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ज…ज…ज…ज…ज…इसका मतलब है देश की ताकतबता रहे हैं मध्य प्रदेश के पंच-ज प्रभारी लक्ष्मण सिंह गौड़गजब के राजनेता हैं लक्ष्मण सिंह गौड़। होना चाहिए था उन्हें राजनीति सुधार मंत्री, बन गए पांच बार “ज” बोलने वाले मंत्री। उनकी कहानी शायद पाञ्चजन्य के पाठकों को याद होगी। वे अपने चुनाव अभियान में न पोस्टर लगाते हैं, न बैनर। न बाहुबल दिखाते हैं, न धन बल। सीधे-साधे तरीके से घर-घर जाते हैं फिर भी जीत जाते हैं। उमा भारती ने जब जंगल, जमीन वगैरह वाले पांच “ज” का अभियान शुरू किया तो उन्हें ही इसका प्रभारी बनाया। पिछले दिनों वे पाञ्चजन्य कार्यालय आए तो हमें बड़े उत्साह से इस अभियान की गुणवत्ता के बारे में बताया। सवाल उठता है कि क्या यह उत्साह बाबूलाल गौर के जमाने में भी रहेगा।मध्य प्रदेश के आर्थिक विकास का आधार है यह अभियान। यहां की वन-सम्पदा, खनिज-सम्पदा, जल-सम्पदा और उर्वर जमीन का सही प्रबंधन अभी तक नहीं हो पाया है। यही कारण है कि हर तरह से सक्षम होने के बाद भी म.प्र. आज पिछड़ा हुआ है। इसी ताकत को पहचानते हुए प्रदेश की निवर्तमान मुख्यमंत्री सुश्री उमा भारती ने जल, जंगल, जमीन, जानवर और जन का सही सन्तुलन और सही उपयोग करने का निश्चय किया था, जिसे पंच-ज अभियान कहते हैं। इसके अन्तर्गत म.प्र. को विकास के शिखर तक पहुंचाने का लक्ष्य रखा गया है। प्रदेश, जिला, खण्ड और पंचायत स्तर पर पंच-ज समितियों का गठन किया जा रहा है। सही मायनों में यह अभियान देश की ताकत बनेगा।समितियों का काम विकास से सम्बंधित सभी सरकारी योजनाओं की देखरेख करना होगा। जैसे – सड़क निर्माण कार्य की समय-सीमा, गुणवत्ता आदि पर भी समिति ध्यान रखेगी। पंचायत समितियों का एक और बड़ा महत्वपूर्ण कार्य गांव की विकृत प्रतिस्पद्र्धा को रचनात्मक प्रतिस्पद्र्धा में बदलना है।जल को प्राथमिकता दी जाएगी, क्योंकि यदि जल होगा तो जमीन पर हम कुछ उगा पाएंगे। हम पूरे प्रदेश में वर्षा जल को संचित करने का उपाय कर रहे हैं। इसके लिए “खेत का पानी खेत में” और “गांव का पानी गांव में” जैसे कार्यक्रम शुरू कर रहे हैं। इसके लिए किसानों को प्रोत्साहित किया जाएगा। जरूरत हुई तो एक विधेयक पारित कर इस काम को अनिवार्य किया जाएगा। वर्षा जल को रोकने से मात्र दो साल के अन्दर प्रदेश का जल-स्तर 100 फुट पर आ जाएगा।इसके लिए अलग से कोई बजट नहीं है, क्योंकि विधि, पर्यटन जैसे एकाध विभागों को छोड़कर प्राय: सभी विभाग इस अभियान में शामिल हैं। विभिन्न विभाग ही इसके लिए पैसे खर्च करेंगे।पंच-ज अभियान के कार्यकर्ता गांव-गांव में जाकर किसानों को जैविक खेती के लिए प्रेरित करेंगे और इस सम्बंध में जिस तरह की मदद चाहिए, उसकी व्यवस्था की जाएगी। दूसरी बात, जमीन से सम्बंधित कागजातों के लिए किसानों को अब पटवारियों के चक्कर नहीं काटने पड़ेंगे। हमारी मान्यता है कि मनुष्य पर जानवर कभी बोझ नहीं बनता है, बल्कि जानवर मनुष्य का पोषक होता है। पंच-ज अभियान के तहत किसानों को इन सबकी जानकारी दी जाएगी और उन्हें पशुपालन के लिए आवश्यक सुविधाएं भी उपलब्ध कराई जाएंगी। प्रत्येक गांव में एक गोशाला बनाने की भी योजना है।साथ ही, राजस्व भूमि और वन भूमि के जितने भी मामले हैं, उन्हें शीघ्र ही निपटाने का प्रयास होगा, ताकि वनों को बचाया जा सके। पेड़ों का अधिरोपण और उनकी स्वाभाविक वृद्धि के लिए भी पंच-ज अभियान नए-नए कार्यक्रमों को शुरू करेगा।प्रस्तुति: अरुण कुमार सिंह35
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