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लाहौर के बाद मुल्तान में जब क्रिकेट प्रेमी नफरत और शिकायतें भूलकर क्रिकेट खेल रहे थे तो जनरल परवेज मुशर्रफ ने एक टी.वी. साक्षात्कार में धमकी दे डाली कि अगर जुलाई-अगस्त तक कश्मीर का समाधान नहीं निकला तो वे शान्ति-वार्ता से हाथ खींच लेंगे।
नवाज शरीफ के समय लाहौर बस यात्रा से पैदा हुए शान्ति के माहौल को भी इन्हीं मुशर्रफ ने सहन नहीं किया था और तुरन्त कारगिल में खंजर घोंपा था। एक लम्बा युद्ध, सैकड़ों जवानों की शहादत, आसेतु हिमालय देशभक्ति का अनूठा ज्वार और पाकिस्तान को सबक सिखाने की कसमें। सब भुलाकर हमने फिर आगरा किया, फिर 13 दिसम्बर हुआ, फिर हमने कसमें खार्इं, सरहद पर सेना भेजी, 7 हजार करोड़ रुपया खर्च किया, फिर सबको बैरकों में वापस बुला लिया और अब खिलाड़ी भेजे। क्या माहौल बना साहब!! सब बह गए!!! पाकिस्तान अच्छा है, सुन्दर है, प्यारा है, मोहब्बती है, मिलनसार है। वहां तो साहब अपना खाना, अपना बजाना, अपना गाना।
यह हिन्दू मन भी कितना भोला और सहज विश्वासी होता है। चलिए मुल्तान के सुल्तान अपने अनिल कुम्बले, वीरेन्द्र सहवाग और इरफान पठान की कुशलता और दीर्घायु की कामना करते हुए इस क्रिकेट के हवाई उफान के बाद जमीन का खुरदुरा सच क्या महसूस होगा, इसके बारे में सोचना अब ज्यादा जरूरी हो गया है।
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