गहरे पानी पैठ

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दिंनाक: 01 Feb 2005 00:00:00

लाल राज में पुलिस पर शिकंजापश्चिम बंगाल में पुलिस स्वतंत्र रूप से काम नहीं कर पा रही है। उसे राजनेताओं के दिशा-निर्देशों पर ही काम करना पड़ता है। यदि वह स्वतंत्र रूप से कार्य करे तो ऐसे अनेक नेता हैं जो जेल में दिखें। इसी कारण अपराधी भी स्वतंत्र घूम रहे हैं और निर्दोष व्यक्ति अत्याचार के शिकार हो रहे हैं। सत्तारूढ़ वाममोर्चा पुलिस को अपने स्वार्थ के लिए प्रयोग करता है। यह बात प. बंगाल पुलिस संघ के महामंत्री विमल विश्वास ने गत दिनों पुरुलिया में एक पुलिस सम्मेलन में कही। यह सहज ही अनुमान लगाया जा सकता है कि जब पुलिस का यह हाल है तो जनता का क्या होगा। श्री विश्वास ने स्थिति को और स्पष्ट किया कि पुलिस अपराधी को पकड़ती है और राज्य की माकपा सरकार उसे छुड़ाती है। अपराधी के बारे में पुलिस को जानकारी होती है, लेकिन सरकार उसमें अपनी मनमानी करती है।राष्ट्रीय अपराध आंकड़ों के अनुसार प. बंगाल पुलिस ने जितने अपराधी गिरफ्तार किए हैं उनमें से 67 प्रतिशत पर कोई आरोप पत्र तक नहीं दाखिल किया जा सका। आंकड़ों में बताया गया कि 2001 में राज्य पुलिस ने 1 लाख 4 हजार 129 मामले पंजीकृत किए, उनमें से केवल 34 हजार 559 मामलों पर ही कार्रवाई की गई। शेष 23 हजार 678 पर कोई कार्रवाई नहीं की जा सकी। थानों में पंजीकृत 42.9 प्रतिशत अर्थात् 44 हजार 695 मामलों में पुलिस जांच कर ही नहीं सकी।प. बंगाल में ऐसी विकट परिस्थिति है कि एक ओर पुलिस प्रशासन अपनी दयनीय स्थिति का चित्रण कर रहा है, वहीं दूसरी ओर राज्य के मुख्यमंत्री एवं गृहमंत्री बुद्धदेव भट्टाचार्य राज्य की शान्तिपूर्ण स्थिति का बखान करते नहीं अघाते? सच्चाई यह है कि अन्य राज्यों की अपेक्षा प. बंगाल में जांच व गिरफ्तारियां अधिक होती हैं। लेकिन यहां पुलिस चूंकि एक राजनीतिक पार्टी के शिकंजे में है अत: “पदोन्नति” व “स्थानान्तरण” के बहाने इसे काबू में रखा जाता है।27 वर्ष के कम्युनिस्ट शासन में पुलिस व्यवस्था इतनी चरमरा गई है कि उसके सुधरने में काफी लंबा समय लग सकता है।हिमाचल की कसकहिमाचल प्रदेश की वीरभद्र सरकार केन्द्र की कांग्रेसनीत सरकार से अब तक कुछ भी हासिल करने में कामयाब नहीं हो सकी है। हालांकि मुख्यमंत्री वीरभद्र सिंह किसी आर्थिक पैकेज की आस में सप्ताह में एक चक्कर दिल्ली का लगाते हैं, पर खाली हाथ लौट जाते हैं। उन्होंने पिछले दिनों संयुक्त प्रगतिशील गठबंधन की अध्यक्ष श्रीमती सोनिया गांधी को हिमाचल बुलाकर शिमला में एक बड़ी रैली भी कराई थी और उन्हें पूरा भरोसा था कि शायद इस मौके पर किसी पैकेज की वे घोषणा करेंगी, लेकिन उनकी चुप्पी हिमाचल के कांग्रेसियों के गले नहीं उतरी। ऐसे में हिमाचलवासियों को पूर्व प्रधानमंत्री श्री अटल बिहारी वाजपेयी की याद आना स्वाभाविक ही है क्योंकि वे जब भी हिमाचल जाते थे, किसी न किसी लाभकारी योजना की घोषणा की जाती थी। लेकिन अब तो दिल्ली और हिमाचल दोनों जगह कांग्रेस है, परन्तु मिल कुछ नहीं रहा है।उधर हिमाचल सरकार ने केन्द्र के साथ एक ऐसे समझौते पर हस्ताक्षर किए हैं जिसके कारण हर वर्ष दो हजार सरकारी नौकरियां और तीन साल से अधिक समय से खाली पदों को निरस्त कर दिया जाएगा। इसकी जानकारी मिलने के बाद राज्य के बेरोजगार युवकों में हताशा उपजती जा रही है। सरकारी नौकरियों में भी कर्मचारियों के वेतन संबंधी कुछ निर्णय हिमाचल के सरकारी कर्मचारियों में गुस्सा पैदा कर रहे हैं। जिन सरकारी कर्मचारियों और बेरोजगार युवाओं के वोटों के दम पर कांग्रेस ने वहां सत्ता प्राप्त की थी अब उनका सामना करने से कतरा रही है।NEWS

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