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वचनेश त्रिपाठी “साहित्येन्दु”बेगम हजरत महलनेपाल से जोड़ा नातासन् 1857 की क्रांति में राजा जयपाल सिंह लखनऊ के कर्नल खुदाबख्श, अलमास अली खां के बाग, आलम बाग, चार बाग से लेकर अमीनाबाद और कैसरबाग तक अंग्रेजों से युद्धरत रहे थे। उसके पश्चात् अवध की क्रांतिकारिणी बेगम हजरत महल ने जब लखनऊ छोड़ा तो उन्हें राजा जयपाल सिंह ही लखनऊ के आलमबाग के नाके से सुरक्षित रूप से बाहर पहंुचा आए थे। वहां से वे हिन्दू राज्य नेपाल में जाकर आश्रय लेना चाहती थीं। उन दिनों नेपाल नरेश थे राजा जंगबहादुर सिंह। शैदा बेगम ने बेगम हजरत महल को मना किया था कि नेपाल हरगिज न जाएं, क्योंकि नेपाल के राजा अंग्रेजों के दुश्मन नहीं हैं। पर तब बेगम ने जवाब दिया कि, नेपाल के राजा फिरंगियों की तरह काले दिल वाले हरगिज नहीं हो सकते। नेपाल हमारा पड़ोसी है, एक हिन्दू राज्य है। भले वह फिरंगियों का दुश्मन न हो, पर मैं यह नहीं मानती कि उसका हिन्दू दिल बदल गया है। उसी हिन्दू राज्य में रहना चाहूंगी। मैं उसकी साया अख्त्यार करूंगी। और फिर उनका काफिला आगे तुलसीपुर, सनारे की पहाड़ी, बटोल होता हुआ नेपाल की घाटी में पहुंच गया। बेगम हजरत महल के वहां पहुंचते ही राजा जंगबहादुर ने बेगम के बेटे बिरजिस कदर को बड़े प्यार से अपनी बगल में राज सिंहासन पर बैठाया। बेगम को जाने कैसे श्रीराम का वनवास याद आया, वे बोलीं, “मैंने किताबों में पढ़ा है कि अवध के ही राजा रामचन्द्र जी के वनवास के वक्त पहाड़ों के राजाओं ने उनकी बड़ी मदद की थी, जिससे उन्होंने लंका तक फतह की थी।”अंग्रेजों से आमने-सामने लड़ने वाली अवध की यही एक अकेली बेगम थी, बाकी 8 बेगमें खामोशी से लखनऊ के महल में ही रह रही थीं। नेपाल के राजा बेगम हजरत महल को पांच सौ रुपए मासिक खर्च देते रहे। उधर अंग्रेजों ने उन्हें गर्वनर जनरल के जरिए लखनऊ वापस बुलाने का संदेश भेजकर कहा था कि “हम तुम्हारे बिरजिस कदर को 15 लाख रुपए सालाना पेंशन देंगे।” पर बेगम ने गवर्नर जनरल को टका सा जवाब दिया, “मैं तुम्हारे फिरंगी राज्य के साए में जिन्दगी गुजारने की बजाए इस हिन्दू राज्य नेपाल में बाकी जिन्दगी बिताना बेहतर समझती हूं।” इसके बाद वे पूरे 22 वर्ष नेपाल में ही रहीं। वहीं उनके बेटे बिरजिस कदर का विवाह भी मिर्जा दाउद बेग की बेटी मुख्तारू लनिसा के साथ संपन्न हुआ और उसका नाम रखा गया महताब महल। बिरजिस कदर के चार बेटे व चार बेटियां हुईं। बाद में अंग्रेजों द्वारा क्षमा दान देने पर वे बजाय लखनऊ के कलकत्ते में आकर अभी सिर्फ 2 वर्ष ही रहे थेे कि एक दावत में उनके रिश्तेदार ने ही बिरजिस कदर को खाने में जहर दे दिया, जिससे उनकी मृत्यु हो गई। जिसे अंग्रेज नहीं मार सके, उसे उन्हीं के एक मुस्लिम रिश्तेदार ने मार डाला।17
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