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-डा. विनोद प्रकाश
पूर्व अर्थ विशेषज्ञ, बल्र्ड बैंक (अमरीका)
श्री नरेन्द्र मोदी को अमरीका ने वीसा नहीं दिया। इसके पीछे अमरीका या अन्य देशों में भारत विरोधी माहौल बनाने या भारत के आंतरिक मामलों को विदेशी धरती पर दुष्प्रचारित करने वाले सेकुलरों का ही दबाव होगा। मुझे लगता है कि इसमें कहीं न कहीं भारत के राष्ट्रवादी विचार रखने वालों का भी दोष है। आजादी मिले 57 साल हो गए, पर शिक्षा का स्वरूप अब भी भारत के गौरवपूर्ण अतीत को भुलाता ही दिखता है। स्वामी विवेकानंद और बाद में गांधी जी ने भी चरित्र निर्माण में शिक्षा की महत्वपूर्ण भूमिका पर जोर दिया था। लेकिन इन विभूतियों के विचारों पर हमने बहुत अधिक ध्यान नहीं दिया। इसलिए हमारा मूल चिंतन आध्यात्मिकता से दूर होता गया।
एक कमी यह भी रही कि प्रमुख राष्ट्रीय मंचों और मीडिया पर सेकुलर तत्वों को हावी होने दिया गया। बुद्धिजीवी मंचों पर भी राष्ट्रवादी सोच के लोगों पर ये हावी रहते हैं। यही कारण है कि विदेशों में भी ये सेकुलर तत्व भारत-विरोधी माहौल बनाने में सफल हो जाते हैं। जान दयाल हों, सीताराम येचुरी, अरुंधती राय या शबाना आजमी- ये जब भी अमरीका या कहीं और जाते हैं तो हर मंच से ऐसी ही बातें प्रचारित करते हैं जिनसे भारतीय गौरव को ठेस पहुंचती है।
पाञ्चजन्य
वर्ष प्रतिपदा विशेषांक, संवत् 2062 वि.
10 अप्रैल, 2005
भारत हिन्दू क्यों रहे?
इस विशेषांक में हिन्दू अस्मिता के संघर्ष के संदर्भ में श्रीगुरु जी के विचारों पर
एक विशेष खंड भी
प्रस्तुत किया जाएगा।
श्री गुरुजी
वर्तमान संवेदनशील एवं कुहासे भरे वातावरण में हिन्दू अस्मिता के संघर्ष के ताने-बाने को ऐतिहासिक परिप्रेक्ष्य में प्रस्तुत करने का एक महत्वपूर्ण प्रयास।
भारत में हिन्दुओं की स्थिति का अर्थ क्या है? पूर्वोत्तर से लेकर गोधरा तक और कश्मीर से लेकर कांचीपुरम तक हिन्दू संवेदनाओं पर प्रहार राजनीतिक सत्ता का मुख्य चेहरा क्यों बनता जा रहा है?
हिन्दू संवेदनाओं के प्रति केवल एक विचारधारा और कुछ संगठनों के अतिरिक्त शेष राजनीतिक दलों एवं समाज के विभिन्न क्षेत्रों के अग्रणी हिन्दू चुप और निष्क्रिय क्यों रहते हैं?
हिन्दू अस्मिता के संघर्ष का विभिन्न कालखण्डों में क्या स्वरूप रहा है और यह आज किस मोड़ पर खड़ा है?
क्या यह सत्य है कि हिन्दू समाज का तेजोभंग करने का सुनियोजित प्रयास किया जा रहा है? हिन्दू संगठनों की तेजस्विता और आक्रामकता कहां है?
मुस्लिम तथा ईसाई समाज के साथ हिन्दुओं के सम्बंधों पर एक दृष्टि तथा जिहादियों और बेनी हिन जैसे आक्रामक ईसाई प्रचारकों से लेकर पूर्वोत्तर में एन.एस.सी.एन. के अतिवादी ईसाई विद्रोह तक के प्रति हिन्दू समाज का क्या प्रत्युत्तर होना चाहिए?
इन सब बिन्दुओं पर देश के प्रतिष्ठित विचारक एवं मनीषी अपनी बात रखेंगे।
चूंकि यह विशेषांक अन्य विशेषांकों से कुछ अलग हटकर एवं विशेष होगा अत: सामान्य विशेषांकों की अपेक्षा इसमें अधिक पृष्ठ होंगे।
पृष्ठ – 120
मूल्य – 15 रुपए
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