केरल शिक्षा पर शिकंजा किसका?
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केरल शिक्षा पर शिकंजा किसका?

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Nov 1, 2004, 12:00 am IST
in Archive
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दिंनाक: 01 Nov 2004 00:00:00

ईसाई गुटों और मुस्लिम कट्टरवादियों का-प्रदीप कुमारकेरल की कांग्रेसनीत संयुक्त लोकतांत्रिक मोर्चा सरकार भी वही गलतियां कर रही है जो इससे पूर्व माकपा के नेतृत्व में बनी वाम लोकतांत्रिक मोर्चा सरकार करती रही थी। एंटनी सरकार केरल के शिक्षा क्षेत्र में दबदबा रखने वाले अल्पसंख्यक समूहों द्वारा संचालित विद्यालयों और महाविद्यालयों को खुले हाथों से अनुदान दे रही है। इससे राज्य में गंभीर वित्तीय संकट पैदा हो सकता है। वास्तव में दोनों मोर्चों का मुख्य उद्देश्य अल्पसंख्यकों, विशेषकर मुसलमान और ईसाइयों को खुश करना है, चाहे इसके लिए राजकोष की बलि ही क्यों न चढ़ानी पड़े।मुस्लिमबहुल मल्लप्पुरम जिले को विशेष लाभशिक्षण संस्था का प्रकार कुल मल्लप्पुरमशिक्षण संस्थान जिले में शिक्षण संस्थानगैर अनुदानित विद्यालय 445 84प्रस्तावित बी.एड. महाविद्यालय 75 38शिक्षक प्रशिक्षण संस्थान 72 17और सुधार हेतु गैर अनुदानित विद्यालय 76 11रोजगारपरक विकास पर ध्यान देने की बजाय, एंटनी सरकार गत ढाई वर्ष से शिक्षा क्षेत्र में ही योजनाएं बनाने में लगी है, जिनमें से अधिकांश पर विवाद भी प्रारंभ हो गया है। आश्चर्यजनक रूप से सरकार की अनेक पहलों पर या तो अदालत द्वारा रोक लगा दी गई है या वित्त विभाग ने उनका विरोध किया है।इन विवादास्पद निर्णयों में 292 उच्च प्राथमिक विद्यालयों में और सुधार करने, 35 मदरसों को अनुदान प्रदत्त विद्यालयों में बदलने की कोशिश, व्यावसायिक शिक्षा के 100 उच्च माध्यमिक विद्यालयों और 75 बी.एड. महाविद्यालयों को स्वीकृति तथा 72 शिक्षक प्रशिक्षण संस्थानों को अनापत्ति प्रमाणपत्र जारी किए जाने जैसे निर्णय शामिल हैं। सूची इससे भी लंबी है।हाल ही में सामान्य शिक्षा विभाग ने अनुदान न पाने वाले 445 विद्यालयों की सूची बनाई जिन्हें इसी शैक्षिक सत्र में मान्यता दी जानी है। इनमें से अधिकांश विद्यालय प्रभावी ईसाई या मुस्लिम गुटों द्वारा संचालित हैं। इस निर्णय के काफी दूरगामी परिणाम हो सकते हैं, क्योंकि इससे अनेक अनुदान प्राप्त और सरकारी विद्यालयों को गंभीर आर्थिक संकट झेलना पड़ेगा।इस सूची के सर्वाधिक 84 विद्यालय मुस्लिमबहुल मल्लप्पुरम जिले में हैं। ऐसा समझा जाता है कि राज्य के शिक्षा मंत्री के कार्यालय का यह दबाव था कि इस सूची में उन विद्यालयों के नाम रखे जाएं जिनका प्रबंधन इंडियन यूनियन मुस्लिम लीग के कार्यकर्ताओं या नेताओं के हाथ में है। उल्लेखनीय है कि शिक्षा मंत्री भी स्वयं मुस्लिम लीग के ही नेता हैं। इसी प्रकार जिन 72 शिक्षक प्रशिक्षण संस्थानों को अनापत्ति प्रमाणपत्र दिया जाना है, उनमें से भी अधिकांश मुस्लिम न्यासों द्वारा संचालित हैं।इससे पूर्व जिन 292 अनुदान प्राप्त और सरकारी उच्च प्राथमिक विद्यालयों को उच्च विद्यालय में परिवर्तित करने की योजना बनाई गई थी, इनमें से केवल 81 ही सरकारी विद्यालय हैं। शेष अनुदान प्राप्त विद्यालयों में से अधिकांश के प्रबंधन पलक्कड, मल्लप्पुरम, कोझिकोड, कण्णूर और कासरगोड के मुस्लिम लीगी नेताओं के हाथों में हैं। हालांकि विभिन्न हिन्दू संगठनों के कड़े प्रतिरोध और वित्त विभाग के विरोध के कारण यह योजना अंतत: रोक दी गई। इसी प्रकार 35 मदरसों को अनुदान देने के निर्णय पर उच्च न्यायालय ने रोक लगा दी। ये मदरसे मुस्लिमबहुल पलक्कड, मल्लप्पुरम, कण्णूर और कासरगोड जिलों में केन्द्र सरकार की क्षेत्रीय सघन विकास योजना के तहत मिली आर्थिक सहायता से चलाए जा रहे थे। साथ ही कुछ शक्तिशाली समुदाय के संगठनों को बारहवीं कक्षा के 10 विद्यालय खोले जाने की अनुमति पर भी न्यायालय ने रोक लगा दी है। अदालती रोक के बाद अब सरकार ने कण्णूर जिले में अल्पसंख्यक शिक्षण संस्थानों को विद्यालय खोलने की अनुमति देने का निर्णय किया है। शिक्षा विभाग द्वारा 100 नए व्यावसायिक उच्च माध्यमिक विद्यालय खोलने की योजना अभी विचाराधीन है। योजना थी कि इनमें से 50 विद्यालय सरकारी होंगे और 50 अनुदान प्राप्त। अधिकांश विद्यालय मुस्लिमबहुल मलाबार क्षेत्र में खोले जाएंगे।यह दुर्भाग्यपूर्ण ही है कि इन विद्यालयों को स्थापित करने का 75 प्रतिशत खर्च केन्द्रीय मानव संसाधन विकास मंत्रालय द्वारा उपलब्ध कराया जाएगा। लेकिन योजनावधि समाप्त होने के बाद विद्यालयों के रख-रखाव पर राज्य सरकार को ही खर्च करना होगा। इससे राज्य के वित्त विभाग पर अतिरिक्त आर्थिक बोझ आ जाएगा और इसलिए राज्य का वित्त विभाग इस योजना का विरोध कर रहा है। इससे पूर्व मल्लप्पुरम जिले में 38 बी.एड. महाविद्यालयों को अनापत्ति प्रमाणपत्र दिए जाने का शिक्षा मंत्रालय का निर्णय भी विवादों में घिर गया है। इस निर्णय का विरोध करने के कारण महाविद्यालयीन शिक्षा के निदेशक का अनायास स्थानांतरण कर दिया गया।एक अन्य घटना में शिक्षा विभाग ने अत्यंत निर्लज्जतापूर्वक सभी नियम कानूनों को धता बताते हुए 31 निजी प्रकाशनों का वर्तमान शैक्षिक सत्र के लिए पाठ्यपुस्तकें छापने हेतु चयन कर लिया है। इनमें गत वर्ष घोटाला करने के आरोपी प्रकाशन भी सम्मिलित हैं। ऐसा समझा जाता है कि शिक्षा मंत्री मलाकथ सूपी के निर्देश पर ऐसा किया गया है। वि·श्वस्त सूत्रों के अनुसार प्रारंभ में 31 आवेदकों में से 17 के आवेदन आवश्यक कागजात जमा नहीं करने के कारण अस्वीकृत कर दिए गए थे। आश्चर्य तो यह है कि इनमें से कुछ आवेदकों, जिन्हें मुस्लिम लीग के नेताओं का संरक्षण प्राप्त है, के पास अपना पिं्रटिंग प्रेस भी नहीं है। चुने गए दो प्रकाशनों पर केरल के प्रमुख लेखाधिकारी ने अपनी 18 सितम्बर, 2003 की रपट में वित्तीय गड़बड़ी के आरोप लगाए थे।पाठ्यपुस्तकों की छपाई का काम एक आकर्षक व्यवसाय होने के कारण अक्सर निजी प्रकाशन संस्थान इस काम को हथियाने की चेष्टा करते हैं, क्योंकि इसके लिए सरकार कागज व अन्य सामग्रियां नि:शुल्क देती है। शैक्षिक सत्र 2004-05 में कक्षा 1 से 10 के लिए कुछ पाठ्यपुस्तकों की अनुमानित संख्या लगभग 3,47,00,000 है। इनमें से 1,27,00,000 पुस्तकों की छपाई का काम निजी प्रकाशनों को दिया गया है।वर्षों से केरल के शिक्षा क्षेत्र में कट्टर सांप्रदायिक मुस्लिम लीग अथवा शक्तिशाली ईसाई समुदायों का प्रभाव बना हुआ है। ये अपने स्वार्थों की पूर्ति के लिए सभी नियम-कानूनों की धज्जियां उड़ाते हुए राज्य का धन अपनी जेबों में भर रहे हैं।21

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