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पाठकीय

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Jan 5, 2005, 12:00 am IST
in Archive
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दिंनाक: 05 Jan 2005 00:00:00

अंक-संदर्भ, 3 अप्रैल, 2005पञ्चांगसंवत् 2062 वि. वार ई. सन् 2005वैशाख कृष्ण 8 रवि 1 मई,, ,, 9 सोम 2 मई,, ,, 10 मंगल 3 मई,, ,, 11 बुध 4 मई(श्री वल्लभाचार्य जयन्ती),, ,, 12 गुरु 5 मई(प्रदोष व्रत),, ,, 13 शुक्र 6 मई,, ,, 14 शनि 7 मईभारत में ये भारत-विरोधीआवरण कथा के अन्तर्गत श्री देवेन्द्र स्वरूप का लेख “भारत की बदनामी इनकी खुशी” पढ़ा। भारत के अंदर मौजूद अभारतीय और इनको संरक्षण देने वाले तथाकथित सेकुलर दल निश्चित ही विदेशों में भारत-माता को बदनाम करके सिर्फ खुश ही नहीं, अपनी विजय भी मनाते होंगे। जिस प्रकार से ये लोग मोदी वीसा प्रसंग पर अपनी खुशी प्रकट कर रहे हैं, वह निंदनीय है। भारत को जितना खतरा विदेशी ताकतों से नहीं है उससे अधिक भारत के अंदर रह रहे इन तथाकथित सेकुलरों से है। इसलिए इन राष्ट्रविरोधी ताकतों को सही राह पर लाना ही होगा।-प्रभाकर पाण्डेय4 महाराजा भवन, कला मंदिर रोड, रीवा (म.प्र.)इस बार मंथन अच्छा लगा। श्री नरेन्द्र मोदी को अमरीका द्वारा वीसा न देने का निर्णय भारत-विरोधी मुहिम के रूप में जाना जाएगा। इस निर्णय का पूरे विश्व पर राजनीतिक प्रभाव भी पड़ेगा।-ध्रुव देवांगनजूना, बिलासपुर (छत्तीसगढ़)अमरीकी राजदूत के नाम एक खुला पत्रमहोदय,कुछ वर्ष पहले अमरीका द्वारा अफगानिस्तान पर किए गए हमले के विरुद्ध अनेक भारतीय मुस्लिम उलेमाओं ने अमरीकी हमले को नाजायज बताया था। इतना ही नहीं, इन उलेमाओं ने लिखित फतवा भी जारी किया था कि अमरीकी कम्पनियों द्वारा बनाई कोई भी वस्तु न खरीदें। इस फतवे के कारण भारत के कई हिस्सों में साम्प्रदायिक तनाव बढ़ा था और भारी मात्रा में सरकारी एवं गैरसरकारी सम्पत्ति की हानि हुई थी। लिखित फतवा होने के बावजूद उन उलेमाओं को दोषी नहीं ठहराया गया और वे उलेमा बाद में अमरीका भी गए। जबकि श्री नरेन्द्र मोदी पर लगाए गए आरोप कहीं सिद्ध नहीं हुए हैं। फिर किस आधार पर श्री मोदी को वीसा नहीं दिया गया?-राशिद अंसारी कासमीपठानपुरा, रहमान कालोनी, देवबन्द,सहारनपुर (उ.प्र.)रामनवमी पहले कैसे मनी?”ब्रिटेन की संसद ने मनाई रामनवमी” शीर्षक से छपे समाचार में लिखा गया है कि 15 मार्च, 2005 को ब्रिटिश संसद में रामनवमी मनाई गई। किन्तु इस वर्ष रामनवमी तो अभी आई ही नहीं है। इसी अंक में तिथि पत्रक के साथ छपा है कि रामनवमी 18 अप्रैल को है। तो फिर रामनवमी पहले ही कैसे मना ली गई? यदि 15 मार्च की तिथि सही है तो इस सम्बंध में स्पष्टीकरण दें।-परमानन्द गर्गसी-388, विकासपुरी (नई दिल्ली)यह सही है कि रामनवमी 18 अप्रैल को ही थी, परन्तु ब्रिटेन के सांसद चूंकि उस दौरान विधायी कार्यों में बहुत व्यस्त रहने वाले थे इसी वजह से यह त्योहार उन्होंने सुविधा देखते हुए 15 मार्च को मनाया था। -सं.घाटी की बसचर्चा सत्र के अन्तर्गत श्री बलराज मधोक के आलेख “खतरनाक बस” ने झकझोर कर रख दिया। वास्तव में देखा जाए तो पाकिस्तान ने सन् 1947 से लेकर अब तक भारत के एक भी शान्ति प्रस्ताव को गंभीरता से नहीं लिया है। इसलिए इस बस सेवा से भी शान्ति की कोई उम्मीद नहीं की जा सकती है। उल्टे इस बस सेवा से होगा यह कि पूरी कश्मीर घाटी पाकिस्तान के साथ सीधी जुड़ जाएगी और फिर घाटी में आतंकवादी बेरोक-टोक आने लगेंगे, ऐसा खतरा है। भारत सरकार इस बस सेवा के प्रति जितनी गंभीर है, उतनी विस्थापित कश्मीरी हिन्दुओं के लिए होती तो शायद अपनी जन्मभूमि में वापस लौट सकते।-दिलीप शर्मा114/2205, समतानगर, कांदिवली (पूर्व)मुम्बई (महाराष्ट्र)मुजफ्फराबाद-श्रीनगर बस सेवा में बिना वीसा यात्रा करने की अनुमति देना खतरे से खाली नहीं है, क्योंकि अभी हाल ही में कोलकाता और मोहाली क्रिकेट टेस्ट मैचों के लिए वीसा लेकर आए कितने ही पाकिस्तानी चुपके से यहां-वहां निकल गए और शायद वे अभी तक भारत में हैं। तो फिर बिना वीसा का उन्हें यहां आने देना कहां की बुद्धिमानी है?-धनसिंह धनगरशुजालपुर मण्डी (मध्य प्रदेश)अंक-संदर्भ , 27 मार्च, 2005वीसा का मसलाकुछ अपवादों को छोड़कर, मार्च 2005, (दूसरे पखवाड़े) के सभी समाचार पत्र गुजरात के मुख्यमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी को अमरीका द्वारा वीसा देने से इनकार करने पर अमरीका की आलोचनाओं से भरे पड़े थे। अपवाद था केवल कम्युनिस्टों और मुस्लिमों द्वारा संचालित या सम्पादित मीडिया। अमरीकी कार्रवाई से जहां सारा हिन्दू समाज आहत हुआ, वहीं कम्युनिस्ट और अधिकांश मुस्लिम समुदाय या तो उल्लासमय था या सामाजिक प्रतिक्रिया देखकर चुप था। इसका कारण भी है। गुजरात दंगों के सन्दर्भ में श्री नरेन्द्र मोदी के विरुद्ध दुनियाभर में बेबुनियाद खबरें छपी थीं। यहां तक कि अमरीका के विदेश विभाग की सन् 2003 और 2004 की वार्षिक रपटों में भी उनकी झलक दिखाई दी। किन्तु भारत सरकार की ओर से कभी इनका प्रतिवाद नहीं हुआ। इसलिए अमरीका को दोष देना अपने आप को धोखा देना है। अमरीका ने तो भारत और भारत सरकार को उनका अपना ही चेहरा दिखाया है।-रामगोपालए-2 बी/94ए, एकता अपार्टमेन्ट्स,पश्चिम विहार (दिल्ली)यह स्पष्ट है कि अमरीका ने श्री नरेन्द्र मोदी को वीसा न देने का निर्णय भारत के मानवाधिकार आयोग की रपट के आधार पर ही किया है। ऐसे में भारत सरकार को पहले अपने मानवाधिकार आयोग से ही स्पष्टीकरण मांगना चाहिए था। किन्तु ऐसा न करते हुए प्रधानमंत्री डा. मनमोहन सिंह ने सीधे अमरीका के निर्णय पर आपत्ति व्यक्त की। अमरीका के सैन्य आक्रमण से अफगानिस्तान में जितना नरसंहार हुआ, उसकी तुलना में गोधरा काण्ड की प्रतिक्रिया में त्वरित प्रशासनिक कार्रवाई से होने वाली क्षति नगण्य सी है। मानवाधिकार आयोग और तथाकथित सेकुलर पत्रकार अमरीका की इस कार्रवाई पर चुप क्यों रहते हैं?-रमेश कुमार शर्मा6/134 मुक्ता प्रसाद नगर, बीकानेर (राजस्थान)गुजरात के मुख्यमंत्री को अमरीका द्वारा वीसा न दिए जाने से देश की प्रतिष्ठा को गहरा धक्का लगा है। गुजरात दंगों को लेकर गठित आयोग की रपट अभी आयी नहीं है। तो फिर सवाल पैदा होता है कि किन राष्ट्रविरोधी संगठनों ने भारत की प्रतिष्ठा को धूमिल करने के लिए अमरीकी कांग्रेस के सदस्यों को गलत रपट भेजकर दिग्भ्रमित किया है? हमें अमरीका द्वारा लिए गए फैसले का विरोध करने के साथ-साथ सम्पूर्ण भारत में फैले राष्ट्रविरोधी संगठनों पर पैनी नजर रखनी चाहिए।-राजकुमार धीमानमदीनपुर, मुजफ्फरनगर (उ.प्र.)अमरीका ने श्री नरेन्द्र मोदी का नहीं अपितु सम्पूर्ण भारत का खुलेआम अपमान किया है। पहले श्री जार्ज फर्नांडीस के साथ अमरीका ने सुरक्षा जांच के नाम पर बदसलूकी की और अब नरेन्द्र मोदी प्रकरण के बाद ऑल इण्डिया पर्सनल लॉ बोर्ड के उपाध्यक्ष को भी देश में न घुसने देना अमरीका की मनमानी को दर्शाता है। अमरीका को कोई हक नहीं कि वह भारत के अन्दरूनी मामलों में हस्तक्षेप कर अपनी मनमानी हम पर थोपे। अमरीका को सार्वजनिक रूप से माफी मांगनी चाहिए।-हेमन्त सिंह2/28 डी.एम. कालोनी, बुलन्दशहर (उ.प्र.)अमरीका अपने गिरेबां में झांकेनरेन्द्र मोदी को मोहरा बना कर भारत में मजहबी ध्रुवीकरण करने की अमरीकी नीति उजागर हो रही है। जहां तक मानवाधिकारों की रक्षा करने की बात है, तो अमरीका मानवाधिकारों का नाम तक लेने का हक नहीं रखता। अफगानिस्तान और ईरान में अमरीका ने “मानवाधिकारों” की जो “रक्षा” की, वह सभी जानते हैं। पाकिस्तान के इशारे पर जम्मू-कश्मीर में चलाए जा रहे आतंकवाद ने हजारों लोगों की जान ली और लाखों लोग विस्थापित हुए। वहां अल्पसंख्यक हिन्दुओं की धार्मिक स्वतंत्रता का क्या हनन नहीं हुआ? किन्तु आतंकवाद समर्थक पाकिस्तान की सरकार को अमरीका रेवड़ियां बांट रहा है। क्या मानवाधिकारवादियों और बुश प्रशासन को बंगलादेश में हिन्दुओं और बौद्धों पर हो रहे अत्याचार और बलात्कार दिखाई नहीं देते? क्या हिन्दू मानवाधिकारों की परिधि में नहीं आते? नरेन्द्र मोदी दोषी हैं, यह निर्णय अभी तक न तो किसी न्यायालय का है और न किसी सरकार का। उन्हें दोषी सिद्ध या असिद्ध करने का काम भारत की व्यवस्था का है न कि स्वार्थी बुश प्रशासन का।भारत की आबादी सौ करोड़ से भी अधिक है और अमरीका की आबादी लगभग 30 करोड़ है। किन्तु अमरीका में भारत से अधिक आपराधिक घटनाएं होती हैं। लगभग 60 लाख की आबादी वाले अमरीकी शहर वाशिंगटन डी.सी. में औसतन 2000 हत्याएं प्रतिवर्ष होती हैं। 5 करोड़ से अधिक आबादी वाले गुजरात प्रदेश में किसी भी वर्ष में हुई हत्याओं की संख्या से यह संख्या कहीं अधिक है। 80 लाख की आबादी वाले न्यूयार्क शहर में या अन्य शहरों में, जैसे लास ऐंजिल्स (आबादी 40 लाख) और शिकागो (आबादी 30 लाख) में 500 से भी अधिक हत्याएं प्रतिवर्ष होती हैं, जबकि 5 करोड़ से भी अधिक आबादी वाले पूरे गुजरात में हत्याओं का वार्षिक दर 1100 है। केवल न्यूयार्क में प्रतिवर्ष लगभग 1500 बलात्कार होते हैं, जबकि इस दृष्टि से पूरे गुजरात की वार्षिक दर 200 है। गुजरात के मुख्यमंत्री नरेन्द्र मोदी को मानवाधिकार का पाठ पढ़ाने वाले अमरीकी प्रशासन को पहले अपने गिरेबां में झांकना चाहिए।-डा. बलराम मिश्रइन्द्रप्रस्थ विश्व संवाद केन्द्रआर्य समाज रोड, करोलबाग (नई दिल्ली)बेनकाब हो रहे हैं ऊंचे लोगप्रदीप सरदाना द्वारा की गई फिल्म “पेज थ्री” की समीक्षा पढ़ी। फिल्म “पेज थ्री” में जिन काले कारनामों को उद्घाटित किया गया है, वे घटनाएं सिनेमा जगत और हमारे तथाकथित उच्च समाज में घटती रहती हैं। प्रसार माध्यमों के अधिक चौकस होने का ही नतीजा है कि ऐसी घटनाएं आज सबके सामने आ रही हैं। शक्ति कपूर की खलनायकी उजागर होने के बाद और भी अन्य घटनाएं सामने आईं मगर अभिव्यक्ति स्वातंत्र्य और खुलेपन का आवरण उन पर डाला गया। आज समाज को स्वस्थ परम्पराओं की आवश्यकता है, न कि पश्चिमी खुलेपन और अश्लीलता की।-डा. ह.दा. कांबलेचंद्रमणि नगर, नागपुर (महाराष्ट्र)सूक्ष्मिकाहफ्ताशहर में तबादला होते ही थानेदार साहबअपना निशाना साधने लगेतत्वों से हफ्ता बंधवाने के लिएहवा बांधने लगे-मिश्रीलाल जायसवालसुभाष चौक, कटनी (म.प्र.)NEWS

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