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चर्चा-सत्र

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Nov 7, 2004, 12:00 am IST
in Archive
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दिंनाक: 07 Nov 2004 00:00:00

प्रो. बलराज मधोक

पूर्व सांसद

दागी मंत्री

नैतिकता और मर्यादा

संयुक्त प्रगतिशील गठबंधन सरकार के मंत्रिमण्डल में कुछ दागी सांसदों के मंत्री बनने के बाद संसद के अन्दर और बाहर गर्मागर्म बहस चली। यह उचित भी है। दागी और अपराधी लोगों को मंत्री बनाने से न केवल सरकार की छवि बिगड़ती है, अपितु शासन की गुणवत्ता और प्रामाणिकता पर भी अंगुली उठने लगती है। यह न देशहित में है, न जनहित में है और न सत्तारूढ़ दल के हित में!

परन्तु यह कोई नई बात नहीं है। जबसे देश स्वतंत्र हुआ है, सत्ता में इस प्रकार के लोग आते रहे हैं, जो नैतिकता की दृष्टि से उन पदों के अनुरूप नहीं थे। इसकी शुरुआत स्वयं महात्मा गांधी ने पं. जवाहर लाल नेहरू को सरदार वल्लभ भाई पटेल से ऊंचे पद पर बैठाकर की थी। सरदार पटेल आयु में बड़े और चरित्र तथा प्रामाणिकता की दृष्टि से बेजोड़ थे। वैचारिक दृष्टि से भी उनका चिन्तन महात्मा गांधी के चिन्तन के अधिक निकट था। इसके विपरीत व्यक्तिगत जीवन के संदर्भ में पं. जवाहर लाल नेहरू पर अंगुली उठती रहती थी। वैचारिक दृष्टि से उनका चिन्तन, कम से कम आर्थिक मामलों में, गांधी जी के चिन्तन से कोसों दूर था। माना जाता है कि पं. नेहरू के शेख अब्दुल्ला और श्रीमती माउन्टबेटन के हाथों में खेलने के पीछे उनकी चारित्रिक कमजोरियों का भी हाथ था। ये बातें छिपी हुई नहीं हैं। संभवत: इसी स्थिति को भांपते हुए पं. नेहरू ने राजनेताओं के व्यक्तिगत जीवन और सार्वजनिक जीवन को अलग-अलग देखने और आंकने पर जोर दिया। इसका दुष्परिणाम स्पष्ट है और इसे ही भारत के राजनीतिक जीवन में भ्रष्टाचार की शुरूआत माना जाता है। संभवत: इसी कारण विभिन्न दलों में चरित्रहीन और दागी नेता पं. नेहरू को अपना आदर्श बनाकर अपने अवगुणों पर पर्दा डालते रहे हैं।

नैतिक दृष्टि से जब व्यक्ति का पतन शुरू होता है तो वह कहां जाकर रुकेगा, यह कहना कठिन है। नैतिक दुर्बलता का अपराधीकरण अगला कदम है। जो राजनेता अपना नैतिक आधार छोड़ देते हैं, वे देर-सवेर अन्य प्रकार के भ्रष्टाचार और अपराधीकरण में लिप्त हो जाते हैं। वे अपनी इन कमजोरियों को प्रगतिवाद और सेकुलरवाद के नाम पर छुपाने में भी सफल होते रहे हैं।

इस स्थिति को बनाए रखने और अधिक बिगाड़ने में मीडिया और अदालतों की भूमिका भी नकारात्मक रही है। वे नेताओं की नैतिक दुर्बलताओं को न केवल छिपाते रहे, अपितु उनमें से जो भी सत्ता में आया, उसे हार पहनाते रहे और उसका गुणगान करते रहे। इसके विपरीत पश्चिमी देशों, जिनकी सभ्यता स्वच्छन्दता की पोषक मानी जाती है, के मीडिया की भूमिका ज्यादा रचनात्मक और जागरूकतापूर्ण रही है। चर्चिल और रोनाल्ड रीगन जैसे नेताओं, जिनका व्यक्तिगत और पारिवारिक जीवन नैतिकता और शुद्धता के अनुरूप रहा, को मीडिया ने अधिक महत्व दिया और बिल क्लिंटन जैसे नेताओं, जिन पर नैतिकता के विपरीत आचरण के आरोप लगे, की इस हद तक खिंचाई की गई कि उनको अपने पद पर बना रहना कठिन हो गया। कई बार लगता है कि हमारे देश में तथाकथित नेहरूवादी नेता, जो कल तक सत्ता में रहने के कारण मालाएं पहनवाते रहे, यदि इंग्लैण्ड और अमरीका में होते तो उनकी क्या दुर्गति होती?

हमारी न्याय प्रणाली और दण्ड विधान की कमियों के कारण दोषी और अपराधी नेता बार-बार कानून के फंदे से बचते रहे हैं। बिहार से बने कुछ दागी मंत्रियों का इतिहास इस दृष्टि से विचारणीय है। जिन तस्लीमुद्दीन को आपराधिक आचरण के कारण श्री देवेगौड़ा के प्रधानमंत्रित्वकाल में मंत्रिमण्डल से निकलना पड़ा था, वह आज तक उन अपराधों के लिए दण्डित नहीं हुए, क्योंकि न्यायालयों ने अपना समुचित कर्तव्य नहीं निभाया और मामलों को लटकने दिया। फलत: वह अब फिर मंत्री बन गए।

ऐसी स्थिति को यदि बदला न गया तो कल कोई अपराधी देश का प्रधानमंत्री भी बन सकता है। तब इस देश के लोकतंत्र और शासन का क्या होगा? इस बात पर न केवल देश के राजनेताओं और लेखकों-पत्रकारों को गंभीरता से सोचना होगा अपितु साधारण विचारवान लोगों को भी सतर्क रहना होगा।

यह देश का सौभाग्य है कि इस समय प्रधानमंत्री पद पर एक ऐसे व्यक्ति आसीन हैं, जिनकी निष्ठा पर कोई अंगुली नहीं उठा सकता। डा. मनमोहन सिंह की यह छवि नई सरकार का सबसे बड़ा संबल है, परन्तु दुर्भाग्य से मनमोहन सिंह अभी अपने पांव पर नहीं खड़े हैं। उन्हें इस स्थिति को बदलना होगा।

राष्ट्रपति की भी इस मामले में विशेष जिम्मेदारी और भूमिका है। हमारे संविधान के अनुसार राष्ट्रपति पहले प्रधानमंत्री को नियुक्त करता है और फिर प्रधानमंत्री के सुझाव पर अन्य मंत्रियों को नियुक्त करता है। राष्ट्रपति से अपेक्षा की जाती है कि नियुक्ति करने से पहले वे मंत्रियों की पृष्ठभूमि और छवि पर भी ध्यान दें। मैं व्यक्तिगत अनुभव के आधार पर कह सकता हूं कि पूर्व राष्ट्रपति डा. सर्वपल्ली राधाकृष्णन ने इस दृष्टि से अपनी जिम्मेदारी को न केवल समझा था, अपितु दृढ़ता से निभाया भी था। देश की जनता राष्ट्रपति डा. अब्दुल कलाम से अपेक्षा करती है कि वे भी डा. राधाकृष्णन की तरह अपनी जिम्मेदारी को समझें और दृढ़ता से उसका निर्वाह करें। न केवल अपराधी और दागी मंत्रियों को मंत्रिमण्डल से निकालना होगा, अपितु अन्य मंत्रियों के व्यक्तिगत जीवन और नैतिक छवि की भी छानबीन करनी होगी। भ्रष्टाचार पानी की तरह ऊपर से नीचे की ओर आता है। इसलिए यदि देश के प्रशासन को भ्रष्टाचार से मुक्त करना है तो सत्ता के केन्द्र और मंत्रियों के जीवन पर नैतिकता का अंकुश लगाना होगा। राजनेताओं का जीवन भी धर्म अथवा नैतिक मूल्यों से बंधा होना चाहिए। धर्मविहीन अथवा नैतिकताविहीन राजनीति किसी भी देश के लिए अभिशाप बन सकती है।

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