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चाय वाले से लेकर राजनेता तक रंगदारी देने को मजबूर-पटना से कल्याणीपप्पू यादव राबड़ी देवी सूरजभानपटना और उसके आस-पासस्थित कुछ कुख्यात रंगदारबिन्दु सिंहसुल्तान मियांदुर्गेश शर्मागुड्डू शर्माधन्नू साहशिव गोपराजू गोपपिंकू चौधरीअजय वर्मापिंटू सिंहचांद मियांरिंटू सिंहअपहरण, हत्या, रंगदारी, डकैती जैसी घटनाएं बिहार के लिए नासूर बन चुकी हैं पर राज्य की राजद सरकार हर घटना के पीछे यह कहती है कि विपक्षी नेता सरकार को बदनाम करने के लिए ये सारी घटनाएं करा रहे हैं। यानी सरकार अपनी असफलताओं के लिए भी विरोधी नेताओं को दोषी ठहरा रही है। जबकि राज्य की इस स्थिति के लिए सरकार की नीतियां ही जिम्मेदार हैं। यह केवल विरोधी ही नहीं, राजद के कुछ नेता भी दबी जुबान से स्वीकार कर रहे हैं। स्थिति भयावह है। सिर्फ राजधानी पटना की बात करें तो चाय वाले से लेकर राजनेता तक रंगदारी की मार से त्रस्त हैं। एक भाजपा विधायक ने यह कहकर सनसनी फैला दी है कि उनसे रंगदारी मांगी गई और न देने पर जान से मारने की धमकी दी। राज्य की कानून-व्यवस्था को लेकर पटना उच्च न्यायालय भी कई बार तीखी टिप्पणी कर चुका है। पर शायद, राज्य सरकार यह तय कर चुकी है, जिसे जो कहना है कहे, जिसे जो करना है करे, पर हम तो अपनी इच्छा से ही काम करेंगे। इस कारण बिहार का जो नुकसान हो रहा है, उसकी भरपाई शायद ही हो पाएगी।8 दिसम्बर को पटना उच्च न्यायालय के आदेश पर पटना की बेउर जेल पर छापा पड़ा। वहां बंद राजद सांसद पप्पू यादव के पास से मोबाइल फोन और अन्य आपत्तिजनक सामग्री मिली। जेल में बंद कुख्यात अपराधियों और बाहुबली नेताओं को हर तरह की सुविधाएं प्राप्त हैं। परन्तु सरकार मानने को तैयार नहीं थी; छापामारी से सब कुछ सामने आ गया। स्पष्ट है कि बिहार की जेलें बाहुबली नेताओं और कुख्यात अपराधियों के लिए “जेल” न होकर संरक्षणस्थली बनी हुई हैं, और रंगदारी की घटनाओं का संचालन यहीं से होता है।रंगदारी ने बिहार में त्राहिमाम की स्थिति पैदा कर दी है। टी.वी.एस. मोटर्स कम्पनी लि. के बिहार स्थित कार्यालय के कर्मचारियों ने रंगदारी से तंग आकर प्रबंधन को यह लिखित सन्देश भेजा कि अब बिहार में काम करना संभव नहीं है और यह कार्यालय रांची स्थानान्तिरत हो गया। जबकि बिहार सरकार को इस कंपनी से प्रतिमाह 5 करोड़ रुपए के आस-पास “कर” मिलता था। कम्पनी के क्षेत्रीय प्रबंधक यू.बी. पाण्डेय कहते हैं, “बिहार में हमसे प्रत्येक रैली, रैला के नाम पर 50 हजार से 5 लाख तक का चंदा मांगा जाता है। रंगदारों को जब पैसे लेने होते हैं, वे दफ्तर पहुंच जाते हैं और पुलिस से कोई संरक्षण भी नहीं होता है। कई बार तो पुलिस भी सलाह देती है, ले-देकर सुलझा लीजिए फिर हम लोग क्या कर सकते हैं? ऊपर तक इनकी पहुंच है।”टी.वी. एस मोटर्स कम्पनी के अलावा लगभग एक दर्जन ऐसी कम्पनियां हैं, जो पिछले एक-डेढ़ साल में बिहार से पलायन कर चुकी हैं। अनेक ऐसे व्यापारी/व्यवसायी हैं जो रंगदारी और गुंडागर्दी की मार से अपने व्यवसाय को समेटने और संपत्ति को रंगदारों के हाथ औने-पौने दाम पर बेचने के लिए विवश हुए हैं। दो-तीन सालों में तो ऐसे मामलों की बाढ़ आ गई है।अब रंगदारों ने बड़े व्यापारियों, कम्पनियों के अलावा छोटे-छोटे व्यवसायियों को भी चूसना शुरू कर दिया है। रंगदारों की मार से मर्माहत व्यापारियों की लम्बी सूची है। पीड़ितों की सूची में डाक्टर, इंजीनियर और व्यवसायी प्रमुख रूप से हैं। पिछले दिनों पटना के डा. धर्मवीर सिंह, डा. राजीव रंजन, डा. प्रकाश सिंह, प्रो. एस.के. सिन्हा से 5-5 लाख रुपए की मांग की गई। प्रो. सिन्हा द्वारा पैसा न देने पर उनके घर पर बमबारी की गई। प्रतिदिन किसी न किसी वरिष्ठ शिक्षाविद् या व्यवसायी के यहां ताबड़तोड़ हमले होते हैं।आज पूरे बिहार में, विशेषकर पटना में, रंगदारों का जाल फैल गया है। छोटे व्यवसायी की बात तो छोड़िए रिलाएंस और टाटा जैसी बड़ी कम्पनियां भी विकास के लिए काम करने से कतरा रही हैं। केन्द्र सरकार के समर्थन से बिहार में चल रही 1200 करोड़ रुपए की ग्रामीण विद्युत परियोजना, रंगदारी की स्थिति स्पष्ट करने के लिए एक उदाहरण है। यह पूरा काम पावर ग्रिड कारपोरेशन को दिया गया है।पावर ग्रिड कारपोरेशन ने परियोजनाओं को पूरा करने का दायित्व बहुराष्ट्रीय कम्पनी एल्स्थम पावर, टाटा पावर, आंध्र प्रदेश की विजय इलेक्ट्रिकल्स और श्यामा इलेक्ट्रिकल्स जैसी कम्पनियों को सौंपा है। कम्पनियों ने जब काम शुरू किया तो रंगदारों ने कम्पनियों से भारी रकम वसूलने का अभियान शुरू किया। रंगदारी और ठेकेदारी की मांग करने वाले कुछ कुख्यात अपराधियों के अलावा राजद सांसद पप्पू यादव, लोजपा सांसद सूरजभान सिंह, विधायक मुन्ना शुक्ला जैसे बाहुबली नेताओं का नाम सामने आया। इसके बाद इन कम्पनियों ने काम करने में अपनी असमर्थता दिखाई और अंतत: प्रधानमंत्री डा. मनमोहन सिंह को हस्तक्षेप करना पड़ा। निश्चय ही रंगदारी की मार बिहार में चौतरफा है और एक व्यवसायी, डाक्टर, इंजीनियर से लेकर बड़ी कम्पनियों की जान भी सांसत में है। बिहार के विकास के लिए रंगदारी नासूर बन गया है, पर बिहार सरकार का क्या? जब रोम जल रहा था तो नीरो बांसुरी बजा रहा था।NEWS
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