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पाकिस्तान में अटल बिहारी वाजपेयीअमन के अरमानमगर क्या मुशर्रफ पर भरोसा किया जा सकता है?बदलाव सिर्फ बयानों तक न रहें, जमीन पर हालात सुधारने की शर्त–प्रतिनिधिभारत के प्रधानमंत्री की इस्लामाबाद यात्रा दक्षेस सम्मेलन में भाग लेने के लिए हो रही है और इसलिए परवेज मुशर्रफ तथा जमाली से उनकी भेंट राजनयिक औपचारिकता का एक अंग है। परन्तु भारत के प्रति पाकिस्तान की शत्रुता को देखते हुए भारत और पाकिस्तान के नेता जब औपचारिकतावश भी आपस में मिलते हैं तो वह एक बड़ी खबर बन जाती है। इस बार भी ऐसा ही हो रहा है। उम्मीदें जतायी जा रही हैं कि संभवत: इस भेंट से शांति के मार्ग खुलेंगे तथा अमन के अरमान फलेंगे-फूलेंगे। पर पाकिस्तानी नेताओं के साथ सबसे बड़ी समस्या यह है कि उन पर वि·श्वास करना कठिन है। एक दिन कहते हैं कश्मीर मुद्दा नहीं उठाएंगे लेकिन फिर अगले ही दिन उसके विपरीत रवैया अपना लेते हैं। तब कैसे हो विश्वास?हालांकि नये साल के पहले दिन कड़कड़ाती ठंड में शाम 5.20 पर पाकिस्तान इंटरनेशनल एयरलाइंस का विमान 40 यात्रियों को लेकर नयी दिल्ली के इंदिरा गांधी अंतरराष्ट्रीय हवाई अड्डे पर उतरा और इंडियन एयरलाइंस का विमान भी विदेशमंत्री श्री यशवंत सिन्हा, राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार श्री बृजेश मिश्र व अन्य अधिकारियों को लेकर इस्लामाबाद पहुंचा तो सर्द हवा में रिश्तों की गर्माहट महसूस हुई। पिछले कुछ दिनों से यद्यपि पाकिस्तान की तरफ से कुछ उदारता के संकेत मिल रहे हैं। दिल्ली-लाहौर बस सेवा पुन: बहाल हो गई है। 15 जनवरी से समझौता एक्सप्रेस के शुरू होने की चर्चा है। सीमा पर युद्धविराम की स्थिति है। पाकिस्तान ने सिंध से खोखरापार (राजस्थान) का सड़क मार्ग फिर खोल देने का वायदा किया है। पिछले दिनों पाकिस्तान ने भारतीय मछुआरों को अपनी जेलों से रिहा कर भारत को सौंप दिया। सांसदों, शिक्षकों, छात्रों, अधिवक्ताओं, महिलाओं, बच्चों के प्रतिनिधिमंडलों की दोनों देशों में आवाजाही शुरू हो गई है। और फिर भारत में इलाज के लिए पाकिस्तान से आने वालों का भी तांता सा लगा है। पाकिस्तानी बच्ची नूर के हृदय की सफल शल्य चिकित्सा के बाद पिछले दिनों एक नन्हा पाकिस्तानी बच्चा भारतीय महिला द्वारा दान किये गए नेत्र से दुनिया को देख सका।विदेशमंत्री श्री यशवन्त सिन्हा ने दक्षेस सम्मेलन के लिए पाकिस्तान रवाना होने से पहले कहा कि हम भाईचारे की भावना लेकर पाकिस्तान जा रहे हैं। हम उम्मीद करते हैं कि पाकिस्तान का उन पर सकारात्मक उत्तर मिलता रहेगा। यह सिलसिला चलता रहा तो दोनों देशों के बीच संबंध सामान्य हो सकेंगे। जनरल मुशर्रफ ने भी कहा कि दोनों देशों की सबसे बड़ी समस्या बेकारी, गरीबी, मजहबी टकराव और अराजकता दूर करना है, लेकिन कश्मीर समस्या हल करने के लिए बातचीत में कुछ लचक पैदा करनी होगी। लचक? भारत का रुख तो पहले ही बहुत लचीला रहा है।संबंध सामान्य हों, इसके लिए भारत कितने कदम बढ़ा चुका है। अक्तूबर माह के अंत में भारत ने शांति की दिशा में पहल करते हुए 12 प्रस्ताव भी पाकिस्तान के सामने रखे थे। ये 12 प्रस्ताव थे- 1. दोनों देशों के बीच क्रिकेट समेत अन्य खेल संबंधों की बहाली, 2. मुम्बई से कराची के बीच नौका सेवा, 3. श्रीनगर और मुजफ्फराबाद के बीच बस सेवा, 4. खोखरापार (राजस्थान) तथा मुन्नाबाओ (सिंध, पाकिस्तान) के बीच बस या रेल सेवा, 5. वायु सम्पर्क बहाल होने के बाद रेल सेवा पर तकनीकी बातचीत, 6. दिल्ली व इस्लामाबाद के अलावा अन्य शहरों से भी वीसा जारी करना, 7. 20 पाकिस्तानी बच्चों की नि:शुल्क चिकित्सा, 8. दिल्ली और लाहौर के बीच बसों की संख्या बढ़ाना, 9. दोनों देशों के तटरक्षकों के बीच सम्पर्क, 10. 65 साल से अधिक आयु के नागरिकों को बिना वीसा वाघा सीमा पार करने की अनुमति देना, 11. अरब सागर में तय सीमा में मछुआरों की गिरफ्तारी न करना, 12. दिल्ली और इस्लामाबाद स्थित उच्चयोगों में कर्मचारियों की संख्या बढ़ाना।पाकिस्तान ने इनमें से कुछ प्रस्ताव स्वीकार किए थे और कुछ को सैद्धांतिक तौर पर स्वीकार किया था। दक्षेस सम्मेलन से पूर्व भारत ने फिर चार मैत्री प्रस्ताव पाकिस्तान के सामने रखे। इनमें एक खोखरापार-सिंध बस सेवा पर तकनीकी वार्ता और उच्चायोगों में कर्मचारियों की संख्या बढ़ाने की बात कही गयी है। क्या इस तरह की पहल से दोनों देशों के संबंधों के बीच कटुता की दीवार ढह जाएगी? क्योंकि मुशर्रफ गिरगिट की तरह रंग बदलते हैं। 18 दिसम्बर को उन्होंने बड़े जोर-शोर से घोषणा की थी कि पाकिस्तान जम्मू-कश्मीर में जनमत संग्रह की बात नहीं करेगा। उनका यह कहना था कि पाकिस्तान में कट्टरपंथी जमात के लोगों की भंवें तन गईं। दो दिन बाद ही मुशर्रफ को अपना बयान वापस लेना पड़ा। यानी एक कदम आगे बढ़ाकर दो कदम पीछे हटना। मुशर्रफ की इस दोमुंही नीति से सावधान रहने की जरूरत है। लाहौर बस यात्रा के बाद कारगिल का उदाहरण सामने है। पाकिस्तान द्वारा भारत को दिये गए घाव आज भी रिस रहे हैं। कश्मीर में आतंकवाद जारी है। आई.एस.आई. अपने पंजे फैला रही है। क्या यह भुलाया जा सकता है कि अंतरराष्ट्रीय आतंकवाद की जड़ें पाकिस्तान में हैं? क्या यह भुलाया जा सकता है कि भारत विरोधी गतिविधियों में लिप्त दाऊ द इब्राहीम, अबू सलेम जैसे कुख्यात अपराधी सरगनाओं को पाकिस्तान ने शरण दे रखी है? सभी कड़वी सच्चाइयों को निगलते हुए प्रधानमंत्री वाजपेयी ने पाकिस्तान की ओर दोस्ती का हाथ बढ़ाया है। मुशर्रफ ने भी थोड़ी नरमी दिखाई है, लेकिन इससे क्या यह समझा जाए कि हालात सुधर रहे हैं। सच तो यह है कि मुशर्रफ पर भरोसा करते हुए हिचक होती है। फिर दोस्ती के लिए कुछ घोषणाएं, बयानबाजियां हो भी जाएं, पर भरोसा तभी होगा जब जमीन पर बदलाव दिखाई देंगे।18
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