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स्व. नरसिंह राव को रा.स्व.संघ के सरसंघचालक श्री कुप्.सी.सुदर्शन की श्रद्धाञ्जलिकुशल नेता, विद्वान व्यक्तित्वरा.स्व.संघ के पूज्य सरसंघचालक श्री कुप्.सी. सुदर्शन ने स्व.नरसिंह राव के प्रति श्रद्धाञ्जलि स्वरूप जो वक्तव्य जारी किया, उसका अविकल पाठ यहां प्रस्तुत है।-सं.लगभग 40 वर्ष तक भारत की राजनीति में निष्ठावान कांग्रेसी के रूप में सक्रिय श्री पी.वी. नरसिंह राव नहीं रहे। बहुभाषा कोविद श्री राव का उत्तुंग व्यक्तित्व तो था ही, वे अत्यंत चतुर एवं चाणाक्ष भी थे। उनका बहुविद व्यक्तित्व राजनीति के सीमित दायरे के बाहर भी फैला था। वे एक श्रेष्ठ विचारक व बुद्धिमान साहित्यिक थे। तेलुगू में कविता लिखते थे, किन्तु नाट एवं अन्य ललित कलाओं के मर्मज्ञ भी थे।सन् 1940 में वंदेमातरम गाने के अपराध में उन्हें हैदराबाद रियासत से बहिष्कृत कर दिया गया। वे पुणे आए, वहां मराठी व हिन्दी पर भी उन्होंने प्रभुत्व स्थापित कर लिया। प्रतिमाह खर्च के लिए घर से 3 रुपए प्राप्त होते थे, जिसमें से 2 रुपए में मास भर का खर्च चलाते थे और 1 रुपया नाट शिरोमणि बालगंधर्व के नाटक देखने हेतु बचाकर रखते थे। ऐसे बहुप्रतिभा सम्पन्न पूर्व प्रधानमंत्री श्री पी.वी. नरसिंह राव के निधन के समाचार से हम सब को आघात पहुंचा है। पिछले कुछ समय से वे अस्वस्थ चल रहे थे, लेकिन सबको उम्मीद थी कि वे ठीक होकर जल्द ही फिर राष्ट्र की सेवा में रत होंगे। श्री राव के परिवार के प्रति हम अपनी गहरी संवेदना प्रकट करते हैं। श्री राव बहुमुखी प्रतिभावान व्यक्ति थे। महान गुणों और कौशल के वे धनी थे। राजनीतिज्ञ होने के साथ-साथ वे चिंतक, विद्वान, लेखक और एक श्रेष्ठ मनुष्य थे। कोलाहल और अस्थिरतापूर्ण समय में उन्होंने देश का जिस कुशलता के साथ नेतृत्व किया उसे देखते हुए उन्हें “भारतीय राजनीति का चाणक्य” कहा गया। वैचारिक मतभेदों के बावजूद संघ के कई नेताओं के उनके साथ अच्छे संबंध थे। तीव्र मतभेद होते हुए भी न तो संघ के नेताओं ने और न ही श्री राव ने कभी आपसी संबंधों में कटुता पैदा होने दी। आज भारतीय राजनीति में उनके कद और विद्वता के राजनीतिज्ञ बहुत कम हैं।श्री राव के राजनीतिक जीवन का और एक पहलू था, वह था एक तीर से अनेक शिकार करने की उनकी चाणक्य बुद्धि। कुछ समाचार पत्रों ने उन पर आरोप लगाया कि जब अयोध्या में तथाकथित बाबरी ढांचा ढहाया जा रहा था तब वे निष्क्रिय बने रहे। किन्तु यह निष्क्रियता अकारण नहीं थी। बाबरी ढांचे के विध्वंस की स्थिति को पैदा करने के पीछे उनके राजनीतिक गणित चाहे जो रहे हों, लेकिन मुस्लिम समाज तथा सेकुलरवादियों ने इस विध्वंस के लिए उन्हीं को दोषी ठहराया और कांग्रेस में अपनी स्थिति बचाए रखने के लिए उन्हें चार राज्यों में भाजपा सरकारों को अकारण ही बर्खास्त करना पड़ा तथा रा.स्व. संघ, विश्व हिन्दू परिषद् व बजरंग दल को प्रतिबंधित कर हिन्दू समाज के रोष को झेलना पड़ा। वे इतिहास में इस बात के लिए हमेशा स्मरण किए जाएंगे कि रामलला के विग्रह की पुन:प्रतिष्ठा एवं उनके अस्थायी मंदिर की स्थापना होने तक उन्होंने केन्द्रीय सुरक्षा बलों को उस परिसर में प्रवेश की अनुमति नहीं दी थी। भारतीय राजनीति पर उन्होंने अपनी अमिट छवि छोड़ी है। उन्हें हम सबकी ओर से सादर श्रद्धाञ्जलि अर्पित है और परमपिता परमेश्वर से प्रार्थना है कि दिवंगत आत्मा को अपने श्री चरणों में स्थान दें।NEWS
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