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जो मनुष्य जिसके साथ जैसा व्यवहार करे उसके साथ भी उसे वैसा ही व्यवहार करना चाहिए, यह धर्म है। कपटपूर्ण आचरण करने वाले को वैसे ही आचरण के द्वारा दबाना उचित है और सदाचारी को सद्व्यवहार के द्वारा ही अपनाना चाहिए।-वेदव्यास (महाभारत, शांतिपर्व, 109।30)टकराव के सौ दिन क्या विपक्ष दुश्मन है?यह सरकार अच्छी चले, देशहित में सबको लेकर चले और कार्यकाल पूरा करे, यह कहने में हमें तो कोई आपत्ति नहीं। पर यह सरकार जिस प्रकार चल रही है, उसे देखते हुए लगता है, क्या वास्तव में उसे किसी की शुभ-कामनाओं का पात्र माना जा सकता है? हमें उम्मीद थी कि संप्रग की सरकार अपने सीधे-सादे-सलौने मनमोहन सिंह की तरह सरकार चलाने में ज्यादा और शोर मचाने में कम वक्त लगाएगी। पर 100 दिन के बाद नतीजा यह निकला है कि लोग सरकार के मंत्रियों को विपक्ष और खासकर हिन्दुत्व की विचारधारा में विश्वास रखने वाले राष्ट्रभक्तों पर दुश्मनों की तरह गोलियां दागते देख रहे हैं। और सरकार की छवि सौम्य, कामकाजी तंत्र के बजाय प्रतिशोधी लोगों के जमावड़े के रूप में प्रकट हो रही है। पहली बार देश में हिन्दुओं से घृणा करने वाले लोग सत्ता का निर्लज्ज उपयोग करने की स्थिति में पहुंचे। अब मनमोहन सिंह, “बस, मैं कहां हूं, यहां हूं कि वहां हूं, मैं खुद को ढूंढने में व्यस्त हूं,” जैसी छवि दिखा रहे हैं। अभी वे अमृतसर गए, जहां उन्होंने श्री गुरु ग्रंथ साहिब के 400वें प्रकाशोत्सव में हिस्सा लिया। वहां का माहौल केसरिया था। जिधर देखो उधर केसरिया ही केसरिया दिखता था। क्या उनके मन में यह हूक नहीं उठी होगी कि इसी पावन केसरिया रंग को उन्हीं के “नफरत संसाधन विकास मंत्री” ने तिरस्कार का पात्र बना दिया। उनके दागी मंत्रियों के अपराधों की सूची अनंत है। पर तिरंगा फहराने के लिए उनकी पार्टी के मुख्यमंत्री “सुपर प्रधानमंत्री” का इशारा पाकर उमा भारती को जेल भेज देते हैं। फिर घबराकर कहते हैं, हम मामला वापस ले रहे हैं। और फिर कलाबाजी खाकर कहते हैं कि अदालत अपना रास्ता खुद तय करेगी। अखबारों में विज्ञापन देते हैं कि इस सारे मामले में सोनिया जी का कोई हाथ नहीं है। यह विज्ञापन देने की जरूरत क्यों महसूस हुई? डर गए क्या? फिर सेना में सेकुलरवाद के नाम पर हिन्दू विरोधी आदेश जारी किया गया। जो काम अंग्रेजों और मुस्लिम राज के वक्त नहीं हुआ था, वह काम सोनिया और कम्युनिस्ट राज में हो गया। यानी रक्षा बंधन पर जवान राखी नहीं बांध सकते। उधर बिहार के मुस्लिम वोटों को ध्यान में रखते हुए गोधरा काण्ड की जांच के लिए लालू के दबाव में सरकार ने एक बनर्जी समिति बना दी है। एक ओर नानावती आयोग पहले से ही जांच कर रहा है, दूसरी ओर बनर्जी समिति बनाकर सरकार क्या हासिल करना चाहती है? इस समिति को बनवाने वाले लालू यादव ने समिति के फैसले पहले ही सुना दिए हैं। इसलिए यह संदेह नाजायज नहीं हो सकता कि हिन्दुओं पर जुल्म के बाद हिन्दुओं को ही गुनहगार ठहराने की साजिश रची जा रही है।पूरा वातावरण इस प्रकार का बनता दिखता है जिसमें सरकार विपक्ष को अपना दुश्मन नं. 1 मानकर चलती दिख रही है। इसलिए ऐसी आशंका व्यर्थ नहीं कही जा सकती कि सत्ता के सूत्र संभालने में नाकामयाब होने पर खुद को बचाने के लिए सरकार से बाहर वामपंथी और सरकार के भीतर नफरतपंथी मिलकर फिर से आपातकाल जैसी परिस्थिति पैदा कर सकते हैं।यह स्थिति उस विपक्ष के लिए तकलीफदेह है जिसमें अनमनी -सी, कुनमुनी-सी भाजपा तय नहीं कर पा रही है कि उसे कैसे और किस मार्ग से राष्ट्रवाद की रक्षा करते हुए शालीन लोकतंत्र के मार्ग पर खुद भी चलना है और सरकार को भी चलने के लिए बाध्य करना है। यह सरकार सन् 2004 में 1920, “30 और “40 के मुद्दों पर राष्ट्रीय बहस छेड़ते हुए नफरत और टकराहट के घाल-मेल में अपनी कर्तृत्वहीनता को छुपाने की कोशिश करेगी या कुछ काम करके दिखाएगी तथा भिन्न विचारधारा वालों को शत्रु न मानते हुए राष्ट्रीय विकास के सफर में साझीदार बनाएगी?8
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