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भाजपा नेताओं का उपवास- धरना,
संतों का रोष- प्रदर्शन
आहत हैं सब- नई दिल्ली में संसद मार्ग पर उपवास- धरना स्थल पर
पूर्व राष्ट्रपति श्री आर. वेंकटरमन,
पूर्व प्रधानमंत्री श्री चन्द्रशेखर एवं श्री अटल बिहारी वाजपेयी तथा संत श्री आसाराम बापू
संतों में व्याप्त रोष को अभिव्यक्त करते हुए अ.भा. अखाड़ा परिषद् के अध्यक्ष महंत ज्ञानदास। साथ में हैं (बाएं से)
महामण्डलेश्वर स्वामी अवधेशानंद गिरि एवं अखाड़ा परिषद् के
महामंत्री स्वामी परमानंद सरस्वती
बंगलौर में विरोध प्रदर्शन करती हुईं महिलाएं
बंगलौर में देश के अनेक प्रमुख मठों के संतों ने एक बैठक आयोजित करके पूज्य शंकराचार्य जी की गिरफ्तारी के विरुद्ध अपना विरोध दर्ज कराया। उस अवसर के चित्र में (बाएं से) श्रृंगेरी मठ के स्वामी वेल्लुकेश्वर भारती, पेजावर पीठाधीश्वर स्वामी विश्वेश्तीर्थ जी महाराज, आर्ट आफ लिविंग के श्री श्रीरविशंकर, सुतुर मठ के स्वामी शिवरात्रि देशिकेन्द्र, आदि चुनचुनगिरी मठ के स्वामी बालगंगाधरनाथ तथा तरलुबालु मठ के स्वामी शिवमूर्ति शिवाचार्य
शंकराचार्य जी की गिरफ्तारी के विरुद्ध 21 नवम्बर को संत समाज द्वारा भारत बंद के आह्वान पर श्रीकृष्ण जन्मभूमि मंदिर को भी दर्शनार्थ बंद रखा गया
भाजपा द्वारा आयोजित उपवास- धरने में दिल्लीवासी अपना रोष प्रकट करते हुए
दिल्ली के सुप्रसिद्ध गौरीशंकर मंदिर पर आयोजित धिक्कार सभा में
जुटे सभी सम्प्रदायों के साधु-संत
मुख्यमंत्री मुलायम सिंह यादव
उत्तर प्रदेश में मुलायम सरकार बनाएगी
सौ करोड़ का
“सरकारी मदरसा”
– सर्वेश कुमार सिंह
मोहम्मद आजम खां
उत्तर प्रदेश में उर्दू, फारसी और अरबी पढ़ाने के लिए एक विश्वविद्यालय की स्थापना की जा रही है। विधानसभा में विधेयक प्रस्तुत कर समाजवादी पार्टी सरकार ने इसे स्वीकृत करा लिया है। विश्वविद्यालय की स्थापना रामपुर जनपद में मौलाना मोहम्मद अली जौहर के नाम पर की जा रही है। प्रदेश सरकार द्वारा इसके निर्माण पर लगभग एक अरब रुपए खर्च किए जाएंगे। कहा जा रहा है कि यह उर्दू का विश्वविद्यालय नहीं बल्कि सरकारी धन से एक मदरसा बनने जा रहा है। रामपुर, जो अभी तक प्रख्यात रजा लाइब्रोरी के लिए जाना जाता था, अब उर्दू विश्वविद्यालय के लिए भी उसी तरह से जाना जाएगा जैसे देवबंद, दारूल उलूम के लिए जाना जाता है।
उत्तर प्रदेश में एक समय उर्दू को द्वितीय राजभाषा बनाने का कड़ा विरोध हुआ था। यहां तक कि आन्दोलन हुए, न्यायालय में याचिकाएं दायर की गईं। तत्कालीन विधानसभा अध्यक्ष प्रो. वासुदेव सिंह ने भी उर्दू को द्वितीय राजभाषा बनाने का खुलकर विरोध किया था। उसी विधानसभा ने 30 नवम्बर, 2004 को राज्य सरकार द्वारा उर्दू, अरबी और फारसी पढ़ाने के लिए एक विश्वविद्यालय की स्थापना को स्वीकृति दी। इसके लिए प्रदेश सरकार ने तर्क दिया है कि राज्य में उर्दू बोलने वालों की काफी संख्या है, लेकिन उर्दू पढ़ने का कोई उचित प्रबंध नहीं है। इसलिए प्रदेश में एक उर्दू विश्वविद्यालय खोला जाए, जहां उर्दू के साथ-साथ अरबी और फारसी भी पढ़ाई जाए।
औचित्यहीन निर्णय
कहा जा रहा है कि उर्दू प्रेम के कारण नहीं बल्कि मुसमलानों को खुश करने के लिए समाजवादी पार्टी की सरकार और उसके मुख्यमंत्री मुलायम सिंह यादव ने यह निर्णय लिया है। क्योंकि यदि उर्दू की बात होती तो प्रदेश के अनेक विश्वविद्यालयों में उर्दू पढ़ाए जाने की व्यवस्था है। महाविद्यालयों में उर्दू एक विषय के रूप में पढ़ायी जाती है। सच्चाई यह है कि प्रदेश के माध्यमिक एवं उच्च माध्यमिक विद्यालयों में उर्दू शिक्षक नियुक्त हैं किन्तु उर्दू पढ़ने वाले नहीं हैं। उर्दू का रोजगार से भी कोई सम्बंध नहीं है। प्रदेश के न्यायालयों में एक समय उर्दू में कामकाज होता था। अब वहां भी उर्दू का प्रयोग समाप्त हो गया है। कई विश्वविद्यालय उर्दू के साथ-साथ फारसी और अरबी भी पढ़ाते हैं। फिर भी अलग से एक उर्दू विश्वविद्यालय खोलने का निर्णय समझ से परे है।
हालांकि विश्वविद्यालय की स्थापना करने से पहले सरकार ने यह भी सर्वेक्षण नहीं किया कि प्रदेश में या देश में प्रतिवर्ष कितने ऐसे छात्र हैं जोकि उर्दू, अरबी या फारसी पढ़ना चाहते हैं लेकिन स्थानाभाव के कारण इन विषयों में प्रवेश से वंचित रह जाते हैं। नदवा कालेज (लखनऊ) तथा दारूल उलूम (देवबंद) में भी ये भाषाएं पढ़ायी जाती हैं। क्या वहां छात्रों को प्रवेश में समस्या आती है? क्या वहां प्रवेश के लिए कोई योग्यता सूची या प्रवेश परीक्षा देनी पड़ती है? यदि वास्तव में उर्दू, अरबी एवं फारसी पढ़ने वालों को स्थान न मिल रहा होता तो विश्वविद्यालय का औचित्य समझा जा सकता था, लेकिन ऐसी कोई स्थिति नहीं है।
उर्दू पर आरोप
जब पाकिस्तान बना तो वहां की राष्ट्रभाषा उर्दू बनाई गई, जबकि पाकिस्तान में उस समय पंजाबी, सिन्धी, बंगला और पश्तो बोलने-लिखने वालों की संख्या अधिक थी। लेकिन उन्हें उर्दू को राष्ट्रभाषा मानना पड़ा क्योंकि यही भाषा पाकिस्तान को जन्म देने वाली थी। यह भी सच है कि उर्दू के वर्चस्व से तिलमिलाए तत्कालीन पूर्वी पाकिस्तान (अब बंगलादेश) ने इसे कभी भी अपनी भाषा या राष्ट्रभाषा स्वीकार नहीं किया। 1971 में पाकिस्तान से मुक्त होते ही उन्होंने बंगला को सम्मान दिया।
उत्तर प्रदेश का समूचा पूर्वाञ्चल क्षेत्र भोजपुरी बोलता है। आगरा, बरेली आदि क्षेत्रों में ब्राज भाषा बोली जाती है। यहां के मुसलमान भी इन्हीं भाषाओं को बोलते हैं और लिखने-पढ़ने में देवनागरी का उपयोग करते हैं। किन्तु यदि सर्वेक्षण किया जाता है तो उनकी भाषा मजहबी नेताओं के इशारे पर उर्दू दर्ज करायी जाती है।
ऊहापोह में कांग्रेस
रामपुर में प्रस्तावित नए जौहर विश्वविद्यालय पर कांग्रेस की स्थिति अत्यन्त हास्यास्पद रही। शुरू में तो कांग्रेस के नेताओं ने राज्यपाल से मिलकर विधेयक को रोकने की मांग की। बाद में कांग्रेस ने स्वयं को समाजवादी पार्टी से बड़ा उर्दू समर्थक साबित करना शुरू किया। परन्तु उसकी आपत्ति सिर्फ इस बात तक सीमित रही कि आजम खां को आजीवन प्रतिकुलाधिपति क्यों बनाया जा रहा है? कांग्रेस ने इस सम्बंध में एक संशोधन भी प्रस्तुत किया। इस संशोधन में कहा गया कि प्रतिकुलाधिपति की नियुक्ति तीन साल के लिए कुलाधिपति द्वारा की जाए। लेकिन कांग्रेस का यह संशोधन पारित नहीं हो सका।
भारतीय जनता पार्टी ने सदन में इस विधेयक का विरोध किया। भाजपा नेता लालजी टण्डन ने इसे अनुपयोगी बताया। लेकिन भाजपा का विरोध बहुत अधिक प्रभावी नहीं था। जबकि बसपा पहले ही सदन से एक अन्य मामले में बर्हिगमन कर गई थी।
रामपुर में बनने वाले मौलाना मोहम्मद अली जौहर विश्वविद्यालय का अधिनियम बनाते समय उ.प्र. विश्वविद्यालय अधिनियम को पूरी तरह नजरअंदाज किया गया है। राज्य सरकार के संसदीय कार्यमंत्री मोहम्मद आजम खां ने विधानसभा में स्वयं प्रस्ताव रखा। उनके स्वयं को प्रतिकुलाधिपति नामित करने का प्रस्ताव भी अत्यंत हास्यास्पद था। उन्हें प्रतिकुलाधिपति बनाया जाना क्यों जरूरी है, इस सम्बंध में भी तर्क प्रस्तुत किए गए।
आजीवन प्रतिकुलाधिपति नामित होने वाले मो. आजम खां को विश्वविद्यालय नियमों के विपरीत समस्त प्रशासनिक अधिकार दिए गए हैं। वे सर्वोच्च अधिकार प्राप्त कार्य परिषद् के अध्यक्ष होंगे, जबकि कुलपति उपाध्यक्ष होगा।
विश्वविद्यालय के लिए बनाए गए अधिनियम में अनेक विसंगितयां हैं। अधिनियम में उद्देश्य बताते हुए कहा गया है कि यहां छात्रों को उर्दू, अरबी एवं फारसी भाषा के शिक्षण एवं अनुसंधान द्वारा उन्नत ज्ञान, प्रज्ञा एवं समझ प्रदान की जाएगी। लेकिन उद्देश्यों में यह कहीं नहीं कहा गया है कि इस विश्वविद्यालय में मातृभाषा हिन्दी की क्या स्थिति होगी। यह पढ़ायी जाएगी अथवा नहीं?
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अच्छे काम
गोकुलम के बालक
बढ़ती पश्चिमी संस्कृति के दुष्प्रभाव से बच्चों को दूर रखने एवं उन्हें भारतीय संस्कृति से परिचित कराने के लिए केरल में 1970 में बालगोकुलम नामक एक संस्था की स्थापना की गई थी। इसके संस्थापक हैं रा.स्व.संघ के वरिष्ठ प्रचारक एवं साप्ताहिक केसरी के पूर्व सम्पादक श्री एम.के. कृष्णन। संस्था प्रत्येक रविवार को विभिन्न सार्वजनिक स्थलों पर लगभग डेढ़ घंटे के लिए कक्षाएं लगाती है। इन कक्षाओं में 6 वर्ष से लेकर 18 वर्ष तक के छात्र-छात्राओं को भारतीय संस्कृति से जुड़े विभिन्न विषयों की जानकारी दी जाती है। इसके अलावा सामाजिक दायित्वों के प्रति बच्चों को जाग्रत करना और विभिन्न पर्वों को सामूहिक रूप से मनाने का काम यह संस्था करती है। श्रीकृष्ण जन्माष्टमी के अवसर पर तो छोटे-छोटे बच्चों द्वारा श्रीकृष्ण की विभिन्न लीलाओं का मंचन केरलवासियों के लिए अविस्मरणीय दृश्य होता है। संस्था की सबसे बड़ी विशेषता यह है कि इसके समस्त कार्य बच्चे और युवा ही करते हैं। इस कार्य के लिए 18 से 25 वर्ष के युवा बिना किसी स्वार्थ के अपना समय देते हैं। इन्हें बालमित्रम कहा जाता है। कक्षा में पढ़ाने वालों को रक्षाधिकारी कहा जाता है। वर्तमान में पूरे केरल में ऐसी 2000 कक्षाएं लगती हैं। इन्हें चलाने में 1800 बालमित्रम और 1500 रक्षाधिकारियों का अमूल्य योगदान मिल रहा है।
बालगोकुलम द्वारा आयोजित एक धार्मिक कार्यक्रम में
उपस्थित बाल-गोपाल। प्रकोष्ठ में हैं श्री वी.वी. नारायणन
बालगोकुलम के अन्तरराष्ट्रीय संयोजक श्री वी.वी. नारायणन कहते हैं, “केरल के सभी जिला केन्द्रों में बाल-संस्कार केन्द्र हैं, जहां बच्चों के सर्वांगीण विकास का पूरा ध्यान रखा जाता है। 20-25 साल पहले इन केन्द्रों में संस्कारित होकर युवक आज देश-विदेश में बालगोकुलम का कार्य फैला रहे हैं। कर्नाटक में 72 स्थानों और मुम्बई, दिल्ली तथा खाड़ी के देशों में 8 स्थानों पर बालगोकुलम का कार्य चल रहा है।”
प्रस्तुति : अरुण कुमार सिंह
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