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पाठकीय

by
Mar 4, 2005, 12:00 am IST
in Archive
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दिंनाक: 04 Mar 2005 00:00:00

अंक-संदर्भ, 6 मार्च, 2005

पञ्चांग

संवत् 2061-62 वि.

वार

ई. सन् 2005

चैत्र कृष्ण 9

रवि

3 अप्रैल

,, ,, 10

सोम

4

,, ,, 11

मंगल

5

(पापमोचनी एकादशी व्रत) ,, ,, 12

बुध

6

(प्रदोष व्रत) ,, ,, 14

गुरु

7

अमावस्या

शुक्र

8

चैत्र शुक्ल 1

शनि

9

(चैत्र नवरात्रारम्भ, नव वर्ष)

नरेन्द्र मोदी का

स्वाभिमानी शासन

आवरण कथा “मोदी का सिक्का” रोचक है। वास्तव में मुख्यमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी कोटिश: बधाई के पात्र हैं, जो तमाम आघातों-प्रतिघातों और षडंत्रों को सहकर भी सफलतापूर्वक सरकार चला रहे हैं। उन्होंने जो संकल्प लिया है, निश्चित रूप से वे उसमें सफल होंगे। नरेद्र भाई तो संघ के प्रचारक रहे हैं। अत: वे ध्येय मार्ग से हट ही नहीं सकते, जब तक कि भारत माता परमवैभव के शिखर पर नहीं पहुंच जाती। रही बात आघातों की, आलोचनाओं की तो ध्येय मंदिर के पुजारी को कंटकों का ही सहारा होता है और इन कंटकों पर चलकर ही उसे विजयश्री मिलती है।

-प्रभाकर पाण्डेय

4, महाराणा भवन, कला मंदिर रोड, रीवा (म.प्र.)

पुरस्कृत पत्र

ये हैं आजम के जौहर

मौलाना मोहम्मद अली जौहर के नाम पर उर्दू, अरबी, फारसी भाषाओं के विश्वविद्यालय खोलना उत्तर प्रदेश सरकार की कार्यसूची में आज शायद सबसे ऊपर है। ऐसा लगता है कि समाजवादी पार्टी और खासतौर पर उसके नेता आजम खां को मौलाना जौहर, उर्दू, अरबी और फारसी, इन चारों से कुछ ज्यादा लगाव है। मोहम्मद अली के नाम पर अरबी, फारसी पढ़ाने के इच्छुक नेताओं को पता होना चाहिए कि ये सज्जन खुद अरबी, फारसी का अलीफ बे, ते…. भी नहीं जानते थे। उन्हें “मौलाना” की सनद नागपुर के “फिरंगी महाल” ने मतान्तरण के काम में महारथ की वजह से दी थी। मुस्लिम नेताओं को आमतौर पर बेहद सम्मान देने वाले पं. जवाहर लाल नेहरू ने भी अपनी आत्मकथा में उन्हें “हद दर्जे का मतान्ध” बताया है।

मौलाना मोहम्मद अली जौहर इस्लाम के सिपाही थे, इसके अलावा कुछ नहीं। जब प्रथम विश्वयुद्ध के बाद अंग्रेजों ने तुर्की पर कब्जा करके खलीफा का पद समाप्त कर दिया तो उसकी बहाली को शुरू हुए इस्लामी आंदोलन खिलाफत में वे अपने छोटे भाई शौकत अली के साथ पूरी ताकत से कूद पड़े। ये दोनों गांधी जी के दाएं और बाएं हाथ कहलाने लगे।

मौलाना अली ने 1921 में अफगानिस्तान के अमीर (शासक) अमानुल्ला खां को एक पत्र लिखकर उन्हें भारत पर हमले का न्योता दिया, ताकि भारत से अंग्रेजों को हटाकर इस्लामी राज की स्थापना हो सके। पर अमानुल्ला ने ऐसा नहीं किया, क्योंकि उसे अपनी और भारतीय मुसलमानों की संयुक्त ताकत पर भरोसा नहीं था। जौहर साहब 1923 में कांग्रेस के अध्यक्ष बने। काकीनाडा (आन्ध्र) में अधिवेशन था। उद्घाटन के समय जैसे ही पं. विष्णु दिगंबर पलुस्कर ने वंदेमातरम् का गायन शुरू किया, तो मौलाना ने विरोध किया कि इस्लाम में संगीत की मनाही है। कांग्रेस के मंच पर राष्ट्रगीत का यह पहला विरोध था। पं. पलुस्कर ने साफ शब्दों में मौलाना से कहा कि मंच कांग्रेस का है, इस्लाम का नहीं। इसके बाद मौलाना मंच छोड़कर चले गए।

जब तक खिलाफत आंदोलन जारी था, मौलाना कांग्रेस में रहे। जब वह खत्म हो गया तो मौलाना कांग्रेस छोड़कर मुस्लिम लीग में आ गए। इस इस्लामी नेता ने जनवरी, 1929 में आल पार्टी मुस्लिम कान्फ्रेंस को सम्बोधित करते हुए कहा था कि इतिहास में दर्ज हर लड़ाई में एक मुसलमान तीन काफिरों पर भारी पड़ा है। मौलाना को हिन्दुस्थान से इस कदर नफरत थी कि कह गए थे मरने के बाद उन्हें यरुशलम में दफन किया जाए। ऐसे शख्स के प्रति कोई आजम खां जैसा व्यक्ति ही गहरी और आक्रामक निष्ठा रख सकता है। मुलायम सिंह उन पर इसलिए वरदहस्त रखे हुए हैं, क्योंकि वे मुस्लिम मतदाताओं को रिझाने को आतुर हैं।

-अजय मित्तल

खंदक, मेरठ (उ.प्र.)

——————————————————————————–

हर सप्ताह एक चुटीले, हृदयग्राही पत्र पर 100 रु. का पुरस्कार दिया जाएगा।सं.

तथाकथित सेकुलरों के आघातों के बावजूद श्री नरेन्द्र मोदी गुजरात में अपनी पकड़ मजबूत बनाए हुए हैं, यह किसी उपलब्धि से कम नहीं है। लेकिन ध्यान रखना होगा कि कांग्रेस ने अपने राज्यपालों के माध्यम से भाजपा की सरकारों को हिलाने का प्रयास प्रारम्भ कर दिया है। इससे पहले भी उसने अपने शातिर दिमाग से विपक्षी सरकारों को हिलाया है, गिराया है। तथाकथित पंथनिरपेक्ष दल भाजपा, शिवसेना आदि को साम्प्रदायिक मानते हैं और स्वयं मुस्लिम तुष्टीकरण की नीति पर चलते हुए देश को खण्डित करने पर तुले हुए हैं।

-वीरेन्द्र सिंह जरयाल

5809, सुभाष मोहल्ला, गांधी नगर (दिल्ली)

ये कागजी शेर

मंथन स्तम्भ के अन्तर्गत श्री देवेन्द्र स्वरूप ने अपने लेख “भाजपा रोको ही उनका माक्र्सवाद” में माक्र्सवादी नेताओं के असली रूप को प्रकट किया है। वयोवृद्ध माक्र्सवादी नेता हरकिशन सिंह सुरजीत को शायद अन्तज्र्ञान हो गया है, तभी तो उन्होंने घोषणा की है कि अब उनकी पार्टी चीन का अनुसरण नहीं करेगी और वे कम्युनिज्म का माडल भारत की नीतियों के अनुरूप तैयार करेंगे। पर जो लोग “संसार के मजदूरो, एक हो” का नारा देते हैं, वही आपस में एक नहीं हैं। कागजी शेर बनने वाले कम्युनिस्ट नेता भले ही भाजपा रोको के नाम पर कांग्रेस के साथ हों, पर उनकी स्थिति “न माया मिली, न राम” वाली रहेगी।

-रामचन्द बाबानी

स्टेशन मार्ग, नसीराबाद, अजमेर (राजस्थान)

माओवाद के पैरोकार

भारत सरकार द्वारा नेपाल को सैन्य आपूर्ति रोकना, कम्युनिस्टों को खुश करने के लिए उठाया गया कदम लगता है। जबकि माओवादी आतंकवाद से त्रस्त नेपाल की सहायता करना भारत की नैतिक जिम्मेदारी है। जो लोग नेपाल में लोकतंत्र की बहाली का राग अलाप रहे हैं, वे पाकिस्तान के बारे में क्यों नहीं बोलते? चीन के प्रति वे नरमी क्यों दिखाते हैं? वस्तुत: यह उनका लोकतंत्र प्रेम नहीं, बल्कि माओवाद प्रेम है। दरअसल कम्युनिस्ट नेपाल को पूरी तरह से वामपंथीकरण होते देखना चाहते हैं। नेपाल की परिस्थितियों से हम भी अछूते नहीं रह सकते इसलिए भारत सरकार उसे हर तरह की मदद दे।

-शक्तिरमण कुमार प्रसाद

श्रीकृष्णा नगर, पथ सं. 17, पटना (बिहार)

संकट के समय किसी का भी साथ व सहयोग उसके लिए एक वरदान की तरह होता है। भारत और नेपाल की मित्रता प्राचीन समय से चली आ रही है। नेपाल इस समय कई त्रासदियों को झेल रहा है। इस संकट की घड़ी में भारत को नेपाल का सहयोग अवश्य करना चाहिए। माओवादी नेपाल से भारत में घुसपैठ कर रहे हैं। इस विषय पर गम्भीरता से चिन्तन करना चाहिए।

-विनोद कुमार शर्मा

ग्रा.व डा.-भूरा, जि.-मुजफ्फरनगर (म.प्र.)

इस्लाम और फिरके

लखनऊ में मोहर्रम के अवसर पर शिया-सुन्नी दंगों की रपट और इस सन्दर्भ में शाहिद सिद्दीकी और मौलाना कल्बे जवाद के विचार पढ़े। जब ईरान-इराक शिया-सुन्नी के मुद्दे पर 10 साल तक जंग लड़ सकते हैं, तो लखनऊ में तीन मुसलमानों के मरने का क्या महत्व है? शिया-सुन्नी दंगों में तो इस्लाम के तीन खलीफा- उमर, उस्मान व अली भी शहीद हुए थे। कुरान का अध्ययन कीजिए, उसमें शिया-सुन्नी, वहाबी-दाऊदी सहित किसी फिरके का नाम नहीं मिलेगा। इस्लाम खुद का दीन है, न कि नबी निर्मित अथवा मुसलमानों द्वारा गठित फिरकों का मजहब।

-हनीफ खान

मदारपुरा, मंदसौर (म.प्र.)

आजादी अब भी नहीं

शाहिद रहीम का आलेख “मुक्ति की चाह में” वर्तमान संदर्भ में प्रासंगिक लगा। महिलाएं सदियों से सामाजिक विषमताओं की शिकार होती आई हैं। जब कभी भी इसका सामना करने (या कहें, स्वयं की क्षमता को शालीनतापूर्वक प्रदर्शित करने) के लिए उन्होंने कुछ अद्भुत और अति महत्वपूर्ण कार्यों को अंजाम दिया, तो पारिवारिक पृष्ठभूमि और तथाकथित परंपराओं ने उन्हें नकार दिया और इसे महज एक सामान्य घटना के रूप में प्रचारित किया। जापानी महिलाएं जरूर इसका अपवाद हो सकती हैं।-दीपक नाईक

“वैभवी विहार”, 14 विद्युत नगर, इन्दौर (म.प्र.)

पूरी जानकारी दें

सम्पादकीय “के.जी.बी. के लोग” में एक महत्वपूर्ण विषय को उठाया गया है। निश्चित रूप से राजनीति से जुड़े अनेक लोग भीतर ही भीतर देश-विरोधी कृत्यों में लगे होंगे। श्री मलय कृष्ण धर की जिस पुस्तक की यहां चर्चा की गई है, उसकी विस्तृत समीक्षा से और भी बातें सामने आएंगी।

-कौलेश्वर सिंह

पढ़ें-पढ़ाएं पाञ्चजन्य

पाठकीय में श्री वेदप्रकाश विभीषण, घुघरीटंड, गया (बिहार) ने अपने पत्र “कीमत कम करें” में लिखा है- “मैं पाञ्चजन्य का वर्षों पुराना पाठक हूं। यह वर्ग-विशेष का पत्र बनकर रह गया है, इसके प्रसार में कीमत बाधक है।” दुर्भाग्यपूर्ण है कि आप पाञ्चजन्य के पुराने पाठक होकर ऐसा लिख रहे हैं। मेरे जैसा नया पाठक लिखता तो आश्चर्य नहीं होता। पाञ्चजन्य “वर्ग-विशेष” के बारे में नहीं लिखता। हमेशा राष्ट्र की चिंता करता है। “वर्ग-विशेष” (हिन्दुत्व) के खिलाफ देश का तथाकथित पंथनिरपेक्ष समाचार जगत लगा हुआ है। कई बड़े कहलाने वाले लेखकों/साहित्यकारों/समाचार-पत्रों/ चैनलों की असलियत हमें पाञ्चजन्य पढ़कर मालूम पड़ी। हमें अब तक इन्होंने भटका रखा था। इनके द्वारा अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता की आड़ लेकर देश-विदेश में एक वर्ग-विशेष के पक्ष में माहौल बनाने तथा अन्य वर्गों के विरुद्ध माहौल बिगाड़ने का काम किया जा रहा है। ऐसे लोगों से नफरत होने लगी है। ऐसी गतिविधियां देशद्रोह से कम नहीं हैं।

,डद्धऊ आप बड़े सौभाग्यशाली हैं कि पाञ्चजन्य के पुराने पाठक हैं। इसके अंक दस्तावेज की तरह संभालकर रखने योग्य हैं। हर अंक विशेषांक है। मेरा तो पाञ्चजन्य प्रबंधन से निवेदन है कि इसे पत्रिका का आकार दें, ताकि हर अंक को सहेजकर रखने में सुविधा हो। हर राष्ट्रवादी का कर्तव्य है कि पाञ्चजन्य खरीद कर अवश्य पढ़ें। साथियों को पढ़ाएं। इसके प्रचार-प्रसार में योगदान दें। यह राष्ट्र की बहुत बड़ी सेवा होगी।

-ऋषि भूपेन्द्र राठौर

31/4, नया पलासिया,

इन्दौर (म.प्र.)

मेम विदेशी

दांडी-यात्रा तो चली, मगर चली किस ओर

गांधी के विश्वास की, टूटी फिर से डोर।

टूटी फिर से डोर, लाज हरगिज न आई

मैडम इटली ने की यात्रा की अगुवाई।

कह “प्रशांत” भाषा-भूषा और राज स्वदेशी

इन्हें छोड़ बैठी है सिर पर मेम विदेशी।।

-प्रशांत

सूक्ष्मिका

कबड्डी

कबड्डी नेताजी का

प्रिय खेल है

इसलिए आज भी

उसे सींच रहे हैं,

अच्छे-अच्छों की

टांग खींच रहे हैं।

-राजेन्द्र देवधरे “दर्पण”

129, “प्रयास”, अभिषेक नगर, इन्दौर मार्ग,

उज्जैन (म.प्र.)

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