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प्रो. बलराज मधोक
खतरनाक बस!
श्रीनगर और उड़ी को पाकिस्तानी कब्जे वाले कश्मीर की राजधानी मुजफ्फराबाद से बस द्वारा जोड़ने की चर्चा बहुत दिनों से चल रही है (और जल्दी ही यह सेवा शुरू भी होने वाली है)। इसके लिए दबाव पाकिस्तान का भी था और जम्मू-कश्मीर की मुफ्ती सरकार का भी। यह प्रस्तावित बस उड़ी से कुछ मील दूरी पर नियंत्रण रेखा को पार करके पाकिस्तानी कब्जे वाले कश्मीर क्षेत्र को ही नहीं, अपितु पाकिस्तान को भी सीधे घाटी से जोड़ देगी। इस प्रकार कश्मीर घाटी, जो चहुंओर से ऊंचे पहाड़ों से घिरी हुई है और जो कहीं भी पाकिस्तान या पाकिस्तानी कब्जे के क्षेत्र के साथ भौगोलिक दृष्टि से नहीं जुड़ी है, अब पाकिस्तान के साथ सीधे तौर पर जुड़ जाएगी। फलस्वरूप पाकिस्तान का कश्मीर घाटी तक पहुंचने और उसे हस्तगत कर अपने अधिकार में लेने का “सपना” पूरा होने का रास्ता साफ हो जाएगा। दुर्भाग्य से इस बस सेवा को चालू करने के इस खतरे की ओर न भारत के नेता ध्यान दे रहे हैं और न ही मीडिया।
क्या है सांझा?
कश्मीर राज्य के संस्थापक-निर्माता महाराजा गुलाबसिंह ने इस क्षेत्र को 1846 में कश्मीर घाटी पर अधिकार करने के बाद हस्तगत किया था और प्रशासनिक दृष्टि से इसे कश्मीर घाटी के साथ जोड़ दिया था। परंतु ऐतिहासिक, भौगोलिक, सांस्कृतिक, भाषाई और जातीय दृष्टि से क्षेत्र के लोगों और कश्मीर के लोगों में कुछ भी सांझा नहीं है। मुझे 1932-33 में कृष्णगंगा नदी के तट पर पहाड़ की तलहटी में बसे रमणीक नगर मुजफ्फराबाद में कुछ महीने बिताने का अवसर मिला था। वहां जिस हाई स्कूल में मैं पढ़ता था, उसमें एक भी कश्मीरी भाषा-भाषी विद्यार्थी नहीं था। वहां के लड़के एक स्थानीय लोक्ति दोहराते थे “अव्वल अफगान, दोयम कम्बो और सोयम बदजात कश्मीरी पर कभी विश्वास मत करो।” इससे स्पष्ट हो जाता है कि इस क्षेत्र का कश्मीरी भाषा-भाषी क्षेत्र से संबंध नहीं हैं, अपितु बल्कि दोनों के बीच एक गहरी खाई भी विद्यमान है।
अक्तूबर, 1947 में जब पाकिस्तान का कश्मीर पर पहला हमला हुआ, उस समय इस सीमा पर जम्मू-कश्मीर रियासत की चौथी पलटन, जिसमें आधे हिन्दू और आधे मुसलमान थे, तैनात थी। मुजफ्फराबाद शहर एक ओर श्रीनगर से रावलपिंडी जाने वाली झेलम नदी के तट के साथ-साथ चलती सड़क और दूसरी ओर कृष्णगंगा के उस पार एबटाबाद जाने वाली सड़क से जुड़ा हुआ था। इन दोनों नदियों पर लोहे के दो मजबूत पुल थे। जहां कृष्णगंगा नदी मुजफ्फराबाद से लगभग एक मील दूरी पर झेलम में मिलती है, उस स्थान को “दोमेल” कहा जाता है।
शेख अब्दुल्ला की करतूत
21 अक्तूबर, 1947 को जब भारत पर पाकिस्तान का हमला हुआ तब जम्मू-कश्मीर रियासत की सेना के सभी मुसलमान सिपाही और अधिकारी पाकिस्तान से जा मिले थे। फलस्वरूप, पाकिस्तानी सेना बड़ी आसानी और तेजी से कृष्णगंगा नदी पार करके मुजफ्फराबाद शहर में आ घुसी और जिलाधिकारी श्री मेहता दुनीचंद को समर्पण करने को कहा। उनके इन्कार करने पर दफ्तर में ही गोली मार कर उनकी हत्या करके शहर पर अधिकार कर वे “दोमेल” की ओर बढ़े तथा झेलम के पुल पर अधिकार कर लिया। रियासती सेना की पलटन के कमांडिंग अधिकारी कर्नल नारायणसिंह को उनके तम्बू के बाहर उनके मुसलमान संतरी ने गोली मार दी। इस प्रकार 11 अक्तूबर को हमलावर श्रीनगर को जाने वाली मुख्य सड़क पर आ गए और तेजी से घाटी की ओर बढ़ने लगे। 23 अक्तूबर को वे उड़ी के पास पहुंच गए। वहां पर रियासत की सेना के कमांडर ब्रिगेडियर राजेन्द्र सिंह ने उनका कड़ा मुकाबला किया और 24 अक्तूबर तक उनको रोके रखा। उनके उसी दिन अपने साथियों सहित वीरगति प्राप्त करने के बाद पाकिस्तानी सेना कश्मीर घाटी की ओर बढ़ी और 25 अक्तूबर प्रात: तक घाटी में घुस आई। यदि पाकिस्तानी सेना एक दिन बारामूला में मौजमस्ती में न गंवाती तो वह उसी दिन या 26 अक्तूबर को श्रीनगर पहुंच जाती। इस बीच श्रीनगर और दिल्ली में घटनाचक्र तेजी से घटा। 26 अक्तूबर को महाराजा हरिसिंह द्वारा दिए गए “विलय पत्र” को भारत सरकार ने स्वीकार कर लिया और 27 अक्तूबर को भारतीय सेना की पहली टुकड़ी कर्नल रंजीतराय के नेतृत्व में श्रीनगर पहुंच गई। उसने उसी समय कार्यवाही शुरू कर दी और दो घंटे बाद कर्नल राय वीरगति को प्राप्त हुए। परंतु शाम तक भारतीय सेना ने पाकिस्तानी सेना को बारामूला तक पीछे धकेल दिया। इस प्रकार शेख अब्दुल्ला, जो हमले से पहले ही कश्मीर घाटी से भाग चुका था, का कश्मीर वापस लौटने का मार्ग प्रशस्त हुआ।
चूंकि शेख अब्दुल्ला का कश्मीर घाटी के बाहर कोई प्रभाव नहीं था, इसलिए वह चाहता था कि मुजफ्फराबाद का गैर कश्मीरी मुस्लिमबहुल क्षेत्र भले ही पाकिस्तान के क्षेत्र में चला जाए। इसी कारण जब 1948 के अंत में भारतीय सेनाओं ने तेजी से आगे बढ़ना शुरू किया, तब शेख अब्दुल्ला के दबाव में पं. नेहरू ने पहली जनवरी, 1949 को एकतरफा युद्धबंदी की घोषणा कर दी। फलस्वरूप जहां तक भारतीय सेना पहुंच चुकी थी वह स्थान तो भारतीय क्षेत्र में रहा और शेष पाकिस्तान के अधिकार क्षेत्र में चला गया। इस कारण मुजफ्फराबाद जिले के कश्मीर के साथ लगने वाले उड़ी-टीटवाल इलाके को छोड़ कर सारा भाग पाकिस्तान के अधिकार में चला गया और यह जिला पाकिस्तान का अंग बन गया।
सावधानी की जरूरत
बहरहाल, बिना पासपोर्ट के इस प्रस्तावित बस सेवा के चलने से व्यावहारिक रूप में कश्मीर घाटी और पाकिस्तान के बीच पड़ने वाला सारा क्षेत्र कश्मीरियों के लिए खुल जाएगा, पाकिस्तानियों के लिए तो यह पहले ही खुला है। इस प्रकार कश्मीर घाटी पहली बार सीधे पाकिस्तान की पहुंच में आ जाएगी। यही कारण हैं कि पाकिस्तानी अखबार और पाकिस्तानी टेलीविजन ढोल पीट रहे हें और कह रहे हैं कि अब कोई ताकत कश्मीर को पाकिस्तान के साथ जुड़ने से रोक नहीं सकती।
दुर्भाग्य से भारत के नेता और मीडिया के अधिकांश लोग इस वस्तुस्थिति को न समझते हैं और न समझना चाहते हैं। वे जाने-अनजाने शांति की मृगमरीचिका के पीछे भागते हुए यह खतरनाक खेल खेल रहे हैं। यह स्थिति गंभीर है और अभी भी इससे बचा जा सकता है। परंतु बस सेवा शुरू होने और खुल्लमखुल्ला आना-जाना शुरू हो जाने के बाद स्थिति को संभालना असंभव नहीं तो बहुत कठिन अवश्य हो जाएगा।
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