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आत्मैव ह्रात्मनो बन्धुरात्मैव रिपुरात्मन:।आत्मैव ह्रात्मन: साक्षी कृतस्याप्यकृतस्य च।।मनुष्य स्वयं ही अपना बंधु है, स्वयं ही अपना शत्रु है, स्वयं ही अपने कर्म और अकर्म का साक्षी है।-वेदव्यास (महाभारत, अनुशासन पर्व, 6/27)रूस के सूत्रआखिरकार तमाम सरकारी अड़चनों, अवरोधों को दूर करते हुए नेताजी सुभाष चंद्र बोस से जुड़ीं गुत्थियां सुलझाने के लिए न्यायमूर्ति एम.के. मुखर्जी 20 सितम्बर को रूस पहुंचे। नेताजी की रहस्यमय परिस्थितियों में कथित मृत्यु की जांच के लिए पूर्व राजग सरकार ने मुखर्जी आयोग का गठन किया था। न्यायमूर्ति मुखर्जी की जांच में एक चौंकाने वाला तथ्य तब सामने आया था जब वे ताइवान गए थे, जहां की सरकार ने साफ बताया था कि 18 अगस्त, 1945 को ताइवान में कोई हवाई दुर्घटना ही नहीं हुई थी। इससे यह बात तो सिद्ध हो गई थी कि ताइवान में कथित हवाई दुर्घटना में नेताजी की मृत्यु नहीं हुई थी। तब कहां थे नेताजी? जापान से निकलकर आखिर भारतीय स्वतंत्रता संग्राम का वह अद्वितीय योद्धा अचानक कहां ओझल हो गया? इस संदर्भ में सरकार के पास मौजूद अनेक गोपनीय फाइलें तक गायब कर दी गईं। (इसका विवरण पाञ्चजन्य में प्रकाशित किया जा चुका है।) सरकार के पास इस बात का कोई जवाब नहीं है कि आखिर सात तालों में बंद रहने वाली वे अति संवेदनशील फाइलें कहां चली गईं। बहरहाल इस बात के भी सबूत मिले थे कि सन् “50 के आस-पास नेताजी को रूस के साइबेरिया क्षेत्र में देखा गया था। रूस में भारत के तत्कालीन राजदूत ने स्वयं इस बात की पुष्टि तब की थी जब पं. जवाहरलाल नेहरू प्रधानमंत्री थे। पर मामला दबाए रखा गया था। क्यों? बहरहाल, यही गुत्थी सुलझाने न्यायमूर्ति मुखर्जी रूस गए हैं, जहां वे 10 दिन में उन तमाम सबूतों की खोज करेंगे जो सूत्र दर सूत्र जुड़कर रहस्य पर से पर्दा हटाएंगे। न्यायमूर्ति मुखर्जी रूस में कुछ गवाहों से मिलेंगे, रूस की विज्ञान अकादमी के इंस्टीट्यूट आफ ओरिएंटल स्टडीज के कुछ खास विद्वानों से भेंट करेंगे। रूसी सरकार ने आयोग के लिए हर तरह की सहायता का आश्वासन दिया है और संभवत: वह राष्ट्रपति पुतिन के संग्रहालय के निरीक्षण की भी इजाजत देगी, जहां उस कालखण्ड के विभिन्न महत्वपूर्ण दस्तावेज एकत्र हैं। (हालांकि इस बात की संभावना कम है।) न्यायमूर्ति मुखर्जी को इनमें बहुत से तार मिलने की उम्मीद है। रूस के अभिलेखागारों में भी नेताजी से जुड़े कागजात और जानकारी मिल सकती है। न्यायमूर्ति मुखर्जी साइबेरिया के ओमस्क, इरकुस्क और सेंटपीट्सबर्ग शहरों में जाकर उन सबूतों की जांच करेंगे जो दावा करते हैं कि 18 अगस्त, 1945 के बाद नेताजी रूस में थे। न्यायमूर्ति मुखर्जी के साथ गए आठ सदस्यीय दल में फारवर्ड ब्लाक के सांसद और नेताजी के भतीजे सुब्रात बोस भी शामिल हैं।1945 के बाद नेताजी के जीवन से जुड़े रहस्य का पता लगाने के लिए बने पहले के दो आयोगों-शाहनवाज आयोग और खोसला आयोग- ने ताइवान की हवाई दुर्घटना में नेताजी की मृत्यु की कथा को सही ठहराया था। लेकिन यह तीसरा न्यायमूर्ति मुखर्जी आयोग जिस स्पष्टता और दृढ़ता के साथ आग्रहपूर्वक चीजों की तह में जाने में रुचि ले रहा है उससे एक उम्मीद बंधी है कि जापान के रेंकोजी मंदिर में रखीं नेताजी की कथित अस्थियों की असलियत पता लगेगी।आयोग का वर्तमान कार्यकाल आगामी नवम्बर माह के मध्य तक ही है। अगर तब तक चित्र साफ न हो तो उसका कार्यकाल निश्चित रूप से इस सरकार को बढ़ाना ही चाहिए।NEWS
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