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नई वर्ष 58, अंक 44 चैत्र कृष्ण 9, 2061 वि. (युगाब्द 5106) 3 अप्रैल 2005
अमरीकी राजदूत की धमकी से उठा सवाल भारत का सत्ताकेन्द्र वाशिंगटन में? स्वदेशी मुद्दों के समाधान हेतु विदेशी दखल आमंत्रित करने वालों की देशभक्ति पर सवाल।
अमरीका में भारत विरोधी षड्यंत्र सफल
मोदी प्रसंग ने विदेशों में सक्रिय कट्टर भारत विरोधी ईसाई-वामपंथी गठजोड़ को बेनकाब किया। ये लोग भारतीय मुद्दों के समाधान हेतु विदेशी सरकारों की दखल आमंत्रित करते हैं और विदेशी संसदों में गवाहियां देते हैं।
भारतीय मजदूर संघ की स्वर्ण जयंती पर विशेष आयोजन
मूल चिंतन से भटकाव के कारण यह स्थिति बनी -डा. विनोद प्रकाश पूर्व अर्थ विशेषज्ञ, बल्र्ड बैंक (अमरीका)
कम्युनिस्ट विश्वासघात की कहानी-4 अपनी माटी से छल -रामशंकर अग्निहोत्री
गुजरात पाकिस्तानी सिंध मूल के 593 शरणार्थियों को भारतीय नागरिकता -वि.सं.के., अमदाबाद
दिल्ली सतीश चौहान ने बिखेरी “दिव्य प्रेम” की छटा -प्रतिनिधि
कोलकाता सत्ता से भटकाव आता है -आचार्य विष्णुकांत शास्त्री, पूर्व राज्यपाल, उत्तर प्रदेश
उदयपुर सेवा भारती का संस्कार शिविर देश सेवा ही सच्ची सेवा -उदयपुर प्रतिनिधि
पाकिस्तान यात्रा से लौटे तीर्थयात्रियों की गुहार पाकिस्तान स्थित मंदिरों को बचाएं -अबोहर से राकेश सैन
उद्योग जगत के निशाने पर “वैट” -दीवान अमित अरोड़ा
तमिल साहित्यकार डी. जयकान्तन को ज्ञानपीठ पुरस्कार -प्रतिनिधि
स्वधर्म के प्रति जग रही है चेतना जोलियांगरांग हेराका एसोसिएशन के सम्मेलन से उड़ी चर्च की नींद स्वधर्म, स्वसंस्कृति का पालन करने वाले नागा ही समाज के वास्तविक प्रतिनिधि -टी.आर.जेलियांग, सांसद, राज्यसभा
झारखण्ड राजनीतिक विरोधियों ने की मन्मथ मण्डल की हत्या उनका “जुर्म” था वनवासियों की सेवा -गोपाल पाण्डेय
ब्रिटेन की संसद ने मनाई रामनवमी (इं.वि.सं.के.)
वंदनीया लक्ष्मीबाई केलकर पर बनी एक अनूठी फिल्म-“तेज-तपस्विनी”
बांध सबको एक सूत्र में, सबके साथ चलीं -प्रतिनिधि
पंजाब हिन्द समाचार समूह ने किया शहीदों का पुण्य स्मरण -प्रतिनिधि
भाजपा के विरोध के बावजूद कम्युनिस्टों की मदद से कांग्रेस ने पारित किया जन-विरोधी पेटेंट कानून काला कानून -आनंद
“सिपला” के यूसुफ हामिद ने कहा- पेटेंट कानून नरसंहार जितना घातक है
माकपा की सहयोगी आर.एस.पी. के महासचिव ने कहा- संसद में माकपा के दबाव में समर्थन किया, पर अब सच बात कहते हैं कि यह कानून गरीब विरोधी है
… और उधर भारत के कपड़ा उद्योग पर चीन की निगाह
डा.भूपेन्द्र कुमार मोदी बना रहे हैं भगवान बुद्ध पर फिल्म -प्रतिनिधि
छात्रों और शिक्षकों से श्री सुदर्शन का आह्वान-भारत को महाशक्ति बनाने का सपना पूरा करें! -प्रतिनिधि
चर्चा-सत्र खतरनाक बस! -प्रो. बलराज मधोक
सम्पादकीय अमरीकी राजदूत की धमकी और भारत की शर्म में सेकुलर उल्लास का अर्थ
भारत का सत्ता केन्द्र वाशिंगटन नहीं हो सकता आमिर खान की साम्प्रदायिकता
मंथन अमरीका में भारत विरोधी षड्यंत्र सफल भारत की बदनामी, इनकी खुशी -देवेन्द्र स्वरूप
टी.वी.आर. शेनाय मोदी का वीसा खुश है ईसाई-वामपंथी “मानवाधिकारवादी” गठजोड़
संस्कृति सत्य श्री राम जन्मभूमि पर गोरों की राजनीति -वचनेश त्रिपाठी “साहित्येन्दु”
पाञ्चजन्य पचास वर्ष पहले “क्षेत्रीय समिति योजना” के पीछे गम्भीर रहस्य विद्रोह के भय से सरकार अकालियों के समक्ष झुकी षडंत्र पर पर्दा डालने के लिए महापंजाबियों पर अत्याचार? -निज प्रतिनिधि द्वारा
बाल जगत सुनो कहानी बूझो तो जानें
पुस्तक समीक्षा भारतीय लोक यात्रा की रोचक कथा -समीक्षक
हिन्दू भूमि दर्शन -सुरेश सोनी
पाठकीय नरेन्द्र मोदी का स्वाभिमानी शासन
कही-अनकही रामदेव जी, लाइलाज बीमारी है सेक्युलेरिया -दीनानाथ मिश्र
गहरे पानी पैठ मुस्लिम वोट पर नजर
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सेकुलर गठजोड़ की मुहिम
-दिनेश अग्रवाल
प्राध्यापक, मेटीरियल्स, पेन्सिलवेनिया स्टेट यूनिवर्सिटी (अमरीका) एवं पूर्व अध्यक्ष- भाजपा के सागरपारीय मित्र इसमें दो राय नहीं है कि अमरीका में भारत-विरोधी, हिन्दुत्व-विरोधी, पाकिस्तान- समर्थक, जिहाद- समर्थक तत्वों और ईसाई मतान्तरणकारियों के बीच गहरा गठजोड़ है। ये लोग हर उस मुद्दे पर मिल जाते हैं जिससे आमतौर पर भारत और खासकर हिन्दुओं को ठेस पहुंचती हो। हिन्दुत्व-विरोधी गुटों में ज्यादातर तथाकथित प्रगतिवादी/वामपंथी हैं और उनके साथी भारत में कम्युनिस्ट संगठनों के सदस्य हैं। यहां अमरीका में वे अपनी पहचान सामाजिक और दक्षिण एशियाई संगठनों के पीछे छुपाए रखते हैं। ये लोग खुद को भारतीय नहीं, बल्कि दक्षिण एशियाई कहलवाना पसंद करते हैं ताकि पाकिस्तानी भी उनके संगठन से जुड़ सकें। इनमें से ज्यादातर संगठनों ने हिन्दुओं की भत्र्सना करने के लिए विभिन्न देशों के जिहादी तत्वों के कार्यक्रम आयोजित किए हैं। ये संगठन भारत और दक्षिण एशिया में आपदाग्रस्त लोगों की राहत के नाम पर बड़ी मात्रा में पैसा इकट्ठा करते हैं, लेकिन इसका कुछ हिस्सा भारत के वामपंथी, संगठनों को जाता है और इसके अलावा वामपंथी नक्सलवादी नेताओं को अन्य देशों की यात्राएं कराते हैं।
नरेन्द्र मोदी को वीसा से मना करने के वर्तमान प्रकरण में इन संगठनों की मुख्य भूमिका रही है। उन्होंने अमरीकी विदेश विभाग पर नरेन्द्र मोदी को वीसा से इनकार करने का दबाव बनाया। इन लोगों और संगठनों ने ओसामा बिन लादेन, मुशर्रफ, दाउद इब्राहिम या भारत में हुए अनगिनत इस्लामी जिहादी कृत्यों के विरोध में न तो कभी आवाज उठायी है और न कोई आंदोलन छेड़ा है। लेकिन हिन्दुओं के नरसंहार की प्रतिक्रियास्वरूप गुजरात में हुए दंगों को लेकर उन्होंने केवल झूठ और झूठ ही प्रचारित किया ताकि हिन्दुओं और नरेन्द्र मोदी का अपमान हो और परिणामत: भारत और इसके गौरव पर बट्टा लगे। उन्हें हिन्दू सभ्यता में कुछ भी अच्छा नहीं दिखता। वे भारत की वर्तमान समस्याओं के लिए हिन्दुओं को कटघरे में खड़ा करते हैं। वे हिन्दुत्व से नफरत करते हैं। ईसाई संगठन उनके साथ मिलने को इसलिए आतुर रहते हैं क्योंकि भारत में मतान्तरण के उनके एजेंडे में ये सहायक होते हैं। ये नए मीर जाफर भारत के अपमान में आनंद महसूस करते हैं और विदेशी धरती पर भारत की छवि धूमिल करते हैं। उन्हें आज अपनी जीत का भान हो रहा है क्योंकि विदेशी आयोगों के सामने उनके द्वारा अपने देश के खिलाफ दिखाए पैंतरे और भारतवासियों के विरुद्ध दुष्प्रचार सफल हो रहा है। अक्षरधाम, गोधरा रेल नरसंहार, मुम्बई बम विस्फोट, संसद पर हमला, कोयम्बतूर बम विस्फोट, कश्मीर से हिन्दुओं का पलायन आदि उनकी चेतना को नहीं भेदते।
अमरीका द्वारा गुजरात दंगों का हवाला देते हुए मोदी को वीसा से इनकार करने की बात अगर सही है तो फिर इस्रायल, सउदी अरब, चीन और दूसरे कई मुस्लिम देशों, जहां मजहबी आजादी का नामोनिशान नहीं है, के नेताओं और अन्य लोगों को अमरीका वीसा क्यों देता है? चीन अपने यहां ईसाइयत और इस्लाम सहित सभी मत-पंथों की मजहबी गतिविधियों का निर्ममता से दमन करता रहा है। थ्येनआनमन चौराहे पर 1989 में इसने हजारों आंदोलनकारी छात्रों का नरसंहार किया था। लेकिन उसे कभी वीसा देने से मना नहीं किया गया, बल्कि इन देशों के नेता और सरकारी अधिकारी अमरीका और व्हाइट हाउस आते रहे हैं, उनका दिल खोल कर स्वागत किया गया है। यह दोगलापन क्यों?
वास्तव में तो जब भारत में ही खुद को सेकुलर दिखाने की होड़ में पाखंड और दोगलेपन का यही दृश्य दिख रहा हो तो हमें अमरीका को दोष क्यों देना चाहिए। खुद को सेकुलर कहने वाले सम्मान के भूखे मानवाधिकारियों, संदिग्ध सांप्रदायिक संगठनों, मीडिया वालों, गिलानी के पैरोकारों और अल्पसंख्यक वोट बैंक चाहने वाले राजनीतिज्ञों को ही देख लें। ध्यान दें, मोदी को वीसा से मना करते समय अमरीकी सरकार ने भारत के राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग की ही रपट का उल्लेख किया, जिसमें गुजरात सरकार को कटघरे में खड़ा किया गया था।
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