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बहुत किया, पर अभी बहुत कुछ करना हैप्रो. राम कापसेसुनामी लहरों ने अंदमान निकोबार द्वीप समूह को एक तरह से उजाड़ कर रख दिया है। वहां की 4 लाख आबादी में से 50 हजार लोग एक झटके में बेघर हुए और हजारों लोग काल-कवलित या लापता हुए। 427 मृतकों की अब तक पहचान हो चुकी है और 3073 लोग लापता हैं। तबाही की विकरालता को देखते हुए कहा जा सकता है कि ये लापता लोग शायद ही कभी लौंटेगे। इसी से वहां की तबाही का अंदाजा लगाया जा सकता है। बेघर हुए इतने लोगों को पुन: बसाना एक बहुत बड़ी चुनौती थी और अभी भी है। अंदमान की भौगोलिक स्थिति को देखकर तो यह कार्य और भी दुष्कर है। यहां के 38 द्वीपों में लोग रहते हैं। सबसे ऊपर का द्वीप उत्तरी अंदमान बंगलादेश के समीप है और सबसे नीचे का द्वीप “इंदिरा प्वाइंट” है, जो देश का अन्तिम स्थान है। उत्तरी अंदमान से हवाई जहाज के द्वारा मात्र 10 मिनट में बंगलादेश और बर्मा एवं इंदिरा प्वाइंट से इतने ही समय में सुमात्रा पहुंचा जा सकता है। एक तो द्वीप समूह और ऊपर से 8,249 वर्ग कि.मी. के क्षेत्रफल में फैले इस भूभाग में पुनर्वसन का कार्य अत्यन्त कठिन है। अंदमान-निकोबार, प्रशासन से जुड़ा हर व्यक्ति और अन्य संगठनों के लोग पहले तो राहत कार्यों में लगे थे और अब पुनर्वसन कार्यों में लगे हैं। अंदमान चूंकि एक केन्द्र शासित प्रदेश है इसलिए केन्द्र सरकार और अन्य राज्य सरकारों की तरफ से भी मदद मिली। गुजरात, महाराष्ट्र, केरल, पश्चिम बंगाल आदि राज्यों से काफी सहायता मिली। केरल और प. बंगाल से हजारों बांस आए, जिनका यहां अस्थायी घर बनाने में प्रयोग हो रहा है। लगभग 53 गैरसरकारी संगठनों के कार्यकर्ता भी पुनर्वसन कार्यों में लगे हैं। कोई मकान बनाने में, कोई सेवा में, तो कोई सड़क बनाने में लगा है। इस प्रकार हम कह सकते हैं कि पूरा देश अंदमान में सुनामी पीड़ितों के पुनर्वसन में लगा है।यूं खुले में रह रहे हैं अंदमानवासी, जिन्हें अब भी एक अदद छत की तलाश हैअभी भी लगभग 200 शिविर ऐसे चल रहे हैं जहां हजारों लोगों को प्रतिदिन भोजन कराया जाता है। इन शिविरों को विभिन्न संगठनों के कार्यकर्ता ही चला रहे हैं। ये शिविर तब तक रहंेगे जब तक लोग अपने अस्थायी घरों में नहीं चले जाएंगे। अस्थायी घर जोर-शोर से बन भी रहे हैं। 15 अप्रैल से कुछ लोग अपने अस्थायी घरों में जाने भी लगे हैं और यह क्रम 23 अप्रैल तक जारी रहेगा। क्योंकि इसके बाद वहां मानसून आने की संभावना है। इसलिए मानसून आने से पहले लगभग सभी बेघरों को अस्थायी घर देने का प्रयास किया जा रहा है। बाद में उनके लिए स्थायी मकान भी बनाने का विचार है।देशवासियों से दो तरह की मदद हमें चाहिए। पहली वैसी चीजें, जो घरेलू उपयोग की हों और दूसरी मदद पैसे के रूप में हो। पुरानी चीजों की हमें कतई आवश्यकता नहीं है। कई कम्पनियों ने सहायता भेजनी भी शुरू कर दी है। मुम्बई की एक स्टील कम्पनी ने 500 प्रेशर कुकर और एक अन्य कम्पनी ने नारियल से जुड़ी कई तरह की वस्तुएं देने का निर्णय किया है। जो लोग या संगठन कुछ गांव बनवाना चाहते हैं, वे भी आगे आएं अथवा गृह निर्माण की सामग्री उपलब्ध कराएं। हालांकि इस क्षेत्र में कुछ गैरसरकारी संगठन काम कर भी रहे हैं, जैसे-रोटरी क्लब, सेवा भारती आदि। पिछले दिनों सेवा भारती ने एक अस्पताल बनवाया है। भारत जैन संगठन ने लगभग 20 विद्यालय भवन बनवाए हैं। इस तरह अन्य कई संगठन दिन-रात लगे हैं।मैं बहुत अभिभूत हूं कि जब सुनामी लहरें आईंउसके कुछ घंटे बाद ही और अभी भी देशभर से लोगों के टेलीफोन आते हैं कि हम भी मदद करना चाहते हैं। आप बताइए हम अपनी मदद कहां भेंजे, क्या भेंजे? टेलीफोन ही नहीं, संचार के जो भी साधन हैं, उनके द्वारा लोगों ने अंदमान प्रशासन से सम्पर्क कर सहायता देने की बात कही।(वार्ताधारित)NEWS
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