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हज मंत्री या विदेश राज्यमंत्रीसोनिया गांधी इसलिए महान नहीं हैं कि वे कांग्रेस की अध्यक्षा हैं और नई बनी संयुक्त प्रगतिशील गठबंधन (संप्रग) सरकार की शिल्पी हैं, बल्कि वे इसलिए महान हैं कि जो काम उनके नाना सुसर पंडित जवाहर लाल नेहरू, सास श्रीमती इंदिरा गांधी और पति राजीव गांधी नहीं कर सके, वह काम उन्होंने कर दिखाया। जब से आजाद भारत की संसद स्थापित हुई है तब से किसी का साहस नहीं हुआ कि वह मुस्लिम लीग को अपनी सरकार में शामिल कर उसके सांसद को मंत्री पद पर आसीन कर सके। उल्लेखनीय है कि संप्रग सरकार में मुस्लिम लीग भी शामिल है। उसको मात्र एक स्थान मिला है। उसके सांसद इब्राहीम अहमद को मनमोहन सिंह की सरकार में राज्यमंत्री का पद दे दिया गया। यह किसी को बताने की आवश्यकता नहीं है कि मुस्लिम लीग ने स्वतन्त्रता आन्दोलन में क्या किया था? जिस पार्टी के मजहबी उन्माद ने देश का विभाजन करवाया, जिस कारण लाखों निर्दोष इंसानों का कत्लेआम हुआ और असंख्य लोग अपने घरों को छोड़कर निर्वासित जीवन जीने के लिए मजबूर हो गए, उसी मुस्लिम लीग के सांसद को केन्द्र सरकार में मंत्री के रूप में स्थान देना भारतीय राजनीति की सबसे बड़ी शोकांतिका है।इब्राहीम अहमद ने मंत्री बनते ही अपना पहला विदेशी दौरा सऊदी अरब का किया है। उनका कहना है कि वे हज यात्रा को लेकर सऊदी अरब के राजकीय दौरे पर गए थे। ई.अहमद के लिए सबसे मनभावन स्थान सऊदी अरब है। यदि आपको विश्वास न हो तो हज यात्रा पर प्रतिवर्ष जाने वाले प्रतिनिधिमण्डल की सूची देख लीजिए। वे केरल में रहें या दिल्ली में, वे सांसद हों या न हों लेकिन उनका नाम हज प्रतिनिधिमंडल में हमेशा दर्ज रहा है। इस बार भी वे अपने बेटे और बहू के साथ मक्का-मदीना की यात्रा कर आए हैं। वे हज के नाम पर मुफ्त यात्रा जरूर कर आते हैं। और वहां इस बहाने चंदा वसूल करने के लिए पहुंच जाते हैं। दक्षिण भारत के लोग, जो सऊदी में काम कर रहे हैं, उनसे कभी मुस्लिमों के कालेज के नाम पर तो कभी अस्पताल और अनाथालय के नाम पर रुपया मांगते हैं। झोली भरकर वे वापस लौट आते हैं।उन्होंने अब तक चंदे के रूप में कितना धन एकत्रित किया और केरल अथवा देश के किस भाग में कितना खर्च किया, इसका ब्यौरा न तो उनके पास है और न ही कोई अन्य व्यक्ति जानता है। एक हाजी का तो कहना था कि हज पर जाने वाले के लिए चालीस नमाज पढ़ना अनिवार्य होता है लेकिन इन महोदय को तो कभी काबा शरीफ में भी किसी ने नहीं देखा है।इब्राहीम अहमद का प्रयास है कि हज सब्सिडी को यथावत रखा जाए और पिछली सरकार ने सब्सिडी के संबंध में जो शर्तें रखी थीं, उन्हें भी हटा दिया जाए। उल्लेखनीय है कि वाजपेयी सरकार ने आयकर भरने वाले और एक से अधिक बार हज यात्रा पर जाने वाले व्यक्ति के लिए अनुदान की राशि पर प्रतिबंध लगा दिया था लेकिन इब्राहीम अहमद अब सब कुछ हटाकर अनुदान की राशि को अधिक बढ़ाने का प्रयास कर रहे हैं। अहमद साहब हज यात्रा के मामले में इतने चिंतित और गंभीर हैं यह प्रसन्नता की बात है। लेकिन वे केवल हज के मंत्री नहीं हैं, इस बात पर भी उन्हें विचार करना चाहिए।विदेश मंत्रालय का हज प्रकोष्ठ तो एक साधारण बात है। सम्पूर्ण देश के लिए वे बात करेंगे तो उनके लिए एक अच्छी शुरुआत होगी। लीगी मंत्री देश की कितनी चिंता करते हैं, यह कुछ ही दिनों में मालूम हो जाएगा।पाकिस्तान, हुर्रियत और भारतभारत और पाकिस्तान के बीच द्विपक्षीय सचिवस्तरीय वार्ता में तीसरे पक्ष के रूप में हुर्रियत कांन्फ्रेंस के प्रतिनिधियों की मौजूदगी सबको हैरत में डालने वाली थी। आखिर पाकिस्तान के विदेश सचिव रियाज खोखर वार्ता के दौरान हुर्रियत नेताओं की उंगली क्यों थामे रहे? यह सवाल बार-बार पूछा जा रहा है। और उस पर विदेश मंत्रालय की चुप्पी! आखिर क्यों? पूर्व विदेश मंत्री श्री यशवन्त सिन्हा ने विदेश मंत्रालय की इस कदर चुप्पी पर हैरानी जताते हुए कहा कि आखिर हुर्रियत को इतनी अहमियत क्यों? क्या राष्ट्रविरोधी मानसिकता वाले हुर्रियत नेताओं की द्विपक्षीय वार्ता में उपस्थिति से उन लोगों के हौंसले बुलंद नहीं होंगे जो त्रिपक्षीय वार्ता के पैरोकार हैं, और चाहते हैं कि भारत-पाकिस्तान के बीच आधिकारिक वार्ता में हुर्रियत भी एक पक्ष बनकर मौजूद रहे? श्री सिन्हा ने दोनों देशों द्वारा जारी संयुक्त वक्तव्य में शिमला समझौते और संयुक्त राष्ट्र संघ के प्रस्ताव का उल्लेख करते हुए कहा कि इससे हमारी वह नीति कमजोर होगी, जिस पर हम अड़े रहे हैं कि दोनों देशों के बीच विभिन्न विवादों का समाधान द्विपक्षीय वार्ता से ही निकलेगा। इससे तो पाकिस्तान की वार्ता को त्रिपक्षीय बनाने की मांग को और बल मिलेगा।36
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