जहां पूरब की ओर खुलती है खिड़की - 2
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जहां पूरब की ओर खुलती है खिड़की – 2

by
Feb 10, 2005, 12:00 am IST
in Archive
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दिंनाक: 10 Feb 2005 00:00:00

सिंगापुरतेज भागती कारें और दौड़ता जीवन- विनोद कुमार अग्रवालविनोद कुमार अग्रवालसिंगापुर में हम लोग होटल गोल्डन लैण्डमार्क में रुके। इस पांच सितारा होटल में सारी व्यवस्थाएं हमारे यात्रा प्रबंधक श्री दीपक ने की थीं। होटल की ओर जाते समय हमने एक भारतीय शैली का बाजार देखा। पूछने पर पता चला कि यहां पर काफी कुछ माल भारत से ही आता है। हम टैक्सी लेकर सिंगापुर के सबसे बड़े और मशहूर बाजार आरचर्ड स्ट्रीट गए। वहां पर बड़े-बड़े “माल्स” बीस-बीस मंजिल के हैं, जिनकी शोभा और भव्यता देखते ही बनती है। इन भवनों में विद्युत चालित सीढ़ियां लगी हैं, पारदर्शी शीशों में लिफ्ट का सहज आवा-गमन ऐसे हो रहा था, मानो चमचमाती सड़क पर गाड़ियां दौड़ रही हों। स्वचालित सीढ़ियों पर खड़े होकर चलते रहने का आनन्द अपने में अद्भुत था। इन “माल्स” में चीजों के दाम मालूम कर हम भौंचक रह गए। मुझे वहां कुछ भारतीय नौजवान भी मिले। पता चला कि वे वहां नौकरी के सिलसिले में भारत से आए हैं। सिंगापुर में काफी भारतीय रहते हैं। सड़कों पर दुमंजिला बसों, कारों व टैक्सियों की भरमार और गतिशीलता से लगता था जैसे जिन्दगी को कहीं रुकने की फुरसत नहीं है। बेवजह कोई कहीं खड़ा हो, ऐसे व्यक्ति मुझे खोजे न मिले।वास्तव में सिंगापुर एक बहुत खूबसूरत द्वीपसमूह है। जिसमें कई छोटे-छोटे द्वीप हैं। सिंगापुर पहले मलेशिया देश का ही हिस्सा था। 1964 में एक बहुत बड़े चीनी मूल के मलेशियाई नेता लिनक्यू ने बगावत का झंडा खड़ा किया और मलेशिया से अलग होकर सिंगापुर की स्थापना की। उनके आह्वान पर मलेशिया से बहुत बड़ी तादाद में चीनी मूल के लोग सिंगापुर आ गए। आज सिंगापुर में लगभग 70 प्रतिशत चीनी हैं। यहां की मुद्रा सिंगापुरी डालर जिसको ये लोग सिंग डालर, भी कहते हैं, प्रचलित है। 27 भारतीय रुपयों का एक सिंग डालर होता है। सिंगापुर की कुल आबादी लगभग 45 लाख है। इसकी लम्बाई भी लगभग 50 किलोमीटर से कम है। इतनी कम आबादी और इतने कम क्षेत्रफल का यह देश इतने कम समय में इतनी तरक्की और विकास कर गया, देखकर आश्चर्य होता है।सिंगापुर की पहचान: सिंह मुखाकृति वाला स्मारक जिसे देखने बड़ी संख्या में देशी-विदेशी पर्यटक पहुंचते हैं।एक बात और विस्मयकारी लगी कि सिंगापुर स्वयं एक देश भी है और राजधानी भी है। यहां पूर्णतया मुक्त अर्थ-व्यवस्था है लेकिन समाज में रहन-सहन के जो कानून बनाए गए हैं, उनका अनुपालन बड़ी सख्ती से होता है। नियमों का पालन करना हर नागरिक का परम कर्तव्य है। मैंने यहां सार्वजनिक स्थानों पर “परमिटिड बाइ ला” और “प्राहिबिटिड बाइ ला” खूब लिखा हुआ देखा। यह बात हमको भली प्रकार मैडम चेन ने भी बतलाई और मिस्टर जॉनी ने भी। यहां तक कि सड़क पर पैदल चलने वालों के लिए भी कानून है। लोग किसी निश्चित जगह से हरी-बत्ती होने पर ही सड़क पार कर सकते हैं अन्यथा फौरन जुर्माना होता है। यह बात जानकर मुझे बड़ा आश्चर्य हुआ कि सिंगापुर में अपनी कोई पैदावार नहीं है। यहां लोग किसी खाद्यान्न और सब्जियों आदि का उत्पादन नहीं करते। यहां तक कि इनके पास नहाने और पीने तक के लिए भी अपना पानी नहीं है। यह देश अपनी पानी की जरूरत मलेशिया से पानी खरीद कर पूरी करता है। और फिर इस पानी को अपने यहां मशीनों से साफ और स्वच्छ करके बढ़ी हुई कीमत पर मलेशिया को वापस बेचता भी है। सिंगापुर के प्रसिद्ध पर्यटक स्थलों में “नाइट सफारी” नाम का बहुत ही प्रसिद्ध स्थल है जहां के चिड़ियाघर में भयानक जानवर शेर, चीते प्रचुर मात्रा में देखने को मिलते हैं।सुप्रसिद्ध जुरौंग बर्ड पार्क में संसार के विविध पक्षियों की जातियों एवं छोटे-बड़े जानवर पिंजरों में देखने को मिलते हैं। इसी उद्यान में एक अतिसुन्दर मोनोरेल भी चलती है जिसमें बैठकर हम सभी ने पूरे उद्यान को देखा। सिंगापुर से हम लोग पर्यटक बस द्वारा उस स्थल पर पहुंचे जहां से सेन्तोसा द्वीप के लिए हमें रज्जू मार्ग द्वारा जाना था। सेन्तोसा की यात्रा काफी रोमांचकारी थी। ये रज्जू मार्ग लगभग 4 कि.मी. लम्बा दुनिया का सबसे लम्बा रज्जू मार्ग है। सेन्तोसा में हमने “पानी के फव्वारों” का अद्भुत प्रदर्शन देखा। पानी की तेज धार वाली रंग-बिरंगी लहरों पर एक आदमी को नृत्य करते देख हमारी आखें फटी रह गईं। प्रदर्शन के दौरान ही मेरे पास एक प्रौढ़ महिला आकर बैठी जो बुरके में थी, लेकिन चेहरा खुला हुआ था। मेरे पूछने पर उसने अपना देश कुवैत बताया। मैंने जब उसे बताया कि मैं “इंडिया” से आया हूं तो उसने मुझसे प्रश्नवाचक निगाहों से कहा “हिन्दू”? फिर उसने पूछा, “क्या आपका भगवान गाय है?” मैंने उसको बताया, “गाय हमारे लिए मां की तरह है क्योंकि वह वैदिक काल से भारतीय सामाजिक और आर्थिक जीवन का मूल आधार रही है। रही बात भगवान की तो वह “सर्वशक्तिमान” है, हम उसे निराकार व साकार दोनों रूपों में देखते हैं।” इस पर वह मुस्कराई और अल्लाह कहते हुए उसने माला निकाल कर इबादत में होंठ हिलाने शुरू कर दिये। “पानी के फव्वारों” का आनन्द लेकर हम पुन: अपने होटल लौट आए, जहां से हमें स्वदेश वापसी के लिए सिंगापुर से विदा लेनी थी।NEWS

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