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मुस्लिम वोट पर नजर
असम में विधानसभा चुनावों में अभी वर्ष भर की देर है किन्तु मुस्लिम वोटों की चाहत ने सत्तारूढ़ कांग्रेस पार्टी और विपक्षी दल असम गण परिषद् में जंग तेज कर दी है। दोनों दल राज्य के 35 प्रतिशत मुस्लिम मतदाताओं को रिझाने में कोई कोर-कसर बाकी नहीं रखना चाहते हैं। कांग्रेस पार्टी के अल्पसंख्यक प्रकोष्ठ के अध्यक्ष इमरान हाशमी पांथिक आधार पर अगले विधानसभा चुनावों में 38 सीटें मुसलमानों और 3 सीटें ईसाइयों के लिए आरक्षित करने की मांग पहले ही कर चुके हैं। हाल ही में उन्होंने अपनी मांग के समर्थन में राजधानी दिल्ली में कांग्रेस अध्यक्षा सोनिया गांधी से भेंट की है। कांग्रेस पार्टी ने 1983 के आई.एम.डी.टी. कानून को राज्य में जारी रखने की वकालत की है। कांग्रेस के नक्शेकदम पर चलते हुए असम गण परिषद् ने भी 17 व 18 मार्च को आयोजित अपने अल्पसंख्यक सम्मेलन में मुसलमानों को राज्य में होने वाली कठिनाइयों के समाधान का मुद्दा उठाया। असम गण परिषद् मुसलमानों को यह बताना भी नहीं भूली कि मुस्लिमों की वास्तविक हितैषी तो वह है न कि कांग्रेस। कांग्रेस तो आई.एम.डी.टी. कानून की आड़ में मुसलमानों का शोषण कर रही है। यदि मुसलमान कांग्रेस के खिलाफ गए तो यही कांग्रेस आई.एम.डी.टी. कानून को हथियार बनाकर उन्हें तंग भी करने लगेगी। सूत्रों के अनुसार एक तरफ जहां असम गण परिषद् मुसलमानों को अपनी ओर लाने के लिए सारे दांव इस्तेमाल कर रही है, वहीं उसकी चिंता असम में विगत कुछ दशकों में आए भयानक जनसांख्यिकीय बदलाव को लेकर भी है। असम की जनसंख्या में मुसलमानों की तीव्र बढ़ोत्तरी ने अगप को सकते में डाल दिया है। यही कारण है कि परिषद् 25 मार्च, 1971 को अंतिम तिथि मानते हुए, इसके पूर्व तक राज्य में बाहर से आकर बसे लोगों को फोटो पहचान पत्र देने और इसी के आधार पर बीते वर्ष तक जनसंख्या आंकड़ों में सुधार करने पर जोर दे रही है।
चिन्ता दुकानदारी की
बात-बात पर पाकिस्तान की दुहाई देने वाले एवं पाकिस्तान यात्रा हेतु वीसा प्राप्त करने के लिए श्रीनगर से नई दिल्ली तक हल्ला मचाने वाले हुर्रियत नेता सैयद अली शाह गिलानी इन दिनों पाकिस्तान से नाराज हैं। इस नाराजगी के कारण 23 मार्च को उन्होंने नई दिल्ली में आयोजित पाकिस्तान दिवस समारोह का बहिष्कार तक कर दिया। गिलानी का कहना है कि हाल ही में शुरू होने वाली श्रीनगर-मुजफ्फराबाद बस सेवा राज्य के लोगों का अपमान करने के समान है और मुख्य समस्या से जनता का ध्यान हटाना है। गिलानी को मलाल इस बात का भी है कि अब पाकिस्तान उन्हें कश्मीर मसले पर उतना समर्थन नहीं दे रहा है, जितना उसे देना चाहिए। सूत्रों का कहना है कि इस बस सेवा से हुर्रियत के नेताओं को लगने लगा है कि अब उनकी दुकानदारी चल नहीं पाएगी।
आवाज उठी, पर दबी-दबी
14मार्च को बंगलादेश में जो हुआ, उसे भारत द्वारा अनदेखा नहीं किया जाना चाहिए। उस दिन हजारों बंगलादेशियों ने मानव श्रृंखला बनाकर वहां सक्रिय इस्लामिक कट्टरपंथियों और बेगम खालिदा जिया के नेतृत्व वाली सरकार के इस्तीफे की मांग की। यह सरकार इस समय जमात-ए-इस्लामी और इस्लामी ओकया जोट के सहारे चल रही है। “जोट” 11 छोटे-छोटे दलों का समूह है। इस प्रदर्शन का आह्वान आवामी लीग, जातीय समतांत्रिक दल और नेशनल आवामी पार्टी ने मिलकर किया था। यह प्रदर्शन वर्तमान सरकार द्वारा मजहबी कठमुल्लाओं को संरक्षण दिए जाने के विरोध में था। इनकी मांग थी कि सरकार देश में पनप रहे इस्लामी कट्टरपंथी संगठनों पर लगाम लगाए। उल्लेखनीय है कि बंगलादेश सरकार वहां किसी भी इस्लामिक कट्टरवादी संगठन के सक्रिय होने से इनकार करती रही है। सरकार यह भी कहती आ रही है कि उनके यहां किसी भी प्रकार के आतंकवादी प्रशिक्षण केन्द्र नहीं चल रहे हैं। सरकार ने भारत में प्रतिबंधित उल्फा और अन्य आतंकवादी संगठनों के नेताओं के बंगलादेश में पनाह लिए जाने से भी इनकार किया है। अमरीकी अखबार “द डेली स्टार” में प्रकाशित एक गुप्तचर समीक्षा के अनुसार पिछले साल चटगांव में बरामद किए गए 2000 स्वचालित हथियार यूनाइटेड लिबरेशन फ्रंट आफ असम (उल्फा) और नेशनल सोशलिस्ट काउंसिल आफ नागालैण्ड (एन.एस.सी.एन.) की आपूर्ति के लिए भेजे गए थे। इन हथियारों का मूल्य अन्तरराष्ट्रीय बाजार में 45 लाख अमरीकी डालर के करीब आंका गया था। रपट में यह भी कहा गया है कि इस योजना पर उल्फा और एन.एस.सी.एन. मिलकर काम कर रहे हैं। अफगानिस्तान युद्ध के बाद से ही इस्लामी कट्टरवादी बंगलादेश में सिर उठाने लगे थे। बेगम खालिदा जिया की पार्टी कुछ ऐसे ही कट्टर इस्लामिक संगठनों की मदद से सत्ता में है।
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