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चमक-दमक भरे समाज के सच को उघाड़ने वाली पत्रकार माधवी की भूमिका में कोंकणा सेन शर्माऊंचे लोगों के कालेपेज-थ्रीऊंचे लोगों के कालेकामशक्ति कपूर ने जो कहावह “पेज-थ्री”” ने पहले ही दिखा दिया था-प्रदीप सरदानाहफ्तेभर तक अपनी घटिया हरकत के कारण टीवी चैनलों और अखबारों की सुर्खियों में छाए रहने वाले शक्ति कपूर ने दिखा दिया कि पर्दे के कुछ चरित्र असल जिंदगी में भी कितने खलनायक किस्म के होते हैं। देशभर में यह चर्चा चली कि हीरोइन बनने की लालसा पाले छोटे शहरों की लड़कियां “काÏस्टग काउच” की आड़ में किस तरह शक्ति सरीखे इनसानों की हैवानियत से दो-चार होती हैं। मधुर भण्डारकर की नई फिल्म “पेज थ्री” भी “हाई सोसायटी” के इसी तरह के सच उधाड़ती है।”पेज-थ्री”अखबार का वह रंगीन पन्ना है जिसमें अमीर और नामी-गिरामी लोगों के बारे में छपता है। क्रिकेटर-अभिनेता, उद्योगपति, राजनेता और अखबार मालिक, सब इसमें छपते हैं। पूरा अखबार कोई पढ़े या न पढ़े, मगर “पेज-थ्री” पढ़ने का चस्का सबको रहता है। “पेज-थ्री” ने दिल्ली और मुम्बई जैसे महानगरों के आधुनिक समाज के चेहरे से नकाब हटाने की खूबसूरत कोशिश की है। महानगरों में हर रात समाज के एक विशेष वर्ग द्वारा किसी पंचतारा होटल में पार्टी का आयोजन होता है, जिसमें शहर की जानी-मानी हस्तियां शामिल होती हैं। अंग्रेजी के अखबार अपने तीसरे पेज पर ऐसी पार्टियों के सचित्र समाचार बढ़-चढ़कर प्रकाशित करते हैं। निर्देशक भंडारकर ने इन्हीं दावतों के सच और इसमें शामिल होने वाले बहुत से लोगों की असली तस्वीर एक संवाददाता माधवी शर्मा के माध्यम से दिखाई है।भंडारकर इस फिल्म से पहले फिल्म “चांदनी बार” से चर्चा में आए थे, जिसमें “बियर बार” में काम करने वाली लड़कियों की व्यथा-कथा थी। मगर चांदनी बार जैसी सफलता उन्हें अपनी अगली फिल्मों “आन” और “सत्ता” में कतई नहीं मिली। लेकिन “पेज-थ्री” से मधुर ने साबित कर दिया कि वह एक अच्छे निर्देशक हैं।हालांकि एक माडल-अभिनेत्री ने मधुर भंडारकर को इस फिल्म के निर्माण से पहले अदालत में घसीट लिया था। अभिनेत्री का आरोप था कि भंडारकर ने फिल्मों में काम देने के नाम पर उसका यौन शोषण किया। भंडारकर इन आरोपों के कारण गिरफ्तार भी हुए मगर बाद में जमानत पर रिहा हो गए। लेकिन यह मामला अभी खत्म नहीं हुआ है। अपनी इस फिल्म में उन्होंने चकाचौंध की दुनिया के साथ मीडिया की तो पोल खोली ही है, साथ ही उद्योगपति समाज सेवी, राजनेता और पुलिस को भी नहीं बख्शा है। यूं यह फिल्म महानगरों के उन्हीं लोगों को दिलचस्प लगेगी जो इस तरह की दावतों में शामिल होते हैं या उनके बारे में अंग्रेजी अखबारों में पढ़ते हैं। आम आदमी के लिए यह फिल्म समझ से लगभग बाहर है। फिल्म में माधवी एक सहृदय और मेहनती “रिपोर्टर” है। पेज-थ्री की “रिपोर्टिंग” करते हुए उसके फिल्म वालों और समाज के अन्य कई महत्वपूर्ण व्यक्तियों से अच्छे सम्बन्ध बन गए हैं। विमान परिचारिका पर्ल और फिल्मों में भाग्य आजमाने आई गायत्री उसकी अच्छी दोस्त हैं और एक ही कमरे में रहती हैं। एक दिन जब वह उद्योगपति, समाजसेवी श्रीमती थापर की आत्महत्या के बाद उनके घर पहुंचती है तो हैरान रह जाती है कि शोक व्यक्त करने आए लोगों को असल में श्रीमती की आत्महत्या का कोई दु:ख नहीं था। उनमें से कोई मीडिया में “कवरेज” के लिए आया है तो कोई सफेद साड़ी के साथ कैसे गहने अच्छे लगेंगे, इस उधेड़बुन में है तो कोई इस फिराक में कि श्रीमती थापर की आत्महत्या के बाद उनके पति दूसरी शादी करेंगे या नहीं। शोक के समय भी ज्यादातर लोग काला चश्मा पहनकर क्यों आते हैं, इस पर भी अच्छा कटाक्ष किया गया है।जब माधवी इस कड़वे सच को शब्दों में झलकाना चाहती है तो उसका संपादक इसके लिए मना कर देता है। इसी प्रकार जब उसे पता लगता है कि उसकी कमरे की साथी गायत्री उसके उस फिल्म अभिनेता मित्र के कारण गर्भवती हो गई है, जिसे वह अच्छा इंसान समझती थी और जो अपने साक्षात्कार में अपने जीवन साथी के प्रति वफादार रहने का संदेश देता था, तो वह विचलित हो जाती है। वह अपने संपादक को बताए बिना उस फिल्म अभिनेता की काली करतूत छाप देती है। इस पर संपादक उसे फिल्म अभिनेता से माफी मांगने को कहता है। माधवी इस सबसे तंग आकर “क्राइम रिपोर्टर” की जिम्मेदारी ले लेती है। लेकिन जब वह छोटे-छोटे बच्चों के व्यापारी और उनका यौन शोषण करने वालों के समाचार और चित्र एकत्र करती है तो उसके उन सबूतों को संपादक अखबार के मालिक को देता है और माधवी को नौकरी से निकाल देता है, क्योंकि वह सब उसी उद्योगपति थापर के खिलाफ था जो उनके अखबार को सबसे ज्यादा विज्ञापन देता था। बाद में माधवी एक दूसरे अंग्रेजी अखबार में नौकरी पाने में कामयाब हो जाती है, जहां उसे फिर से “पेज-थ्री” की जिम्मेदारी मिल जाती है। मगर इस बार वह सभी चर्चित चेहरों की सच्चाई जान चुकी थी। सभी उजले दिखाई देने वाले चेहरों के पीछे के काले धब्बे अब उसे साफ दिखाई दे रहे थे। फिल्म में माधवी की भूमिका अभिनेत्री कोंकणा सेन शर्मा ने निभाई है, जो अपनी भूमिका में पूरी तरह जमी हैं। पर्ल की भूमिका में संध्या मृदुल ने भी जानदार अभिनय किया है। लेकिन गायत्री की भूमिका में तारा शर्मा कुछ खास नहीं कर सकी। लगभग दो करोड़ रुपए की लागत से बनी यह फिल्म अच्छा व्यापार करने में सक्षम है। समाज पर व्यंग्य करने वाली फिल्में तो अक्सर बनती ही रहती हैं लेकिन “पेज-थ्री” ने जिस अच्छे ढंग से समाज पर व्यंग्य कसा है, उस प्रकार की फिल्में कभी-कभार ही बनती हैं।वर्ष 58, अंक 48 वैशाख कृष्ण 8, 2062 वि. (युगाब्द 5106) 1 मई, 2005आचार्य विष्णुकान्त शास्त्री- सरस्वती पुत्र का महाप्रयाण रह गया एक विराट शून्य”मुहब्बत” का मौसम आसमान छूती आशाएं, पर पांव जमीन पर रहें। किस कीमत पर दोस्ती?नई दिल्ली में साझा बयान जारी करने के बाद जनरल परवेज मुशर्रफ के साथ प्रधानमंत्री डा. मनमोहन सिंहप्रशंसा के तूफान में 1800 बदले हुए “नए दिल” वाले जनरल की बातों का सम्यक विवेचन कैसे होगा?बस चली, दिल मिले -महमूद शाम मुख्य समूह सम्पादक, उर्दू दैनिक जंग (पाकिस्तान)जनरल की “पप्पी-झप्पियों” पर पाकिस्तान के जमाते इस्लामी नेता हैदर फारुक मौदूदी ने कहा- जनरल की “पप्पी-झप्पियों” पर पाकिस्तान के जमाते इस्लामी (मौदूदी) नेता हैदर फारुक मौदूदी ने कहा- जो 96 प्रतिशत वोट से आने वाले पूर्वी पाकिस्तान को नहीं संभाल सके, वो कश्मीर क्या खाक संभालेंगे?निष्काम कर्मयोगी -कुप्.सी. सुदर्शन, सरसंघचालक, रा.स्व.संघराम जी को तो नहीं, पर उन्हें देखा था -तरुण विजयभारतीय ज्ञानपीठ द्वारा श्रद्धासुमन -प्रतिनिधिऐसा क्यों होता है? आलोक गोस्वामीएक और रेल दुर्घटना- साबरमती टकराई, 19 की जान गई रेल मंत्री का ध्यान जब मंत्रालय पर न हो तो नतीजा यही न निकलेगा! प्रतिनिधिकुछ यूं किया दिल जीतने के लिएश्रीलंका के सुनामी पीड़ितों के बीच पहुंचीं अम्मा दर्द बांटा, स्नेह से सींचाअंदमान-निकोबार के उपराज्यपाल प्रो. राम कापसेने सुनामी पीड़ितों के दर्द पर लगाया मरहम बहुत किया, पर अभी बहुत कुछ करना हैनिजी क्षेत्र में “आरक्षण” जो कहते हैं जरुरी है, उन्हें भी लागू करने में दिलचस्पी नहीं -प्रेमचन्द्रएम.पियोंगतेमजन जमीर व नानाजी लाभे सेवाव्रतियों का सम्मान प्रतिनिधिएडगर केसी : “अनेक महल”-2 मानव विज्ञान का नया क्षितिज -हो.वे. शेषाद्रि अ.भा. प्रचारक प्रमुख, रा.स्व.संघकोलकाता और ग्वालियर में “श्री गुरुजी समग्र” लोकार्पित प्रतिनिधिदिल्ली की सेकुलर सरकार – हिन्दू संवेदनाएं कसाइयों के हवाले मेनका गांधी ने खोली दिल्ली सरकार की पोल गोशाला बन्द, कसाईखाना शुरूकोटा में हिन्दुओं के मतान्तरण का प्रयास विफल वे ईसाई बना लिए गए होते, अगर….. प्रतिनिधिराजस्थान में सर उठा रही हैं राष्ट्र विरोधी शक्तियां जोगेन्द्र सिंह सिलोरपंजाब की चिट्ठी “कैप्टन” ही बिगाड़ रहे हैं राजनीति का “खेल” -राकेश सैनपंजाब की राजनीति में बाहुबलियों का बढ़ता रुतबा कन्ता का साथी कौन बादल या डिंपा?एकल विद्यालय करेंगे मतान्तरण का मुकाबला”देवपुत्र” के “पंजाब अंक” का लोकार्पण प्रतिनिधिमुस्लिम कट्टरता के विरुद्ध लामबंद यूरोप मुजफ्फर हुसैनमाओवादी कम्युनिस्टों का “लाल गलियारा” वासुदेव पालसम्पादकीय बर्बर बंगलादेश और “बहादुर” हममंथन मुशर्रफ का दिल बदला, पर लक्ष्य नहीं -देवेन्द्र स्वरूपकही-अनकही भारतीय संविधान में राम और कृष्ण? -दीनानाथ मिश्रमाटी का मन भूखे सोने को मजबूर हैं ग्रामीण -डा.रवीन्द्र अग्रवालपाञ्चजन्य पचास वर्ष पहले विदेश स्थित दूतावासों में गोलमाल सम्पादक : गिरीश चन्द्र मिश्रहिन्दू-भूमि जो काल का भी कारण है, उसे जानो सुरेश सोनीपाठकीय भारत में ये भारत-विरोधीटी.वी.आर. शेनाय मुशर्रफ के 1800 बदलाव पर कितना करें भरोसा?गहरे पानी पैठ प्रेम कुमार का तबादलानमन आचार्य विष्णुकान्त शास्त्री-स्वर्गीय विष्णुकांत शास्त्री- अमिट यादें एक गजल आकाश छू लेते मगर… -अशोक “अंजुम”पुस्तकें मिलींNEWSरह गया एक विराट शून्य-विमल लाठएक विराट शून्य। शास्त्री जी नहीं रहे। जो कल तक हम सब के बीच सदा की तरह हंसते – मुस्कुराते बैठे थे, वे आज नहीं हैं, क्या इस बात पर विश्वास करें? शनिवार, 16 अप्रैल की रात को उन्हें रेल से पटना जाना था। रविवार, 17 तारीख को गीता के आध्यात्मिक पक्ष पर वहां उनकी एक वार्ता होनी थी, नहीं हुई। सुबह 8 बजे पटना के प्लेटफार्म से ही केशव जी कायां का फोन मिला – वज्राघात! रेल कर्मचारी ने वहां उनकी अगवानी करने गये लोगों को बताया कि बख्तियारपुर के पास पूर्ण स्वस्थ शास्त्री जी बोगी के प्रसाधन कक्ष में गये थे, बहुत देर तक नहीं लौटे तो दरवाजा थपथपाया गया, आवाज दी गयी, पर कोई जवाब नहीं। तब पटना स्टेशन पर दरवाजा तोड़ा गया और ज्ञात हुआ कि शास्त्री जी को उनके इष्टदेव प्रभु श्रीराम ने अपने पास बुला लिया है। शनिवार को ही प्रात: कोलकाता में मानस पर आयोजित एक प्रवचन में उन्होंने कहा था कि प्रभु श्रीराम किसी को भी ऐसी मृत्यु दें जो आकस्मिक हो, किसी को कष्ट न पहुंचाये और न कभी दैन्य की स्थिति आये। ऐसी ही मृत्यु को उन्होंने जीया।यात्रावीर थे आचार्य विष्णुकान्त शास्त्री। करीब 4 महीने पूर्व “अल्सर” के लिए उनकी शल्य चिकित्सा हुई थी। उन 2 महीनों को छोड़ दें, तो बस “चरैवेति – चरैवेति”। राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के स्वयंसेवक 1944 में बने, तब से अंतिम क्षण तक एक निष्ठावान स्वयंसेवक का जीवन जीया। बड़े – बड़े सार्वजनिक कार्यक्रमों में भी वे याद दिलाते रहते थे कि “देखो, हम हेडगेवार कुल गोत्र के लोग हैं, हमसे भारत मां की जो अपेक्षाएं हैं, एक क्षण के लिए भी उसका विस्मरण नहीं होना चाहिए।” सन् 1948 में संघ पर प्रतिबंध के विरोध में कारावरण किया।2 मई, 1929 को कलकत्ता में उनका जन्म हुआ था। अपने पिता परम विद्वान प0 गांगेय नरोत्तम शास्त्री की परम्परा को आगे बढ़ाते हुए प्रथम श्रेणी में प्रथम स्थान प्राप्त करते हुए 1952 में एम0ए0(हिन्दी) तथा 1953 में एल0एल0बी0 की परीक्षाएं पास कीं। 24 वर्ष की अल्पायु में ही कलकत्ता विश्वविद्यालय में प्राध्यापक के पद पर नियुक्त हुए।पूर्व पुरुष जम्मू से आकर वाराणसी में बसे थे, बाद में पिता कलकत्ता आ गये। यही कलकत्ता शास्त्री जी की जन्मस्थली और कर्मस्थली बना। जम्मू की इंदिरा देवी से 1953 में विवाह हुआ। शास्त्री जी के अनुरूप ही रूप-गुण संपन्न थीं धर्मपत्नी भी। सन् 1988 में वे दिवंगत हुर्इं। एकमात्र संतान हैं- पुत्री भारती। शास्त्रीजी कुल 4 भाई और 1 बहन। संयुक्त परिवार का आडम्बरहीन सरल जीवन। साहित्य, संस्कृति, अध्यात्म, शिक्षा और राजनीति के सभी विषय जैसे उनके नितान्त अपने थे। इनसे संबंधित कितनी ही शीर्ष संस्थाएं उनका संरक्षण नानाविध रूपों में पाती रहीं। केवल कलकत्ता ही नहीं, उनका व्याप अंतरराष्ट्रीय हो गया था। भारत का तो शायद ही कोई विश्वविद्यालय बचा हो जहां से इनके व्याख्यानों की पुकार न हुई हो। प. बंगाल की विधानसभा के सदस्य, राज्यसभा के सदस्य, प. बंगाल की भाजपा के 2 बार अध्यक्ष, भाजपा के राष्ट्रीय उपाध्यक्ष, सन् 1999 से 2004 के बीच हिमाचल और उत्तर प्रदेश के राज्यपाल रहे। अजातशत्रु के रूप में आपकी ख्याति थी। विरोधी विचारधारा वाले भी उनके परम स्नेहभाजन रहे और वे उनके श्रद्धापात्र। मनुष्य के रूप में कभी किसी से भेदभाव नहीं बरता। छात्रों और प्रशंसकों की एक बहुत बड़ी जमात, जिसको देखकर उनकी विराट लोकप्रियता का सहज अंदाज लगाया जा सकता है।रविवार, 17 अप्रैल, 2005 को सुबह ही उनकी नश्वर देह-त्याग की सूचना चारों तरफ फैल गयी। टी0वी0 के विभिन्न चैनलों पर यह दु:खद समाचार पाकर पूरे देश में शोक की लहर छा गई। परिवारवालों को सांत्वना देने दल के दल पहुंचने लगे, फोन रुकने का नाम ही न लें। पटना के अस्पताल में डाक्टरी जांच के बाद वायु सेना के विमान से उनकी पार्थिव देह को कोलकाता लाने का इंतजाम हुआ। पटना हवाई अड्डे पर उनके सम्मान में सैनिकों ने सलामी दी। करीब 6 बजे विमान कोलकाता विमानपत्तन पर पहुंचा। सैकड़ों लोगों ने अश्रुपूरित नेत्रों से अपने परमप्रिय स्वजन को पुष्पहार समर्पित किये। उनके निवास स्थान पर हजारों लोग जमा थे, एक झलक पा लेने के लिए आतुर। आने वालों का तांता लगा था। राजनेता, महापौर, उप-महापौर, साहित्य जगत के साथी, संस्कृतिकर्मी, कैमरा लिये हुए चैनलों के तथा समाचारपत्रों के दर्जनों छायाकार तथा संवाददाता, साधारण तबके के उनके प्रशंसक, कतारबद्ध होकर उनके दर्शन करते रहे। देर रात तक यह सिलसिला चला।सोमवार, 18 अप्रैल को सुबह से ही अपार भीड़, पुष्पमालाओं के अंबार। 10 बजे पूर्व उप-प्रधानमंत्री, प्रतिपक्ष के नेता श्री लालकृष्ण आडवाणी पहुंचे, पुष्पांजलि दी, परिवारवालों को सांत्वना दी, ऊपर दो तल्ले पर शास्त्रीजी के अध्ययन कक्ष में उनके सरल, शुचितापूर्ण और पुस्तकों के अम्बारों से आच्छादित, पर अब शास्त्री जी के बिना सूने परिवेश को निकट से देखा। शास्त्री जी के पट्ट शिष्य, पुत्र-समान डा. प्रेमशंकर त्रिपाठी से बातचीत की। करीब 11.30 पर पुष्पों से सजे एक वाहन पर शास्त्री जी की अंतिम यात्रा प्रारंभ हुई। साथ में पैदल लोगों के समूह, मोटरों की लम्बी कतार। करीब आधे घण्टे बाद यात्रा भाजपा के प्रांतीय कार्यालय, 6 मुरलीधर सेन लेन पहुंची। भाजपा अध्यक्ष, मंत्री और अन्य पदाधिकारियों के साथ-साथ कार्यकर्ताओं के विशाल समूह ने अपनी श्रद्धा निवेदित की। कुछ समय बाद कलकत्ता विश्वविद्यालय के प्रांगण में कुलपति, रजिस्ट्रार तथा हिन्दी विभाग के अध्यक्ष, प्राध्यापकों तथा छात्रों ने अपने प्रिय “सर” को अंतिम विदाई दी। इसी विश्वविद्यालय को शास्त्री जी ने सुदीर्घ 41 वर्षों- 1953 से 1994- तक प्राध्यापक, विभागाध्यक्ष, सीनेट के सदस्य आदि अनेक रूपों में अपनी सेवायें ही नहीं अपनापन भी दिया था। अपना भाषण तैयार करके कक्षा लेना ही उनकी मान्यता थी, इसीलिए वे अपने छात्रों में लोकप्रिय हुए। 1962 में चीन के आक्रमण के समय प्राध्यापक होते हुए एन.सी.सी. में भर्ती हुए और अनेक बार उसी मिलीटरी वर्दी में सीधे कक्षा में पहुंचते थे। करीब 1 बजे शव-यात्रा के राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के मुख्यालय, केशव भवन पहुंचने पर विशाल कक्ष में भारतमाता के विशाल चित्र के समक्ष उनके पार्थिव शरीर काà रखा गया। संक्षिप्त गीता-पाठ हुआ, शास्त्री जी के प्रिय मित्र संघ के संपर्क प्रमुख श्री बंसीलाल सोनी के श्रद्धा निवेदन के पश्चात् 100 से अधिक संस्थाओं की ओर से पुष्पांजलि दी गई और उपस्थित करीब 700 से अधिक स्वयंसेवकों ने अपने प्रिय स्वयंसेवक को अंतिम प्रणाम किया, प्रार्थना हुई। यहां से नीमतल्ला श्मशान स्थल- अंतिम पड़ाव आया। दोपहर करीब 3 बजे नश्वर देह काष्ठ चिता पर अग्नि को समर्पित हुई। आडवाणी जी ने चंदन काष्ठ रखा। शास्त्री जी के भतीजे विधु शेखर शास्त्री ने मुखाग्नि दी। कनिष्ठ भ्राता श्रीकान्त शास्त्री, भतीजे शशांक और विकास तथा परिवार के सभी लोगों ने भीगी आंखों से उन्हें विदाई दी। अंत्येष्टि स्थल पर उपस्थित हजारों लोगों को लग रहा था मानो उनका अपना अत्यन्त निकट का व्यक्ति उनसे बिछुड़ रहा हो। शास्त्री जी की खासियत यह थी कि वे अपना स्नेह इस प्रकार सबको बांटते थे कि पानेवाला व्यक्ति यही मानता था कि वही उनके सबसे निकट है।शास्त्री जी रामजी के अनन्य भक्त थे। किसी भी परिस्थिति को वे “रामजी की इच्छा” कहते हुए स्वीकार करते थे। उनका एक प्रसिद्ध दोहा है -मैं तो हूं श्रीराम का, मेरे हैं श्रीराम ।राम-राम जपता रहूं, निशिदिन आठों याम ।।और देखिये, रामनवमी के दिन (17 तारीख की प्रात:) उन्होंने अपनी देह-त्याग दी, रामनवमी के दिन ही उनका अंतिम संस्कार हुआ। प्रभु श्रीराम ने अपने अनन्य भक्त को अपने पास बुला लिया।NEWS
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