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पेटेंट कानून नरसंहार जितना घातक है
माकपा की सहयोगी आर.एस.पी. के महासचिव ने कहा-
संसद में माकपा के दबाव में समर्थन किया, पर
अब सच बात कहते हैं कि यह कानून गरीब विरोधी है
किन गरीबों और सर्वसाधारण की आवाज हैं वामपंथी? क्या उनकी जिनको अब हारी-बीमारी में दवाएं तक खाना नसीब नहीं होगा? क्या उनकी जो जीवनरक्षक दवाओं के अपनी पहुंच से बाहर होने के कारण तिल-तिल खत्म होते जाने को विवश होंगे? पेटेंट कानून पारित कराने में वाममोर्चे ने संसद में सरकार का साथ दिया था। इन वामपंथियों की पोल तब और खुली जब 24 मार्च की रात सी.एन.बी.सी.चैनल पर करण थापर के कार्यक्रम में वाममोर्चे के एक घटक आर.एस.पी. के महासचिव अबनी राय ने इस पेटेंट कानून के विरुद्ध सरकार को कोसा। उन्होंने कहा कि संसद में माकपा के कहने पर उन्होंने सरकार का समर्थन किया था। पर टी.वी.पर अबनी राय ने इस कानून को गरीबों के लिए घातक ठहराया। कार्यक्रम में “सिपला” दवा कंपनी के प्रबंध निदेशक डा. यूसुफ हामिद ने तो इस कानून को “नरसंहार” की संज्ञा दी। उन्होंने कहा कि सरकार का यह कदम बहुत खतरनाक सिद्ध होगा और दवाएं आम आदमी की पहुंच से बाहर हो जाएंगी, क्योंकि विदेशी बहुराष्ट्रीय कंपनियां अपने तय किए दामों पर यहां दवाएं बेचेंगी। अबनी राय ने कहा कि बहुराष्ट्रीय कंपनियों का एकछत्र राज चलेगा, सरकार कुछ कर नहीं पाएगी क्योंकि इस कानून के प्रावधान सरकार के हाथ बांध देंगे। नई दवाओं पर “रायल्टी” की दरें भी अभी तय नहीं है। राज्यसभा सांसद अबनी राय चाहते हैं कि यह 2 प्रतिशत या उससे कम हो और इस बारे में वे सरकार पर दबाव बनाएंगे। लेकिन लगता नहीं कि वामपंथी सरकार के विरुद्ध कोई आक्रामक रुख अपना पाएंगे क्योंकि, अबनी राय के अनुसार, सरकार को न गिरने देने की “राजनीतिक मजबूरी” उनके सामने हैं।
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