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-सूर्यकान्त बालीभले ही आजकल कथावाचकों की वाणी सुनने के लिए हजारों की भीड़ जमा होती हो और भले ही तीर्थ-यात्राओं और विशिष्ट पीठों-मंदिरों की यात्राओं के लिए लाखों लोग उमड़ पड़ते हों और भले ही कैलास मानसरोवर जैसी दुरूह यात्राओं में भी उम्र और सेहत का ख्याल न रख
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