गुजरात दंगों पर "जस्टिस आन ट्रायल" की संगोष्ठी
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गुजरात दंगों पर "जस्टिस आन ट्रायल" की संगोष्ठी

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Feb 1, 2005, 12:00 am IST
in Archive
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दिंनाक: 01 Feb 2005 00:00:00

गुजरात दंगों में अदालतों की भूमिका कौन जांचेगा?मीडिया के अनुसार गोधरा कांड के बाद गुजरात में दो हजार लोगों की जान गयी है जबकि मुआवजे के लिए मात्र नौ सौ आवेदन आए हैं।संगोष्ठी में मंच पर हैं (बाएं से) सुश्री संध्या जैन, सरदार जोगिन्दर सिंह, न्यायमूर्ति (से.नि.)एस.एम.सोनी व न्यायमूर्ति (से.नि.)डी. एस. तेवतियागोधरा कांड के बाद गुजरात में हुए दंगों के दो हजार मामलों की समीक्षा करने के सर्वोच्च न्यायालय के आदेश का 22 हजार परिवारों और एक लाख लोगों पर सीधा असर पड़ेगा। गुजरात दंगों के बाद मात्र एक दिन के अपने दौरे में मानवाधिकार आयोग ने जो रपट सौंपी, उससे गुजरात सरकार और यहां की जनता की देश और विदेश मे भारी बदनामी हुई।उक्त विचार पंजाब और हरियाणा तथा कोलकाता उच्च न्यायालय के पूर्व मुख्य न्यायाधीश न्यायमूर्ति डी.एस. तेवतिया ने एक संगोष्ठी में व्यक्त किए। इसका आयोजन गत दिनों अमदाबाद में “जस्टिस आन ट्रायल” संस्था ने किया था। संगोष्ठी का विषय था सर्वोच्च न्यायालय के आदेश के असर तथा अदालत, पुलिस और प्रसार माध्यमों की भूमिका”। न्यायमूर्ति तेवतिया ने कहा कि भारतीय मानवाधिकार आयोग ने बेस्ट बेकरी मामले को वडोदरा की “फास्ट ट्रेक कोर्ट” को सौंपा, जिसके तुरन्त बाद ही उच्च न्यायालय की बजाय सर्वोच्च न्यायालय में अपील कर दी गई। अभी उस अपील पर सुनवाई शुरू भी नहीं हुई कि पुन: गुजरात उच्च न्यायालय में अपील कर दी गयी। दूसरी ओर, राजकीय दलों ने भी गुजरात सरकार और गुजरात पुलिस की भूमिका पर टिप्पणी शुरू कर दी। टी.वी. चैनलों ने दंगों का जिस प्रकार क्रिकेट मैच की तरह प्रसारण किया, उसका जनमानस पर गम्भीर असर पड़ा।न्यायमूर्ति तेवतिया ने दो हजार मामलों की समीक्षा के सम्बंध में प्रश्न किया कि क्या पुलिस अधिकारियों की समिति यह तय कर सकती है कि दंगों के मामलों की सुनवाई दोषयुक्त है? क्योंकि कोई व्यक्ति दोषी है या निर्दोष इसका निर्धारण अदालत ही कर सकती है।इस अवसर पर सी.बी.आई. के पूर्व निदेशक सरदार जोगिन्दर सिंह ने देश की न्याय प्रणाली तथा कानून और व्यवस्था की स्थिति पर गम्भीर चिन्ता व्यक्त करते हुए कहा कि देश में पुलिस की स्थिति अत्यन्त खराब है। आज देश में केवल 6.5 प्रतिशत मामलों में ही दोषियों को सजा हो पाती है, बाकी निर्दोष सिद्ध हो जाते हैं। उन्होंने कहा कि आज तीन करोड़ 62 लाख मामले अदालतों में लम्बित हैं। देश की जनसंख्या की तुलना में न्यायाधीशों की संख्या बहुत कम है।”द पायनियर” की वरिष्ठ स्तम्भकार सुश्री संध्या जैन ने कहा कि न्याय के नाम पर न्यायतंत्र अपनी मर्यादा के बाहर जा रहा है। आज देश में गैर-सरकारी संगठन कुकुरमुत्ते की तरह उग रहे हैं। उन्हें मीडिया का भी भरपूर सहयोग मिल रहा है। उन्होंने कहा कि मीडिया के अनुसार गोधरा कांड के बाद गुजरात में दो हजार लोगों की जान गयी है जबकि मुआवजे के लिए मात्र नौ सौ आवेदन आए हैं। मीडिया ने यह नहीं बताया कि मरे हुए दो हजार लोगों में से सभी अल्पसंख्यक ही थे या उनमें बहुसंख्यक भी शामिल थे।”जस्टिस आन ट्रायल” संस्था के अध्यक्ष और गुजरात उच्च न्यायालय के सेवानिवृत्त न्यायाधीश न्यायमूर्ति एस.एम. सोनी ने कहा कि सर्वोच्च न्यायालय द्वारा दो हजार मामलों की समीक्षा के आदेश के कारण गुजरात में साम्प्रदायिक एकता पर बहुत बुरा असर पड़ेगा।-प्रतिनिधि”जस्टिस आन ट्रायल” क्यों?गुजरात में गोधरा कांड के बाद की घटनाओं के संदर्भ में सर्वोच्च न्यायालय के कुछ आदेशों को लेकर न्यायपालिका के प्रति असंतोष का भाव बना है। गुजरात न्यायतंत्र के अधिकारी इस बात पर क्षोभ अनुभव कर रहे हैं कि अन्य राज्यों में उनका चित्र, गड़बड़ी करने वाला अथवा प्रभाव में कार्य करने वाला बन रहा है। गुजरात का प्रत्येक नागरिक गुजरात के न्यायतंत्र की स्वतंत्र निष्ठा और ईमानदारी के प्रति गौरव अनुभव करता है। इसके विपरीत अन्य राज्यों का बुद्धिजीवी वर्ग चाहता है कि गुजरात न्यायतंत्र को कुछ खास प्रकार के निर्णय ही करने चाहिए। सर्वोच्च न्यायालय ने बेस्ट बेकरी मामले को राज्य से बाहर महाराष्ट्र में फिर से चलाने का आदेश दिया है। मामले के रिकार्ड को न्यायालय में मंगाये बिना मात्र अभियोजन पक्ष के अधिवक्ता की प्रार्थना पर ऐसा आदेश दिया गया है जो विधि प्रक्रिया से सुसंगत नहीं हैं। इसी प्रकार के मामलों पर नजर डालने हेतु “जस्टिस आन ट्रायल” संस्था का गठन किया गया है।NEWS

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