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पाठकीय

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Dec 9, 2004, 12:00 am IST
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दिंनाक: 09 Dec 2004 00:00:00

अंक-संदर्भ , 15 अगस्त, 2004पञ्चांगसंवत् 2061 वि., वार ई. सन् 2004 भाद्रपद कृष्ण 13 रवि 12 सितम्बर ,, ,, 14 सोम 13 सितम्बर अमावस्या मंगल 14 सितम्बर भाद्रपद शुक्ल 1 बुध 15 सितम्बर ,, ,, 2 गुरु 16 सितम्बर ,, ,, 3 शुक्र 17 सितम्बर ,, ,, 4 शनि 18 सितम्बर (वैनायकी श्री गणेश चतुर्थी व्रत)बात भली, पर समझे कौनस्वतंत्रता दिवस विशेषांक के सभी लेख न केवल हिन्दू समाज, बल्कि समस्त भारतवासियों का मार्गदर्शन करते हैं। श्री एम.जे. अकबर भारत को दारुल-इस्लाम मानते हैं, क्योंकि उनको यहां अपने मजहब के अनुसार जीने की आजादी है। परन्तु क्या सम्पूर्ण हिन्दू समाज उनके इस कथन से आश्वस्त हो पाएगा, विशेषकर तब जबकि पूरे विश्व में दारुल-हरब और दारुल-इस्लाम जैसी विचारधाराओं के कारण लगभग युद्ध छिड़ा हुआ है? अन्य इस्लामी देशों को तो छोड़िए, क्या भारत के मुसलमान और उलेमा उनकी इस बात से सहमत होंगे? इसी प्रकार श्री आरिफ बेग ने कहा कि आजादी की लड़ाई में पचास हजार से ज्यादा उलेमा शहीद हुए इसलिए मदरसों को शंका की दृष्टि से नहीं देखना चाहिए। यदि ऐसी बात है तो समस्त मुस्लिम जनमानस मोहम्मद अली जिन्ना के पीछे कैसे खड़ा हो गया? उलेमा गांधीजी के पीछे थे तो पाकिस्तान कैसे बन गया?-हरि सिंह महतानी89/7, पूर्वी पंजाबी बाग, नई दिल्लीपुरस्कृत पत्रफिर मनेगा “हिन्दी दिवस” का जश्न?स्वतंत्र भारत की राष्ट्रभाषा हिन्दी है और सम्पर्क भाषा यानी राजभाषा के रूप में भी हिन्दी स्वीकृत है। क्या आजादी के सत्तावन साल बाद भी हिन्दी सही मायने में राष्ट्रभाषा की मर्यादा प्राप्त कर चुकी है? भारत सरकार ने राष्ट्रभाषा के प्रचार-प्रसार में पहले जो उत्साह दिखाया था अब वह उत्साह कुछ धीमा पड़ गया लगता है। उधर सात समन्दर पार की भाषा अंग्रेजी को भारत के लोग अपनाते जा रहे हैं। मैं राष्ट्रभाषा का एक सामान्य प्रचारक हूं, एक अहिन्दी भाषी क्षेत्र से हूं। हिमालय से कन्याकुमारी तथा परशुरामकुण्ड से वाघा सीमा तक घूमने का सौभाग्य मुझे प्राप्त हुआ है। दक्षिण के पांच, पूर्व के दस और पश्चिम के पांच राज्यों को छोड़कर उत्तर भारत के सभी राज्यों की मातृभाषा हिन्दी है। परन्तु अपने अनुभव से कह सकता हूं कि अहिन्दी भाषी क्षेत्रों में हिन्दी की स्थिति इतनी नाजुक नहीं है जितनी की हिन्दी-भाषी क्षेत्रों में है। आज से तेरह वर्ष पहले हिन्दी के वरिष्ठ साहित्यकार श्री विष्णु प्रभाकर ने एक भेंट वार्ता में मुझे बताया था कि हिन्दी क्षेत्रों में वर्तमान पीढ़ी हिन्दी से दूर भाग रही है। वर्तमान हिन्दी क्षेत्रों में हिन्दी केवल दलित, गरीब, ग्रामीण तथा पिछड़े वर्ग के लोगों की भाषा के रूप में जीवित है। बाकी सबकी भाषा अंग्रेजी हो चुकी है।केन्द्र सरकार के कार्यालयों से भी हिन्दी भाषा को दूर भगाने का भरसक परोक्ष प्रयास हो रहा है। हां, केवल औपचारिकता पूरी करने के लिए प्रत्येक साल 14 सितम्बर को हिन्दी दिवस के रूप में धूमधाम से मनाया जाता है। केन्द्र सरकार के कार्यालयों, रेलवे, बैंकों तथा अन्य उपक्रमों में बहुत ही उत्साह के साथ हिन्दी दिवस, हिन्दी सप्ताह तथा हिन्दी पखवाड़ा मनाया जाता है। इसके लिए लाखों रुपए खर्च होते हैं। चाय-मिठाई की दावतें होती हैं, कहीं-कहीं स्मारिकाओं का प्रकाशन होता है। बड़े-बड़े अधिकारी, देश के नेतागण अतिथि के रूप में हिन्दी की प्रगति एवं प्रचार-प्रसार के लिए जोर-शोर से भाषण देते हैं। श्रोतागण भी तालियां बजाकर मजाक उड़ाते हैं और उसके पश्चात् हिन्दी को, जहां की तहां छोड़कर अंग्रेजी की शरण लेकर सालभर बिताते हैं। फिर हिन्दी दिवस आने तक खामोश!! पहले अंग्रेजों ने भारत को पराधीन कर रखा था और अब अंग्रेजी भाषा ने भारत को पराधीन बनाया हुआ है।-डा. देवेन चन्द्र दास202/बी, पूर्व मालीगांव,गुवाहाटी-11 (असम)——————————————————————————–हर सप्ताह एक चुटीले, हृदयग्राही पत्र पर 100 रु. का पुरस्कार दिया जाएगा।सं.विचारोत्तेजक लेखों के लिए साधुवाद! लेखन में भी आपने अल्पसंख्यकों को 30 प्रतिशत आरक्षण दिया है। अब सेकुलर अवश्य प्रसन्न होंगे। श्री एम.जे. अकबर ने मदरसा शिक्षा, गरीबी, बेकारी, अशिक्षा आदि के बारे में जो कहा है, उस पर मुसलमानों को ध्यान देना चाहिए। यदि ऐसा होगा तो सामाजिक सौहार्द और भाईचारा बढ़ेगा। मुस्लिम समाज में पहले भी अनेक लोग हुए हैं जिन्होंने सामाजिक एकता को बढ़ाने का काम किया है।-व.दा. सप्रे9, विवेकानन्द नगर, यादव कालोनी,जबलपुर (म.प्र.)कुछ लेखों से बौद्धिक सामग्री मिली, तो कुछ से लगा कि पानी सिर से ऊपर पहुंच चुका है। वर्तमान परिस्थिति में हमने क्या किया, क्या कर रहे हैं और क्या करने वाले हैं, इस सम्बंध में कोई प्रामाणिक लेख नहीं मिला। श्री एम.जे. अकबर और श्री आरिफ बेग की बातें लीपापोती जैसी लगीं।-बालकृष्ण कांकाणी6/83, निर्मल जीवन, कोपटी कालोनीठाणे पूर्व (महाराष्ट्र)श्री प्रफुल्ल गोराडिया का आलेख “फिर वही लीग, फिर वही अलगाव” चिंतन को विवश करता है। जो केन्द्र सरकार संघ को साम्प्रदायिक और विघटनकारी शक्ति बताती है वह सरकार मुस्लिम लीग का सच क्यों नहीं बताती? वह जनता को क्यों नहीं बताती यह वही मुस्लिम लीग है, जिसने देश में “प्रत्यक्ष कार्यवाही” को अंजाम देकर हमारी बहू-बेटियों की अस्मत लूटी। यह वही मुस्लिम लीग है, जिसने हिन्दुस्थान का बंटवारा किया। यह वही मुस्लिम लीग है, जिसने मुस्लिम राज्य बनाने के लिए स्वतंत्रता आंदोलन के समय पृथकतावादी अभियान चलाया। यह वही मुस्लिम लीग है, जिसने यह कहा था- “लड़कर लिया है पाकिस्तान, हंसकर लेंगे हिन्दुस्थान”।-शक्तिरमण कुमार प्रसादश्रीकृष्णानगर, पथ संख्या-17,पटना (बिहार)विद्वान लेखकों के लगभग सभी लेख चौराहे पर ठिठके देश को एक सही दिशा देते प्रतीत होते हैं। देश इस समय कांग्रेस और वामपंथ, दो बिल्कुल अलग विचाराधारओं के बीच फंसकर दिशा का भान करने की कोशिश करता दिखता है। अब तो ऐसा लगने लगा है कि इस देश को आतंकवाद से अधिक खतरा उन सेकुलर तालिबानों से है, जो केवल अल्पसंख्यक तुष्टीकरण को अपना एकमात्र उद्देश्य बनाए हुए हैं।-रमेश चन्द्र गुप्तानेहरू नगर, गाजियाबाद (उ.प्र.)”स्वतंत्रता दिवस विशेषांक” सही अर्थ में “चेतावनी अंक” है। देश और समाज को तोड़ने वाली तथा जोड़ने वाली शक्तियों के बीच चल रहे संग्राम में पाञ्चजन्य का घोष “परित्राणाय साधूनाम्, विनाशाय च दुष्कृताम्…….. होता रहे।-डा. नारायण भास्कर50, अरुणा नगर, एटा (उ.प्र.)मैं उन लेखकों से सहमत नहीं हंू, जो मदरसों के पक्ष में तर्क देते हैं। अगर मदरसे स्वच्छ दृष्टिकोण रखते तो उन्हें शंका की दृष्टि से देखा ही नहीं जाता। कृपया बताएं कि पाकिस्तान सहित सभी मुस्लिम देशों की मदरसा शिक्षा प्रणाली और भारत की मदरसा शिक्षा प्रणाली किस प्रकार अलग है? वास्तविकता तो यह है कि हर जगह मदरसा शिक्षा प्रणाली एक है, चाहे अफगानिस्तान हो, पाकिस्तान हो या अन्य कोई मुस्लिम देश अथवा भारत, हर जगह मदरसों पर अंगुली उठाई जाती है। यानी अवश्य कहीं कोई दाग है।-प्रभाकर शांडिल्यखुशीदत्त द्वारी लेन, वैद्यनाथधाम, देवघर (झारखण्ड)श्री शाहनवाज हुसैन ने अपने लेख में मुसलमानों से कहा है कि वे सोचें कि कांग्रेस के राज में गरीब व पिछड़े क्यों रहे? ऐसा सवाल मुसलमानों से अनेक बार पूछा जाता है पर मुसलमान बन्धु इस सवाल पर विचार करने की जरूरत नहीं समझते। भाजपा की लाख कोशिशों के बावजूद भी उन्होंने भाजपा के खिलाफ ही वोट दिया। गरीबी व पिछड़ेपन के सम्बंध में कुरान की आयतें कहती हैं कि यह अल्लाह की मर्जी है कि किस मुसलमान को कितनी रोजी-रोटी मिलनी है। अत: मुसलमानों के लिए चुनावों में यह विषय कभी मुद्दा नहीं होता।-सुकन्या घोषचितरंजन पार्क, नई दिल्लीसरस्वती के ये शिशु मंदिर12 अगस्त के समाचार पत्रों में मानव संसाधन विकास मंत्री श्री अर्जुन सिंह का तालिबानी फरमान कि सरस्वती शिशु मंदिरों पर शिकंजा कसेंगे, पढ़कर कष्ट हुआ। तालिबान हुक्मरानों ने बामियान में महात्मा बुद्ध की प्रतिमा को तोपों से उड़ा दिया था। उनका अन्त कैसे हुआ? उसी तरह का आदेश श्री अर्जुन सिंह ने दिया है। अभी भी उनकी मानसिकता अंग्रेजों के गुलाम राजबाड़ों की बनी हुई है। उनकी जानकारी के लिए मैं बता दूं कि सरस्वती शिशु मंदिरों में राष्ट्रीय शैक्षिक अनुसंधान एवं प्रशिक्षण परिषद् की पाठ पुस्तकों को ही पढ़ाया जाता है और केन्द्रीय माध्यमिक शिक्षा बोर्ड के सभी नियम लागू होते हैं। इन विद्यालयों का सरकारी शिक्षाधिकारियों द्वारा हर वर्ष निरीक्षण भी किया जाता है। हमारी शिक्षा का उद्देश्य भारतमाता के प्रति समर्पण का भाव जागृत करना है। हर विद्यालय में भारत माता पूजन करवाया जाता है। सरस्वती शिशु मंदिरों में नारी को अबला न कहकर पूजनीया माता-बहन और पुत्री सा सम्मान देने की शिक्षा दी जाती है, जो आज के समय में अति आवश्यक है। वर्ष में एक बार प्रत्येक विद्यालय में “मातृत्व-सम्मेलन” करवाए जाते हैं। हमारे विद्यालयों में ग्रामीण, वनवासी, गिरी, कन्दराओं एवं झुग्गी-झोपड़ियों में निवास करने वाले दीन-दु:खी, अभावग्रस्त बालक-बालिकाओं को शिक्षा दी जाती है, ताकि वे अपने-अपने क्षेत्र में जाकर वहां लोगों को सामाजिक कुरीतियों से मुक्त कराकर राष्ट्र जीवन को समरस, सुसम्पन्न एवं राष्ट्रभक्त बनाने का कार्य कर सकें। इन विद्यालयों में ऊंच-नीच, भेद-भाव, जाति-पाति और राजनीति निरपेक्ष होकर सभी वर्गों के बच्चों को शिक्षा दी जाती है। शिशु मंदिरों में मुस्लिम, सिख एवं ईसाई मत के बच्चे भी पढ़ते हैं। मतान्धता का ठप्पा लगाने वालों के लिए इन विद्यालयों के द्वार खुले हुए हैं, कोई भी इनका निरीक्षण कर सकता है। सारांश में कहा जा सकता है कि सरस्वती शिशु मंदिरों की प्रतिष्ठा सारे देश में स्थापित हो चुकी है। कोई कैसा भी तालिबानी फरमान जारी करे, ये विद्यालय राष्ट्रहित में कार्यरत रहेंगे।-नरेश धींगरामंत्री, समर्थ शिक्षा समिति (पश्चिमी विभाग)सेकुलरवादी रोगसावरकर को कर रहे, अपमानित वे लोगजिनके सिर पर है चढ़ा, सेकुलरवादी रोग।सेकुलरवादी रोग, नहीं क्या सहा उन्होंनेक्रान्ति-ज्वाला सुलगायी फिर भीसदा जिन्होंने।कह “प्रशांत” जो थूक फेंकते हैं सूरज परमत भूलें, वह गिरती है उनके ही मुंह पर।।-प्रशांत सूक्ष्मिकापायदानदेखता हूं,जब-जब आईनासफेदीमुंह चिढ़ाती है…उम्र की आखिरीपायदान काकम्बख्तअहसास कराती है…।।-अमर पेन्टर “मलंग”गणेश चौक, कटनी (म.प्र.) 27

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