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दिल्ली और आस पास

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Feb 10, 2005, 12:00 am IST
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दिंनाक: 10 Feb 2005 00:00:00

बढ़ते बंगलादेशीऔर उधर अदालत के आदेश पर कार्रवाई नहीं- अरुण कुमार सिंहअब डेरा यहीं जमेगा- दिल्ली में एकबंगलादेशी परिवारज्यादा समय नहीं बीता है, जब मीडिया में ये खबरें सुर्खियों में छाई थीं कि दिल्ली भारत की अपराध राजधानी बनती जा रही है। आंकड़ों को देखें तो पिछले 5 साल में राजधानी दिल्ली सहित अन्य निकटवर्ती उपनगरों, जैसे-गुड़गांव, फरीदाबाद गाजियाबाद, नोएडा, आदि जगहों पर 250 से अधिक आपराधिक वारदातें हुई हैं। इनमें चोरी, डकैती, राहगीरों को लूटना, आगजनी, महिलाओं के विरुद्ध अपराध जैसी वारदातें शामिल हैं।राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र में इतने कम समय में इतनी अधिक घटनाओं का होना आश्चर्य की बात है। किन्तु इससे भी बड़ी चिंता का विषय तो यह है कि इन अधिकांश वारदातों के पीछे बंगलादेशी घुसपैठियों का हाथ है। पुलिस सूत्रों के अनुसार चाहे सन् 2003 का गुड़गांव अग्निकांड हो, फरीदाबाद में गो-हत्या की घटना हो या दिल्ली में आए दिन होने वाली चोरी या डकैतियां हों, इन सबमें बंगलादेशी घुसपैठिए शामिल हैं।इसी अगस्त महीने में दिल्ली और गुड़गांव में चोरी की कई घटनाएं हुईं और इस सन्दर्भ में जिन लोगों की गिरफ्तारी हुई है, उनमें अधिकांश बंगलादेशी हैं। यह बात अभियुक्तों ने खुद कबूली है। दिल्ली के मुस्लिम बहुल क्षेत्रों में सरकारी भूखण्डों पर कब्जा जमा कर रहने वाले इन घुसपैठियों ने आस-पड़ोस के मोहल्लों में लोगों का जीना दूभर कर दिया है।नई सीमापुरी में कागज बीनना हीघुसपैठियों का मुख्य कामचोरी और डकैती की बढ़ती घटनाओं के कारण लोग दिन में भी घर में ताले लगा कर कहीं बाहर जाने की हिम्मत नहीं जुटा पा रहे हैं। इस घुटन से निजात पाने के लिए जाफराबाद, सीलमपुर, शास्त्री पार्क, सीमापुरी जैसे मुस्लिमबहुल क्षेत्रों से हिन्दू औने-पौने दामों में अपनी जमीन-जायदाद बेचकर पलायन कर रहे हैं। नई सीमापुरी में पिछले 22 साल से दवाखाना चलाने वाली एक महिला चिकित्सक डा. कमला राय ने पाञ्चजन्य को बताया, “यहां के बदलते माहौल को देखकर हम जैसे लोगों को सोचना पड़ेगा कि अब यहां से कहां जाएं।” उल्लेखनीय है कि सीमापुरी दिल्ली और उ.प्र. की सीमा पर स्थित है। कुछ समय पहले यहां बड़ी संख्या में घुसपैठिए रहते थे। किन्तु अदालत की बार-बार फटकार के बाद पुलिस हरकत में आई और इन लोगों की धर-पकड़ शुरू की गई। अनेक पकड़े भी गए। हालांकि अभी भी बहुत बचे हैं, जिन्हें स्थानीय मुस्लिमों की शह प्राप्त है। पर अधिकांश दिल्ली की सीमा पार करके उ.प्र. में रहने लगे हैं। सीमा भी ऐसी कि सड़क के इस पार दिल्ली, तो उस पार यू.पी.। इसका फायदा ये घुसपैठिए खूब उठाते हैं। कोई भी वारदात करके सीमा पार कर जाते हैं। दिन में कूड़ा बीनना, रिक्शा चलाना, जेब काटना और शाम ढलते ही राहगीरों को लूटना, चोरी-डकैती करना इनका रोज का काम बन चुका है। स्थानीय हिन्दुओं का कहना है कि इनकी मदद एक वर्ग विशेष के लोग करते हैं। सरकारी जमीन पर झुग्गी किस प्रकार डाली जाए, रहने के लिए भले ही झुग्गी, किन्तु वहां कितनी जल्दी पक्की मस्जिद बनें, पुलिस से कैसे बचना है, रोजगार कहां मिलेगा, किसी को रिक्शा चलाना है तो रिक्शे की व्यवस्था कौन करेगा, मतदाता सूची में नाम कैसे चढ़ेगा, राशन कार्ड कैसे बनेगा-इन सबकी व्यवस्था एक गिरोह करता है। इस गिरोह को वोट बैंक के लालची सेकुलर नेताओं का वरदहस्त प्राप्त है। इन्हीं नेताओं के कारण घुसपैठियों का मनोबल इतना बढ़ा हुआ है कि ये पुलिस पर भी कई बार हमले कर चुके हैं। यमुना पुश्ते पर तो ऐसी घटनाएं होती ही रहती हैं। आहत पुलिस जब इन पर चोट करती है, उन्हें पकड़ती है तो सेकुलर नेता लाव-लश्कर के साथ थाने पहुंच जाते हैं और उन्हें छुड़ा लाते हैं। इन नेताओं का तर्क है कि ये बंगलादेशी नहीं, बल्कि पश्चिम बंगाल के मुसलमान हैं। इसलिए इन्हें घुसपैठियों के नाम पर पकड़ना मुसलमानों का दमन है। पश्चिम बंगाल के नाम पर पुलिस भी लाचार हो जाती है, क्योंकि पश्चिम बंगाल और बंगलादेश, दोनों जगहों के मुसलमान बंगला बोलते हैं। केवल उच्चारण में फर्क होता है, किन्तु उस फर्क को कोई बंगलाभाषी ही पकड़ सकता है। इस सम्बंध में अंग्रेजी दैनिक पायनियर के वरिष्ठ संवाददाता श्री उदयन नम्बूदिरी का कहना है कि पूरे देश में बंगलादेशी घुसपैठियों की पहचान के लिए बंगलाभाषी पुलिस अधिकारी की नियुक्ति हो।दिल्ली में बंगलादेशी बहुल इलाकेनई सीमापुरी, पुरानी सीमापुरी, बवाना कालोनी, मेट्रो विहार, शास्त्री पार्क, भलस्वा जे.जे. कालोनी, जहांगीरपुरी, आदर्श नगर (शाह आलम बांध), यमुना पुश्ता, जाकिर नगर, निजामुद्दीन, सुन्दर नगरी, दिलशाद गार्डन (कलन्दर कालोनी), नवजीवन कैम्प (कालका जी), मंगोलपुरी वाई ब्लाक और सीलमपुर।पुलिस तो पुलिस इन घुसपैठियों से रिक्शा चालक तक परेशान हैं। पुरानी सीमापुरी में 7-8 साल से रिक्शा चलाने वाला मैनपुरी (उ.प्र.) निवासी कपिल यादव कहता है, “सवारी बैठाने के बहाने ये लोग संगठित होकर हम जैसों से प्राय: रोज ही तू-तू मैं -मैं करते हैं। कभी बात जब अधिक बढ़ जाती है तो रात में रिक्शा ही चुरा लेते हैं।”विभिन्न वारदातों में बंगलादेशी महिलाओं की भी भूमिका रहती है। कई घटनाओं में इसकी पुष्टि भी हो चुकी है। गीता, सीता, बिमला, जानकी, जयन्ती आदि नामों से ये महिलाएं दिल्ली के घरों में घरेलू काम करती हैं। यह काम उन्हें अधिकांशत: गिरोह के लोग ही दिलाते हैं और यही लोग आने-जाने की व्यवस्था भी करते हैं। झाड़ू-पोंछा करने वाली इन महिलाओं को किस प्रकार दिल्ली के कोने-कोने में भेजा जाता है, इसका नजारा सुबह-सुबह नई सीमापुरी में देखने को मिलता है। यहां से प्रतिदिन सुबह 5 बजे से 7 बजे तक इन महिलाओं से ठसाठस भरी अनेक बसें चलती हैं। ये बसें पुरानी दिल्ली, दक्षिणी दिल्ली के अनेक स्थानों एवं रोहिणी और नोएडा तक जाती हैं। फिर शाम को इन महिलाओं को वापस भी लाती हैं। सूत्रों के अनुसार बंगलादेशी मुस्लिम महिलाओं को सबसे पहले असम में धुबरी जिले में स्थित शिविरों में रखा जाता है। वहां इन्हें हिन्दी बोलने का अभ्यास कराया जाता है और भारत के प्रमुख शहरों की थोड़ी-बहुत जानकारी दी जाती है। इसके बाद दिल्ली, गुड़गांव, नोएडा आदि जगहों पर सक्रिय दलालों से सम्पर्क करके उन्हें भेजा जाता है।कितने हैं घुसपैठिए?सरकार नहीं जानती!भारत में बंगलादेशी घुसपैठिए कितने हैं, इस सम्बंध में कई तरह की बातें सामने आती हैं। बिहार विधानसभा के पूर्व अध्यक्ष गुलाम सरवर जैसे नेता तो कहते थे कि भारत में एक भी बंगलादेशी घुसपैठिया नहीं है। 2003 के गैर सरकारी अनुमान के अनुसार लगभग 4 करोड़ घुसपैठिए भारत में थे, तो सरकार कहती थी कि यह संख्या लगभग 2 करोड़ है। कुछ दिन पहले संप्रग सरकार के गृह राज्यमंत्री श्रीप्रकाश जायसवाल ने संसद में लिखित रूप से बताया कि भारत में 2 करोड़ बंगलादेशी घुसपैठिए हैं। यह बयान आते ही सेकुलरों में खलबली मच गई। इन लोगों ने सरकार पर इतना दबाव डाला कि श्री जायसवाल को अपना वह बयान वापस लेना पड़ा। अब यह सरकार बंगलादेशी घुसपैठियों की संख्या बताने से भी कतराती है।22 जुलाई, 2005 को सांसद ललित सूरी ने राज्यसभा में बंगलादेशी घुसपैठियों की संख्या के बारे में एक सवाल पूछा था। जवाब में गृह राज्यमंत्री एस.रघुपति ने कहा, “बंगलादेश से आए घुसपैठियों की संख्या का वास्तविक अनुमान लगाना कठिन है, क्योंकि वे चोरी-छिपे आते हैं और रूप-रंग तथा भाषायी समानता के कारण स्थानीय जनता के बीच आसानी से घुल-मिल जाते हैं।” उनके अनुसार पिछले तीन वर्षों में दिल्ली से निकाले गए बंगलादेशी घुसपैठियों की संख्या इस प्रकार थी-वर्ष निकाले गए घुसपैठिए 2002 29 87 2003 57 60 2004 60 02 किन्तु पुलिस-प्रशासन मूक दर्शक बना हुआ है। जबकि आज से दो साल पहले ही दिल्ली उच्च न्यायालय ने सरकार को आदेश दिया था कि दिल्ली में प्रतिदिन 100 घुसपैठियों की पहचान कर उन्हें बंगलादेश की सीमा पर छोड़ा जाए। किन्तु इस आदेश का कभी भी सख्ती से पालन नहीं किया गया। इसके लिए अदालत ने कई बार सरकार को लताड़ भी लगाई। किन्तु सरकार ने इसमें कोई विशेष दिलचस्पी नहीं दिखाई है।NEWS

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