम उनके दिल पर फतेह पालेंगे।” मीर अली के इस प्रस्ताव का सभी मुस्लिमों ने समर्थन किया लेकिन अंग्रेजों को यह बात खटक गई। वे चाहते थे कि हिन्दू-मुसलमानों के दिल मिलने न पाएं अन्यथा यहां अंग्रेज खत्म हो जाएंगे। कर्नल मार्टिन ने “सुल्तानपुर गजेटियर” में लिखा, “अयोध्या की मस्जिद को मुसमलानों द्वारा हिन्दुओं को वापस किए जाने की खबर से हम अंग्रेज लोगों में घबराहट फैल गई और यकीन हो गया कि हिन्दुस्थान में अब अंग्रेज खत्म हो जाएंगे। लेकिन अच्छा हुआ कि “गदर” का पासा पलट गया और मीर अली व बलवाई बाबा रामचरण दास को फांसी पर लटका दिया गया।” 18 मार्च सन् 1858 को दोनों देशभक्तों को फांसी दी गई फिर भी अंग्रेजों की गुलामी में हिन्दुओं ने अयोध्या में दो हमले किए, जिनमें अंतिम हमला सन् 1935 में किया। तात्पर्य यह कि वहां बलिदानों की लम्बी श्रंृखला रही है।NEWS
टिप्पणियाँ