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मीडिया जगत के कुछ प्रेरक उदाहरणसमाचार ही नहीं, सेवा भी-अरुण कुमार सिंहनाम- बसंती मंडल, ग्राम – आशिया, जिला- जगतसिंहपुर (उड़ीसा)। 1999 में आए विनाशकारी चक्रवात के कारण उनके पति चल बसे। साथ ही उनका छोटा-सा फूस का घर भी ढेर हो गया। चक्रवात के बाद कई महीने तक उन्हें अपने दो बच्चों के साथ खुले आसमान के नीचे हाड़ कंपा देने वाली ठंड में रातें काटनी पड़ीं। सरकार ने घर बनाने के नाम पर उन्हें मामूली-सी धनराशि दी, पर उस राशि से दीवारें भी अच्छी तरह खड़ी न हो पायीं। अचानक एक दिन उनके पास केयर टुडे (इंडिया टुडे) का एक दल पहुंचा। दल ने उनका दु:ख-दर्द सुना और शीघ्र ही घर बना देने का आश्वासन दिया। यह आश्वासन उन्हें एक सपने जैसा लगा। पर कुछ दिन बाद जब केयर टुडे की सहायता से उनके लिए एक सुन्दर-सा घर तैयार हुआ तो उन्हें लगा कि यह आश्वासन सपना नहीं, एक हकीकत है।नई दिल्ली के तिलक नगर क्षेत्र में रहने वाली परमीत कौर का 1984 के सिख-विरोधी दंगों के दौरान भरा-पूरा परिवार दंगाइयों का शिकार हो गया। घर राख के ढेर में तब्दील हो गया और कई वर्षों तक मुसीबत ने उनका पीछा नहीं छोड़ा। अन्तत: कुछ सरकारी पैसे और दैनिक पंजाब केसरी की सहायता से उनकी छत और रोजी-रोटी कमाने की व्यवस्था हो पाई।ये कुछ ऐसे उदाहरण हैं, जो यह सिद्ध करते हैं कि मीडिया केवल समाचार ही नहीं देता, बल्कि सेवा-कार्य भी करता है। आज मीडिया पर बाजारवाद हावी होने, संवेदनशून्य होने, अश्लीलता परोसने, मूल्यहीनता में गिरावट जैसे आरोप लगाए जा रहे हैं। पर इन आरोपों के बीच मीडिया का सेवा-कार्य लोगों को यह आभास दिलाता है कि मीडिया संवेदनशून्य नहीं, बल्कि संवेदना से भरा हुआ है।देश के किसी भी कोने में आपदा आने पर ये समाचारपत्र अपने पाठकों से पैसा एकत्र करते हैं और कुछ अपने संसाधनों के बल पर ही पीड़ितों की सहायता करने हेतु आगे आते हैं। ये पत्र या तो अपने कार्यकर्ताओं के माध्यम से पीड़ितों की सहायता करते हैं या प्रधानमंत्री राहत कोष, राष्ट्रीय सुरक्षा कोष, मुख्यमंत्री आपदा प्रबंधन कोष आदि में इसे जमा कराते हैं।कई बड़े समाचारपत्रों ने तो इसके लिए अलग से एक विभाग ही खोल रखा है, जिसमें लगभग 15-20 लोग काम करते हैं। इनकी विश्वसनीयता भी ऐसी कि एक आह्वान पर पाठक इन्हें लाखों रुपए दान दे देते हैं। वरिष्ठ साहित्यकार डा. महीप सिंह मीडिया के इस कार्य को “भारतीय संस्कृति की देन” की संज्ञा देते हुए कहते हैं, “मीडिया का यह कार्य प्रशंसनीय है, क्योंकि इससे उन लोगों को सहायता मिलती है जो सहायता के पात्र हैं। साथ ही मीडिया समाज के एक बड़े वर्ग को पीड़ितों की सहायता करने का अवसर उपलब्ध कराता है।”नई दिल्ली का दिल कहे जाने वाले कनाट प्लेस में एक छापाखाने के मालिक सतीश लूथरा कहते हैं, “पिछले 15 साल से मैं अखबारों के आह्वान पर उन्हें पैसे देता आ रहा हूं। कारोबार में व्यस्तता के कारण मैं स्वयं किसी पीड़ित की सहायता नहीं कर पाता पर अखबारों के माध्यम से मैं अपनी इस इच्छा की पूर्ति करता हूं।” जाने-माने साहित्यकार श्री नरेन्द्र कोहली पाञ्चजन्य और कुछ राष्ट्रवादी संगठनों के आह्वान पर समय-समय पर कुछ न कुछ दान करते रहे हैं। उनका कहना है, “धर्मान्तरण को रोकने और हिन्दू हित के लिए प्रत्येक हिन्दू को कुछ न कुछ दान देना चाहिए।” कई ऐसे पत्र भी हैं जो विधवाओं, निर्धन छात्रों और विकलांगों को आर्थिक सहायता देते हैं। यहां हम कुछ प्रमुख समाचारपत्रों द्वारा समाज सेवा में दिए गए योगदान का विवरण प्रस्तुत कर रहे हैं।दैनिक पुढारी (मराठी)पुढारी द्वारा बर्फ से ढंके सियाचिन में निर्मित अस्पताल1939 में कोल्हापुर से शुरू हुए मराठी दैनिक “पुढारी” का केवल महाराष्ट्र के विकास में ही नहीं अपितु देश के विकास में भी महत्वपूर्ण योगदान है। चाहे देश में आई कोई प्राकृतिक विपदा हो, समाज या भाषा का विकास अथवा देवस्थान का जीर्णोद्धार-हर क्षेत्र में पुढारी ने योगदान दिया है। स्थानीय स्तर पर सेवा-कार्य शुरू करने वाले इस दैनिक ने 1963-64 में अपने सेवा-कार्यों का क्षेत्र बढ़ाया। कोइनडैम (सतारा) में आए भूकम्प से पीड़ित लोगों की सेवा के लिए उस समय पुढारी परिवार ने आगे रहकर कार्य किया। पीड़ितों के पुनर्वास तथा भोजन आदि की व्यवस्था इस पत्र ने की थी। इसके बाद पुढारी ने सेवा कार्यों की एक श्रृंखला चलायी। समाज में साम्प्रदायिक सौहार्द बनाए रखने के लिए हिन्दू, मुस्लिम, ईसाई और बौद्ध पंथ के अनेक उपासना स्थलों के जीर्णोद्धार में हाथ बंटाया। प्रसिद्ध ज्योतिबा देवस्थान के जीर्णोद्धार हेतु इस पत्र ने अपने पाठकों से 5 करोड़ रुपए एकत्र करके उसे नया रूप दिया। आज यह स्थान महाराष्ट्र का एक प्रमुख धार्मिक और पर्यटन केन्द्र बन चुका है।1993 के लातूर भूकम्प के समय “पुढारी” ने लगभग 15 लाख रुपए एकत्र कर भूकम्प पीड़ितों की सेवा की थी। भूकम्प से तबाह हुए गुजरात के कच्छ जिले में इस पत्र ने एक करोड़ रु. की लागत से एक चिकित्सालय का निर्माण कराया है। पुढारी के सेवा-कार्यों की उस समय भूरि-भूरि प्रशंसा हुई जब इसने नवम्बर, 2001 में सियाचिन में लगभग 2.50 करोड़ रुपए की लागत से सैनिकों के लिए एक चिकित्सालय का निर्माण कराया। पुढारी के प्रबंध सलाहकार श्री वसन्त सप्रे के अनुसार कारगिल युद्ध से प्रभावित सैनिकों की सहायतार्थ पुढारी ने जब अपने पाठकों से सहयोग देने की अपील की तो पहले सप्ताह में ही 1 करोड़ से ज्यादा की राशि एकत्र हो गई। धीरे-धीरे यह राशि 2.50 करोड़ तक पहुंच गई और रक्षा मंत्री श्री जार्ज फर्नांडीस की सलाह पर सियाचिन क्षेत्र में सैनिकों के लिए यह अत्याधुनिक चिकित्सालय बनवाया गया। 75 शैयाओं वाला यह चिकित्सालय आज सियाचिन जैसे दुर्गम क्षेत्र में तैनात सैनिकों के लिए संजीवनी के समान है।दैनिक पुढारी के कुछ महत्वपूर्ण सेवा कार्यमहाराष्ट्र में ज्योतिबा देवस्थान के जीर्णोद्धार हेतु-5,00,00,000
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