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इस्लामी देश मिस्र की मस्जिदों में
अजान की गूंज पर पाबंदी
अब कम्प्यूटर के जरिए होगी अजान
-मुजफ्फर हुसैन
नमाज इस्लाम के पांच बुनियादी स्तम्भों में से एक है। चूंकि यह दीन से जुड़ा विषय है, इसलिए इस मामले में कोई समझौता नहीं हो सकता। नमाज के समय की जानकारी देने के लिए अजान दी जाती है। अजान शब्द अरबी भाषा के “इज्न” से बना है जिसका अर्थ होता है- निमंत्रण। प्राचीन समय में आज की तरह घड़ियां उपलब्ध नहीं थीं और समय की सही जानकारी आम आदमी के लिए कठिन बात थी। इसलिए मस्जिद के बाहर ऐसी व्यवस्था की गई कि नमाज का समय होते ही अजान पुकारी जाए, ताकि लोग नमाज पढ़ने हेतु समय पर उपस्थित हो जाएं। प्राचीन अरब में कर्णप्रिय आवाज में अजान देना और कुरान पढ़ना एक कला मानी जाती थी। आज भी यह कला कई देशों में विद्यमान है, जिसे “किरत” कहा जाता है। मलेशिया की राजधानी क्वालालम्पुर में प्रतिवर्ष इसकी स्पर्धा आयोजित की जाती है। लेकिन जबसे ध्वनि विस्तारक यंत्र (लाउड स्पीकर) पर अजान देने की शुरुआत हुई तबसे यह परम्परा कला कम और प्रचार अधिक हो गई।
जब अजान ध्वनि विस्तारक यंत्र से प्रसारित होने लगी तो ध्वनि प्रदूषण की समस्या सामने आई। पश्चिमी राष्ट्रों में तो इसे कानून के अंतर्गत मर्यादित कर लिया गया, लेकिन एशिया और अफ्रीकी देशों में ऐसा करने पर उसे मजहबी मामलों में हस्तक्षेप समझा जाने लगा। अनेक देशों ने इस मामले में कानून बना लिए और कहा कि जिस काम से शोर होता हो उसे मर्यादित और प्रतिबंधित करना आवश्यक है। ध्वनि प्रदूषण से हृदय की धड़कनें प्रभावित होती हैं जो कुल मिलाकर इनसान को हृदय आघात की तरफ ले जाती हैं और इससे अन्य रोग भी होते हैं।
भारत जैसे पंथनिरपेक्ष देश में आज भी यह समस्या नहीं है। लेकिन कुछ बड़े शहरों में मस्जिदें एक-दूसरे के इतनी निकट हैं कि जब सभी मस्जिदों से एक साथ ध्वनि विस्तारक यंत्र पर अजान प्रसारित की जाती है तो ध्वनि प्रदूषण होता है। स्थानीय पुलिस इस मामले में सम्बंधित लोगों से विचार-विमर्श कर मामले को हल कर लेती है। लेकिन जब किसी मस्जिद के व्यवस्थापक कट्टरता के साथ पेश आते हैं और इसको मजहबी स्वतंत्रता से जोड़ देते हैं तो यह मामला गंभीर हो जाता है।
लेकिन इस्लामी देश इजिप्ट, जिसका प्राचीन नाम मिस्र है, भारत की तरह अजान द्वारा ध्वनि प्रदूषण के मामले में उदारवादी नहीं बन सका। लंदन के दैनिक “इंडिपेंडेंट” और काहिरा से प्रकाशित होने वाले “अल अहराम” ने यह चौंका देने वाला समाचार दिया है कि काहिरा में अजान सम्बंधी एक केन्द्रीय कम्प्यूटरीकृत व्यवस्था स्थापित कर दी जाएगी। यानी कोई एक व्यक्ति अजान दे और वही एक साथ, एक समय में सरकारी मान्यता वाली सभी मस्जिदों में सुनाई दे। इन अखबारों ने यह भी जानकारी दी कि सरकारी मान्यता वाली मस्जिदें काहिरा में केवल चार हजार हैं जबकि अन्य मस्जिदों की संख्या करीब दो लाख है। यदि चार हजार मस्जिदों में एक ही व्यक्ति की आवाज पहुंचे तो इसका अर्थ होगा कि सरकारी मस्जिदों में जो अब तक अजान देने का काम करते थे, वे सभी बेरोजगार हो जाएंगे। मिस्र के मजहब और औकाफ मंत्री महमूद हामिदी की यह योजना अल अजहर विश्वविद्यालय में विचाराधीन है। जब उसे यहां के मौलाना और इस्लामी विद्वान हरी झंडी दे देंगे तब सरकार क्रियान्वित करेगी। अल अजहर विश्वविद्यालय दुनिया के प्राचीनतम विश्वविद्यालयों में से है। इस्लाम के मामले में इसकी सलाह और फतवों को अधिकांश इस्लामी देशों की सरकारें स्वीकार करती हैं। बताते हैं कि अजान के मामले में अल अजहर ने अपनी सकारात्मक राय व्यक्त की है। इसलिए यह नियम मिस्र में अब बहुत जल्दी लागू हो जाएगा। यानी कम्प्यूटर की केन्द्रीय व्यवस्था से सभी मस्जिदों में अजान होने लगेगी।
उधर काहिरा में इस मुद्दे पर जोरदार बहस हो रही है। वहां के पुरातनवादी इसे मजहब में हस्तक्षेप की संज्ञा दे रहे हैं। लेकिन मिस्र सरकार का कहना है कि हमारा उद्देश्य अजान पर पाबंदी लगाना नहीं है, मस्जिदों में बिना लाउडस्पीकर के अजान दी जाती रहेगी। सरकार केवल अपने नागरिकों के स्वास्थ्य की दृष्टि से यह कदम उठा रही है। मिस्र के मुसलमानों का एक वर्ग यह भी कह रहा है कि सरकार ने इस प्रकार का निर्णय यूं ही नहीं कर लिया होगा। इसके पीछे अवश्य ही कोई न कोई रहस्य होगा। मिस्र में सबसे बड़ा कट्टरवादी दल “इखवान ब्रादरहुड”, जो इन दिनों प्रतिबंधित है, का यह कहना है कि भूतकाल में सरकार ने जो निर्णय किए हैं वे सभी पश्चिमी राष्ट्रों के दबाव में आकर किए हैं। “इखवान ब्रादरहुड”, जिसका अरबी नाम “इखवानुल मुसलमीन” है, के सैकड़ों अनुयायियों का मिस्र सरकार समय-समय पर कत्लेआम करती रही है। “इखवानुल मुसलमीन” को अरबस्तान में पुरातनवादी इस्लामी संस्थाओं का जनक कहा जाता है। यानी आज सारी दुनिया में जो इस्लामी आतंक है, वह उसको जन्म देने वाली है। उसका प्रचार-प्रसार मिस्र से निकल कर सीरिया, लीबिया, लेबनान, जार्डन और सऊदी अरब को पार कर भारतीय उपमहाद्वीप के देशों तक पहुंच गया है।
लाउडस्पीकर से अजान पर प्रतिबंध लगाने के निर्णय की मिस्र के एक इस्लामी विद्वान सही हुएदा ने कटु निंदा करते हुए कहा कि सरकार का यह पहला कदम है जिसके माध्यम से वह मिस्र की सभी मस्जिदों को अपने नियंत्रण में लेकर उनका सरकारीकरण करना चाहती है। जब मस्जिद ही सरकार की हो जाएगी तो फिर उसमें अजान देने वाला और नमाज पढ़ाने वाला भी सरकारी आदमी हो जाएगा। नमाज के बाद खुत्बे (मजहबी भाषण) में वही सब कुछ होगा जो सरकार चाहेगी। ध्वनि प्रदूषण तो केवल बहाना है। सरकार मस्जिद और उसमें होने वाली मजहबी गतिविधियों को अपने कब्जे में रखना चाहती है। हुएदा ने सवाल किया कि पांच मिनट की अजान से तो प्रदूषण फैल जाता है, लेकिन निकाह, सालगिरह व अन्य समारोहों के अवसर पर लाउडस्पीकर के प्रयोग से क्या कोई प्रदूषण नहीं होता? इस्लामी शरीयत की व्याख्या करने वाले विद्वानों के एक समूह ने कहा कि एक मस्जिद की अजान दूसरी मस्जिद में कम्प्यूटर द्वारा सुनाई जाए तो क्या यह समझा जाएगा कि वहां भी अजान हो गई है और वहां फिर से अजान कहे जाने की आवश्यकता नहीं है? इन उलेमाओं ने इस व्यवस्था को गैरइस्लामी घोषित किया है।
मिस्र वह देश है जहां इस्राइल से मित्रता करने के लिए कुछ कुरान की आयतें और पैगम्बर साहब की हदीसें शिक्षा के अभ्यास क्रम से खारिज की जा चुकी हैं। अब मिस्र में जिहाद का अर्थ भी बदल दिया गया है। यहूदियों को इस्लाम विरोधी बताने वाले शब्दों का भी अब वहां उपयोग नहीं होता है। मिस्र में अब अरबी सिखलाने का तरीका भी बदल गया है। मिस्र में भूगोल को भी बदलने के प्रयास हो रहे हैं। अरब देशों के मानचित्र में “फिलिस्तीन” शब्द निकाल दिया गया है। सम्पूर्ण भू-क्षेत्र को इस्रायल के नाम से परिचित कराया जाता है। इसलिए मिस्र सरकार की नीयत ठीक नहीं है। आज यदि अजान पर प्रतिबंध लगाया जाता है तो वह दिन दूर नहीं जब नमाज पर भी प्रतिबंध लगा दिया जाएगा और उसमें यहूदियों और अमरीकियों को खुश करने के लिए संशोधन कर दिया जाएगा। लेकिन इसके साथ ही कट्टरवादी मुस्लिम नेताओं को भी यह समझ लेना चाहिए कि समय के साथ वे उदारवादी नहीं बने तो एक दिन सम्पूर्ण इस्लामी जगत को मिस्र का अनुसरण करने के लिए बाध्य होना पड़ेगा।
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